Bangla Novel
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Bangla Novel
Avinashwar
अविनश्वर –
शायद यह सही है कि आशापूर्णा देवी की अधिकांश रचनाओं के केन्द्र में नारी चरित्र हैं, मगर उनकी रचनाएँ केवल इसी विषय पर केन्द्रित नहीं हैं। मनुष्य की तमाम बहुरंगी आकृतियों और उसकी ख़ूबियों-कमियों को उन्होंने अपनी कृतियों में जीवन्त और आत्मीय ढंग से उकेरा है। अपने लगभग सभी उपन्यासों के माध्यम से मानवीय चरित्रों का गम्भीर मनोविश्लेषण करते हुए आशापूर्णा देवी ने अपने समय और समाज के यथार्थ को पूरी क्षमता से प्रतिबिम्बित किया है। उनका यह उपन्यास ‘अविनश्वर’ भी इसका प्रमाण है।
‘अविनश्वर’ में अपने अतीत की सुनहरी यादों में डूबे ज़मींदार राजाबहादुर शशिशेखर और उनके मन में रची-बसी प्रियतमा सुधाहासिनी की मनोहारी प्रेम कथा है। सामान्य प्रेम-कथाओं से अलग यह एक ऐसी व्यथा-कथा है, जो दैहिक और सांसारिक उपलब्धियों के पार अलौकिक इन्द्रधनुषी अनुभूतियों का साक्षात्कार कराती है।….
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित बांग्ला की महान कथाकार आशापूर्णा देवी के इस अनूदित उपन्यास ‘अविनश्वर’ ने भी उनके अन्य उपन्यासों की तरह हिन्दी पाठकों की भरपूर प्रशंसा पायी है।SKU: VPG8126330560 -
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Avinashwar
अविनश्वर –
शायद यह सही है कि आशापूर्णा देवी की अधिकांश रचनाओं के केन्द्र में नारी चरित्र हैं, मगर उनकी रचनाएँ केवल इसी विषय पर केन्द्रित नहीं हैं। मनुष्य की तमाम बहुरंगी आकृतियों और उसकी ख़ूबियों-कमियों को उन्होंने अपनी कृतियों में जीवन्त और आत्मीय ढंग से उकेरा है। अपने लगभग सभी उपन्यासों के माध्यम से मानवीय चरित्रों का गम्भीर मनोविश्लेषण करते हुए आशापूर्णा देवी ने अपने समय और समाज के यथार्थ को पूरी क्षमता से प्रतिबिम्बित किया है। उनका यह उपन्यास ‘अविनश्वर’ भी इसका प्रमाण है।
‘अविनश्वर’ में अपने अतीत की सुनहरी यादों में डूबे ज़मींदार राजाबहादुर शशिशेखर और उनके मन में रची-बसी प्रियतमा सुधाहासिनी की मनोहारी प्रेम कथा है। सामान्य प्रेम-कथाओं से अलग यह एक ऐसी व्यथा-कथा है, जो दैहिक और सांसारिक उपलब्धियों के पार अलौकिक इन्द्रधनुषी अनुभूतियों का साक्षात्कार कराती है।….
