Fiction
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Fiction
Bharat Vibhajan Kee Antahkatha
भारत विभाजन की अन्तःकथा –
विभाजन भारत के इतिहास की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना है। एक ऐसा देश, जिसकी सीमाएँ मौर्य साम्राज्य से लेकर औरंगज़ेब तक लगभग एक-सी रहीं, 1947 में धर्म के नाम पर बन्द कमरों में बैठकर, दो टुकड़ों में बाँट दिया गया। एक बृहत् सार्वभौम भारत की सम्भावना का अन्त हो गया। यह क्यों हुआ? कौन थे इसके ज़िम्मेदार? या फिर इतिहास की वे कौन-सी ऐसी अन्तर्धाराएँ थीं जिन्होंने ऐसे प्रबल प्रवाह को जन्म दिया जिसे रोकने में सब असमर्थ थे? हिन्दू और मुसलमान साथ क्यों नहीं रह सके? नहीं रह सकते थे क्या? तब देश का शीर्षस्थ नेतृत्व क्या कर रहा था? क्या भूमिका थी उसकी? कहाँ थे इस विभाजन के बीज? यह पुस्तक ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर तलाशती है। अनेक घटनाओं के जन्म, विकास, प्रभाव व परिणामों (1947) के दो सौ चालीस वर्षों तक फैले लम्बे कालखण्ड में उन समस्त कारकों का अध्ययन व विवेचन प्रस्तुत किया गया है जिन्होंने हिन्दू और मुसलमानों के सम्बन्धों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से गहराई तक प्रभावित किया। उनके बीच की खाई को निरन्तर चौड़ा किया, उन्हें दो अलग-अलग दिशाओं में ढकेला और उनके बीच उस विघटन को निरन्तर बढ़ाया जो अन्ततः विभाजन के रूप में फलीभूत हुआ।
प्रियंवद की सम्मोहक भाषा, रोचक शैली और विवेचनात्मक अन्तर्दृष्टि पाठकों के लिए नयी नहीं है। उनके उपन्यासों, लेखों और कहानियों से हिन्दी जगत अच्छी तरह परिचित है। प्रियंवद की यह कृति उनके इतिहास बोध, विवेचना की गहन अन्तर्दृष्टि व जीवन्त भाषा का प्रामाणिक दस्तावेज़ होने के साथ-साथ, हिन्दी की एक बड़ी ज़रूरत को पूरा करती है।SKU: VPG8126318513 -
Fiction
Ityadi
हम समझते हैं, हमने एक शाम के बाद दूसरी सुबह शुरू की है, समुन्दर में हमारी नौका वहीं पर रुकी रही होगी। नौका बहते-बहते किस अक्षांश तक जा चुकी, यह तब तक भान नहीं होता, जब तक सचमुच बहुत सारे दिन दूसरी दिशा में न निकल गये हों। अपने इन संस्मरणों को पढ़ कर ऐसा ही लग रहा है। क्या मैं इन क्षणों को पहचानती हूँ, जिनका नाक-नक्श मेरे जैसा है? 1984 के दंगों से बच निकली एक युवा लड़की। 2011 में सारनाथ में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेती एक प्राचीन स्त्री। 2014 में कोलकाता में शंख दा से पहली ही भेट में गुरुदेव टैगोर के बारे में बात करती हुई लगभग ज्वरग्रस्त एक पाठक। ये मेरे जीवन के ठहरे हुए समय हैं, ठहरी हुई मैं हूँ। बहुत सारे समयों का, स्मृतियों का घाल-मेल । कभी मैं ये सब कोई हूँ, कभी इनमें से एक भी नहीं। यह तारों की छाँह में चलने जैसा है। बीत गये जीवन का पुण्य स्मरण। एक लेखक के आन्तरिक जीवन का एडवेंचर। हर लेखक शब्द नहीं, शब्दातीत को ही ढूँढ़ता है हर क्षण। बरसों पहले के इस अहसास में आज भी मेरी वही गहरी आस्था है। -गगन गिल
SKU: VPG9388434249