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10 Judgements That Changed India
About Zia Mody: Zia Mody, a well-known author. She is also an attorney consultant, specializing in corporate mergers & acquisition law. She received her degree from Harvard Law School and graduated from Cambridge University. She also worked as an attorney for Baker & McKenzie for five years. Mody is a founding partner in two mergers. Mody is a managing partner at AZB & Partner, one of India’s largest legal firms. Jaydev Mody is her husband and she has three children with him. She is the daughter of Soli Sorabjee who is a well-known jurist.
This book contains 10 essays that examine some of the most important judgments of the Supreme Court of India. These judgements have had a profound impact on the lives of Indian citizens and the country’s democracy. These Indian Judiciary judgments proved that India’s legal system was not as inept as is often claimed. The author attempts to give a complete overview of some of the most controversial cases such as Maneka Gandhi against the Union Bank of India and the Union Carbide Corporation against Union of India, Mohammed Ahmed Khan against Shah Bano Begam, Olga Tellis against the Bombay Municipal Corporation, among others. The author covers every case in 10 essays, ranging from the topic of environmental jurisprudence to custodial deaths and the controversial topic about reservations. She also discusses the consequences of the Supreme Court’s final verdicts. This book explains how India’s judicial system can impact the lives of millions of people who live in democracy. It also restores the faith of the reader in the nation’s legal system. The book reveals the details of each case’s internal affairs, which would otherwise be hidden from view. Zia Mody, a well-known author and a prominent legal consultant who specializes in corporate mergers & acquisition law. She graduated from Harvard Law School and is a Harvard Law School graduate. She is also a managing Partner at AZB & Associates, one of India’s largest legal firms.SKU: PRK0670086627 -
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1971: Charge Of The Gorkhas And Other Stories
The Indo-Pak war of 1971 is coming to an end. This anniversary marks the 50th anniversary. We will be reliving its battlefields with stories about bravehearts from the navy, army and air force who fought for a cause more important than their own lives. Why did the 4/5 GR Gorkha soldiers attack an enemy post heavily defended with only naked khukris in hand? Pakistan is trying to find the identity of the young pilot, who after being ejected from the burning aircraft, called himself Flt Lt Mansoor Ali Khan. What is the fate of the naval diver who ripped made-in India labels from his clothes and crossed into East Pakistan carrying a machine gun strapped to his back? A twenty-one year-old Sikh paratrooper is being taught how to leap off a stool at Dum Dum Airport. There’s a Packet plane nearby. 1971 is a collection of stories about extraordinary human courage and grit that provides a unique perspective on war.
SKU: PRK0143454366 -
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A Brief History of Vaishnava Saint Poets : The Alwars
Vaishnavism was developed and popularized by the saintly poets known as ‘Alwars’. There were twelve Alwars and the total number of poems composed by them was 3892.
“A Brief History of Vaishnava Saint Poets :The Alwars” presents an introduction to Naalaayira Divya Prabandham, 12 Alwar saints, their lives, works and philosophy. Dr. P. Jayaraman, founder of bharatiya Vidhya Bhavan, New York has compiled these verses and translated them from Tamil to Hindi and English.