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित बांग्ला की महान कथाकार आशापूर्णा देवी के इस अनूदित उपन्यास ‘अविनश्वर’ ने भी उनके अन्य उपन्यासों की तरह हिन्दी पाठकों की भरपूर प्रशंसा पायी है।SKU: VPG8126330577 -
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Leela Chirantan
लीला चिरन्तन –
व्यक्ति द्वारा अपनी गृहस्थी का सबकुछ छोड़कर अचानक संन्यास ले लेने से उपजी सामाजिक और सांसारिक तकलीफ़ों के बहाने आसपास का बहुत कुछ देखने-समझने की गम्भीर कोशिश है यह उपन्यास ‘लीला चिरन्तन’। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित बांग्ला की यशस्वी कथा-लेखिका आशापूर्णा देवी ने इस विचित्र परिस्थिति को कई प्रश्नों और पात्रों के माध्यम से उपन्यास में जीवन्त किया है।
उपन्यास की नायिका कावेरी, जो आत्मविश्वास से भरी पूरी है, तमाम सामाजिक प्रश्नों से निरन्तर जूझती रहती है और उन रूढ़ियों से भी लगातार लड़ती रहती है जो उसे जटिल सीमाओं में बाँधे रखना चाहती हैं। उपन्यास में इस पूरी नाटकीय किन्तु विश्वसनीय परिस्थिति को कावेरी की युवा और अल्हड़ बेटी प्रस्तुत करती है, साथ ही सारे परिदृश्य को भी अपने अनुभवों के आधार पर व्यक्त करती जाती है।
कहना न होगा कि एक युवा-किशोरी के देखे-भोगे अनुभवों में गहरे उतरना इस ‘लीला चिरन्तन’ को रोचक और उत्तेजक संस्पर्श देता है। समकालीन मध्यवर्गीय जीवन और सामाजिक मानस की यथार्थ छवियों को प्रस्तुत करने के कारण यह उपन्यास अपने समय का जीवन्त एवं प्रामाणिक दर्पण बन गया है। बांग्ला पाठकों के बीच पहले से ही बहुचर्चित यह उपन्यास हिन्दी-पाठकों में भी उतना ही समादृत हुआ है।SKU: VPG8126318315 -
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Master Saab
मास्टर साब –
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित बांग्ला की यशस्वी साहित्यकार महाश्वेता देवी के लिए शब्द और कर्म अलग-अलग नहीं है। उनका कर्म और उनकी सारी चिन्ताएँ जहाँ शोषित एवं वंचित लोगों के लिए हैं, वहीं उनके समग्र सृजन के केन्द्र में भी शोषण के विरुद्ध तीव्र और सार्थक विद्रोह है। कहना न होगा कि इसका साक्षी उनका यह उपन्यास ‘मास्टर साब’ भी है। ‘मास्टर साब’ एक जीवनीपरक विचारोत्तेजक और मार्मिक उपन्यास है। इस उपन्यास में शोषण और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ निरन्तर संघर्ष करने वाले ग़रीब एवं समर्पित स्कूल-मास्टर की आत्मीय व्यथा-कथा तो है ही, उनके बहाने महाश्वेता जी ने साठ-सत्तर के दशक में उपजे नक्सलवादी आन्दोलन की गतिविधियों और उसके वैचारिक सरोकारों को भी पूरे साहस के साथ प्रस्तुत किया है। दरअसल मास्टर साब की कहानी को कहने की कोशिश में महाश्वेता देवी ने समकालीन समाज और परिवेश की विसंगतियों के बीच एक साधारण चरित्र के जुझारू संकल्प को अपनी असाधारण लेखनी से प्रखर अभिव्यक्ति दी है। शिल्प और भाषा के स्तर पर इस अद्वितीय प्रयोगात्मक उपन्यास की प्रस्तुति निस्सन्देह हिन्दी पाठकों के लिए महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी।SKU: VPG8126316236 -
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Moner Manush
मोनेर मानुष –