SKU: VPG9389012699 -
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Aadmi Ka Darr
आदमी का डर –
हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार शेखर जोशी ‘नयी कहानी’ रचना-आन्दोलन के व्यापक जनोन्मुख आयाम को प्रशस्त करने वाले रचनाकार हैं। उनके ‘आदमी का डर’ कहानी-संग्रह में अट्ठाईस कहानियाँ संगृहीत हैं। ‘कोसी का घटवार’ जैसी कालजयी कहानी के लेखक शेखर जोशी वस्तुतः मध्यवर्गीय भारतीय जीवन की छोटी-छोटी त्रासदियों/कठिनाइयों/दुविधाओं के तलघर में पैठकर जीवन की उज्ज्वल धूमिल सच्चाइयाँ उजागर करते हैं। यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि ‘फैक्ट्री लाइफ़’ या श्रमिक जीवन पर इतनी सघनता से लिखने वाले वे सर्वोपरि लेखक हैं। ‘बदबू’, ‘नौरंगी बीमार है’, ‘हेड मैसेंजर मन्टू’, ‘आशीर्वचन’ जैसी उनकी प्रसिद्ध कहानियों का ख़ास जीवन इस संग्रह में शामिल ‘आख़िरी टुकड़ा’, ‘प्रतीक्षित’ आदि में विस्तार पाता है।
‘आदमी का डर’ की सभी कहानियाँ इस दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं कि इनमें शेखर जोशी के ‘रचनात्मक स्वभाव’ के सूत्र समाहित हैं। पर्वतीय अंचल के प्रसंग, गृहस्थी के खटराग, नैतिकता के असमंजस और विकास के स्याह-सफ़ेद आदि इन कहानियों में देखे-पढ़े जा सकते हैं। शेखर जोशी की कहानियों में स्त्रियों की स्थिति इस तरह चित्रित है कि विमर्श के ‘डमरूवाद’ की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। इस संग्रह का प्रकाशन एक ऐसे समय में हो रहा है जब ‘मितकथन’ या ‘कथावस्तु-सन्तुलन’ से घबराकर कुछ कहानीकार विवरणों-ब्योरों के ‘अवांछित अरण्य’ में पैठते जा रहे हैं, शेखर जोशी की कहानियाँ इस सन्दर्भ में एक आईना दिखाती हैं। भाषा और शिल्प की दृष्टि से शेखर जोशी की विशिष्ट पहचान है। सहजता और सार्थकता के अपने प्रतिमान वे स्वयं हैं।
‘आदमी का डर’ कहानी-संग्रह पाठकों को जीवन की वास्तविक विविधता से रूबरू करायेगा, ऐसा विश्वास है।—सुशील सिद्धार्थSKU: VPG8126330010 -
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Aaine Sapne Aur Vasantsena
आईने, सपने और वसन्तसेना –
रवि बुले का पहला कहानी संग्रह ‘आईने , सपने और वसन्तसेना’ कई तरह से हिन्दी कहानी के आत्ममुग्ध चरित्र को चुनौती देता है। इस संग्रह में शामिल आठ कहानियाँ समय में घुलती मानवीय चिन्ताओं को टटोलती हैं। इनका नितान्त नयापन सहजता से रेखांकित किया जा सकता है। यदि मात्र एक कहानी के माध्यम से रवि बुले कि रचना-शक्ति का आकलन करना चाहें तो सुधीश पचौरी के शब्दों में ‘रवि बुले की ‘लापता नत्थू उर्फ़ दुनिया न माने’ कहानी को जो पढ़ जायेंगे वे जान जायेंगे कि हिन्दी में जादुई मिक्सिंग के लिए बोर्खेज की किसी को भौंडी नक़ल करने की ज़रूरत हो तो हो, लेकिन रवि बुले को नहीं है। आप जरा नाथूराम गोडसे, नत्थू और नाथूराम गाँधी, गाँधी, हेडगेवार, हिन्दू और फासिज़्म की जबर्दस्त मिक्सिंग को देखें, जो अन्ततः पाठ की वक्रता में भी ऐसी आज़ादी पैदा करती है कि ऐन फासिस्ट में भी कुछ विदूषी-विनोद पैदा करके मूल का उच्छेद करके, वृत्तान्त को ही एक रणनीति बनाकर बता देती है और फिर भी कहानी बोझिल नहीं होती। एक प्रकार की सतत विनोद वृत्ति बनी रहे और उससे ही पाठ की कई परतें खुलती रहे। ‘जादुई’ का कमाल तभी है जब ‘पाठ’ की प्रक्रिया में मजा आता रहे और वह किसी नकली दलित या क्रान्तिकारी कथा के हाहाकारी विडम्बनामूलक पाठ को निरस्त करती रहे।