‘मोनेर मानुष’ बांग्ला के अप्रतिम कथाशिल्पी सुनील गंगोपाध्याय का अत्यन्त रोचक व विचारप्रवण उपन्यास है। ‘मोनेर मानुष’ अर्थात किसी भी मनुष्य के अन्तर्मन में साक्षीभाव से संस्थित मनुष्य! यह उदात्त अर्थ खुलता है साईं, फ़क़ीर और बाऊल कहकर याद किये जाने वाले ‘लालन’ की जीवनगाथा में। लालन फ़क़ीर का जीवन तत्व ही ‘मोनेर मानुष’ की भावपीठिका है। अपने बाऊल गीतों के लिए अमर हो चुके लालन का जीवन वृत्तान्त अत्यन्त कम मिलता है। उपन्यासकार ने प्राप्त यत्किंचित तथ्यों, प्रचलित क़िस्सों, किंवदन्तियों, आस्थाओं और अनुमानों को मिलाकर लालन का जो जीवनादर्श रचा है वह अद्भुत है। रचते हुए सुनील गंगोपाध्याय ने कल्पना के जिन रंगों का उपयोग किया है, वे संवेदना के सत्य को अलौकिक आभा प्रदान करते हैं। ‘कार बा आमि के बा आमर/ आसाल बोस्तु ठीक नाहि तार’ (मैं किसका हूँ और कौन मेरा है, अभी तक असल पहचान नहीं हो पायी है)–यह जिज्ञासा लालन फ़क़ीर के जीवन और गीतों का मूल है। लालन से उनके गुरु सिराज साईं ने कहा था—’बहस मत करना, बहस से कोई लाभ नहीं होता’। लालन निरन्तर कर्म के पर्याय बन जाते हैं। उपन्यास के चरित्र राबिया, सिराज साईं, कलुआ, कमली और भानती आदि मिलकर तत्कालीन सामाजिकता के बीच ‘वंचित विमर्श’ रेखांकित करते हैं। जातिगत अपमान, भूख, एकान्त, चिन्तन और सहजीवन के अनेक हृदयस्पर्शी प्रसंग उपन्यास में उपस्थित हैं। लालन फ़क़ीर संकीर्णताओं और विषमताओं के मारे सर्वहाराओं के साथ जीकर उच्चतम मनुष्यता का सन्देश अपने गीतों में छोड़ जाते हैं। बांग्ला में लिखे गये इस उपन्यास का हिन्दी अनुवाद सुशील कान्ति ने किया है। अनुवादक ने मौलिक आस्वाद सुरक्षित रखते हुए हिन्दी की प्रकृति में उपन्यास को प्रस्तुत किया है। इस अत्यन्त पठनीय और संग्रहणीय उपन्यास को पाठकों की अपार सहृदयता प्राप्त होगी, ऐसा विश्वास है। – सुशील सिद्धार्थSKU: VPG8126340477 -
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Na Jaane Kahan Kahan
न जाने कहाँ कहाँ –
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित बांग्ला की सर्वाधिक परिचित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी की अधिकांश रचनाएँ मध्य एवं निम्न वर्ग की पृष्ठभूमि में लिखी गयी हैं। प्रस्तुत उपन्यास के पात्रों का सम्बन्ध भी इन्हीं दो वर्गों से है। प्रवासजीवन, प्रवासजीवन की बहू चैताली, मौसेरी बहन कंकना दी, छोटा बेटा सौम्य, विधवा सुनौला, सुनीला की अध्यापिका बेटी व्रतती, ग़रीब अरुण और धनिक परिवार की लड़की मिन्टू——ये सभी-के-सभी पात्र अपने-अपने ढंग से जी रहे हैं। उदाहरण के लिए, प्रवासजीवन विपत्नीक हैं। घर के किसी मामले में अब उनसे पहले की तरह कोई राय नहीं लेता। उनसे बातचीत के लिए किसी के पास समय नहीं है। रिश्तेदार आते नहीं हैं, क्योंकि अपने घर में किसी को ठहराने का अधिकार तक उन्हें नहीं है। इन सबसे दुःखी होकर भी वह विचलित नहीं होते। सोचते हैं कि हम ही हैं जो समस्या या असुविधा को बड़ी बनाकर देखते हैं, अन्यथा इस दुनिया में लाखों लोग हैं जो किन्हीं कारणों से हमसे भी अधिक दुःखी हैं। और भी अनेक अनेक प्रसंग हैं जो इस गाथा के प्रवाह में आ मिलते हैं। शायद यही है दुनिया अथवा दुनिया का यही नियम है। जहाँ-तहाँ, जगह-जगह यही तो हो रहा है!
उपन्यास का विशेष गुण है कथ्य की रोचकता। हर पाठक के साथ कहीं-न-कहीं कथ्य का रिश्ता जुड़ जाता है। जिन्होंने आशापूर्णा देवी के उपन्यासों को पढ़ा है, वे इसे पढ़ने से रह जायें, ऐसा हो ही नहीं सकता!SKU: VPG8126340842 -
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Pravahman Ganga
प्रवहमान गंगा –
प्रवहमान गंगा की कहानी शुरू होती है ऋषिकेश से। इस कहानी के दो मुख्य पात्र है- शाक्य और शरण्या। दोनों ही युवा हैं। शरण्या आयी है वर्षों पूर्व लापता हुए अपने दादा की तलाश में, जो संन्यास लेकर हिमालय के किसी आश्रम में रहते हैं। गंगा के घाट पर उसका परिचय शाक्य से होता है और फिर शुरू होती है गंगा के रास्ते से दोनों की यात्रा। वे जा रहे हैं ऋषिकेश से देवप्रयाग और वहाँ से टिहरी, चम्बा, उत्तरकाशी, गांगुरी, धाराली, मुखबा, भैरवघाट, गंगोत्री होते हुए। गोमुख रास्ते में कितने ही लोगों से उनका परिचय होता है। ये लोग हैं साधु, संन्यासी, दुकानदार, भिखारी, पुजारी, शिक्षक, पत्रकार व आम स्त्री-पुरुष, जो गंगा की बातें बताते हैं; बताते हैं गंगा के दोनों किनारों के लोगों के इतिहास, समाज, संस्कृति व धर्म की बातें। विभिन्न अनुभवों के आलोक से भर उठता है शाक्य व शरण्या का अन्तर्मन। लगता है, गुम हुए दादा की तलाश में आकर उन्होंने ढूँढ़ लिया है पाँच हज़ार वर्षों के भारतवर्ष को।
इस उपन्यास का एक और पात्र है—ह्यूमोर। वह जर्मनी से आया है। उसे नदियों से प्रेम है और नदियों के बारे में जानने के लिए वह विभिन्न देशों में घूमता-फिरता रहता है। वह सिन्धु, राइन, नील, जॉर्डन आदि नदियों की बातें बताता है। बताता है गंगा के साथ इन सब नदियों के सम्पर्क की बात।
इस उपन्यास में केवल गंगा और उसके किनारे बसे लोगों की ही नहीं है, बल्कि है हिमालय के अतुलनीय सौन्दर्य का चित्रण है। इस कृति में भारतवर्ष की अध्यात्म-साधना और दो युवाओं के मन के अव्यक्त अभिव्यक्ति का चित्रण है।
‘प्रवहमान गंगा’ में इतिहास, दर्शन, भ्रमण और मानवीय सम्बन्धों का अद्भुत व सुन्दर सम्मिश्रण है। इसमें भ्रमण पिपासुओं को मिलेगा भ्रमण का आनन्द, साहित्यानुरागी पाठकों को मिलेगा महत साहित्य का स्वाद, ज्ञानियों को मिलेगा ज्ञान का सन्धान।SKU: VPG9326355735 -
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Vasudhara
वसुधारा –
बांग्ला की चर्चित कथाकार तिलोत्तमा मजूमदार का उपन्यास ‘वसुधारा’ एक ऐसी जनपदीय गाथा है, जो अपनी रचना परिधि में किसी अल्हड़ स्रोतस्विनी का उन्मुक्त आह्लाद छिपाये है तो किसी अनाम महासागर के प्रशान्त वक्ष में उत्तप्त हाहाकार।
माथुरगढ़ के सम्भ्रान्त परिवेश में रहनेवाले शहरी अभिजनों की मानसिकता और अभावग्रस्त शरणार्थियों की अभिशप्त नियति कैसे एक-दूसरे के भावात्मक ताने-बाने को प्रभावित करती है— इसका लेखा-जोखा बेहद रोचक और प्रामाणिक ढंग से प्रस्तुत करती ‘वसुधारा’ की यह कथा आगे बढ़ती चलती है… और समाप्त जान पड़ती हुई कभी समाप्त नहीं होती। जीवन हमेशा विरोधाभास रचता रहता है। एक तरफ़ महानगर की विशाल अट्टालिकाएँ खड़ी होती हैं तो दूसरी ओर घूरे के ढेर पर हाशिये से नीचे जीवनयापन करनेवालों की झुग्गियाँ पसरती रहती हैं। इस उपन्यास में वर्णित माथुरगढ़ की यही सच्चाई है। यहाँ सम्पन्न मध्यवित्त और सर्वहारा एक साथ रहते हुए पाप-पुण्य, शोषण-सहानुभूति, राग-द्वेष-ईर्ष्या का इतिहास रचते रहते हैं और इन्हीं सबके बीच मनुष्यता की श्रम यात्रा चलती रहती है। नियति द्वारा परिचालित होने के बावजूद, मनुष्य की ख़ूबी है कि वह नियति से लड़ता है और अपनी राह बनाने की कोशिश करता है। शायद इसी के ज़रिये वह चिरन्तन अमृत की वसुधारा की तलाश करता है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रस्तुत है बांग्ला के प्रतिष्ठित ‘आनन्द पुरस्कार’ से सम्मानित कृति ‘वसुधारा’।
आशा है हिन्दी पाठक इस कृति का हृदय से स्वागत करेंगे।SKU: VPG8126311258