आह! कितने दिन बाद कम से कम एक कहानी आयी है जो नितान्त नये ने लिखी है, जिससे हिन्दी की कहानी वही नहीं रहती जो अब तक नज़र आती है। कहानी की इम्मीजिएसी देखिए और उसके भीतर बन बनकर बिगाड़ी जाती दुनिया देखिए, आप पायेंगे कि इस तरह कहानी लिखना सरल दिखता है। लेकिन कौतुकी वृत्ति इसे कठिन और फिर सरल बना डालती है। आप जिस खेल को खेल रहे हैं, वह जानलेवा भी हो सकता है। कई नकलची इसी चक्कर में खेत रहे हैं, लेकिन रवि बुले की विनोद-वृत्ति उन्हें बचा ले जाती है और कहानी को भी।’SKU: VPG8126314218 -
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Aankh Ka Naam Roti
आँख का नाम रोटी –
हरि भटनागर की कहानियाँ मध्यवर्गीय व्यक्तिवादिता और प्रगतिशीलता का गुपचुप अतिक्रमण करती हैं। उनकी कहानियों में उद्घाटित यथार्थ निम्न मध्यवर्गीय जीवन का है जिसे ‘तलछट’ शब्द के साथ आलोचना ने रेखांकित किया था। वस्तुतः हरि भटनागर उन कथाकारों में अव्वल हैं जिन्होंने कहानी को मध्य और निम्न मध्यवर्ग के रोमान से निकालने का जोखिम भरा काम किया। गाँव के जीवन को दया और करुणा से देखने के नज़रिए के बरअक्स हरि भटनागर ने उन अन्तर्विरोधों और मूल्यहीनता को देखा जो वहाँ आकार ले रहा था। तलछट की भली-भली सी तस्वीर, भोले-भाले ग्रामीण हरि की कहानियों में उस तरह न आकर अपनी शरारतों और चालाकियों सहित प्रवेश करते हैं इसलिए वहाँ चमक, सनसनी और भाषा का रिझाऊ खेल अनुपस्थित है। आपको हरि की कहानी में साँवला ख़ुरदुरापन मिलेगा जो उन्हें अपने समकालीनों से अलग करता है। भूमण्डलीकरण के बाद आये इस जीवन में बदलावों की शिनाख़्त इन कहानियों में तहों-अन्तर्तहों में विन्यस्त है।
‘आँख का नाम रोटी’, ‘बला’, ‘कथरी’, ‘माई’, ‘फ़ाका’ जैसी कहानियों का त्रासद यथार्थ जुदा है। इस तरह का विश्वसनीय जीवन इधर की कहानियों में लगभग नहीं है। इसके अलावा भी संग्रह की कहानियों में अलक्षित जीवन-समाज को देखने की सलाहियत चमत्कृत करती है। हरि भटनागर अपनी सूक्ष्म दृष्टि, संवेदना, भाषा और कथ्य के स्तर पर एक ऐसा प्रतिसंसार रचते हैं, जो हमारी पहुँच में होकर भी दृष्टि से ओझल है। हमारे अन्तस के संवेदना तन्त्र को जगाती ये कहानियाँ नामालूम जीवन का प्रत्याख्यान रचती हैं।SKU: VPG9326354509 -
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Adhikar : Mahasamar- 2 (1 to 9 Volume Set)
महासमर – अधिकार –
‘महाभारत’ की कथा पर आधृत उपन्यास ‘महासमर’ की दूसरी कड़ी ‘अधिकार’ यशस्वी कथाकार नरेन्द्र कोहली की महत्त्वपूर्ण रचना है। ‘अधिकार’ की कहानी हस्तिनापुर में पाण्डवों के शैशव से आरम्भ होकर, वारणावत के अग्निकांड पर जाकर समाप्त होती है वस्तुतः यह खण्ड ‘अधिकारों’ की व्याख्या अधिकारों के लिए हस्तिनापुर में निरन्तर होने वाले षड्यन्त्र, अधिकार को प्राप्त करने की तैयारी तथा संघर्ष की कथा है। राजनीति में अधिकार प्राप्त करने के लिए होनेवाली हिंसा तथा राजनीतिक त्रास के बोझ में दबे हुए असहाय लोगों की पीड़ा की कथा समानान्तर चलती है। सतोगुणी राजनीति तथा तमोन्मुख रजोगुणी राजनीति का अन्तर इसमें स्पष्ट होता है। एक ओर निर्लज्ज स्वार्थ और भोग तथा दूसरी ओर अनासक्त धर्म-संस्थापना का प्रयत्न। दोनों पक्ष आमने-सामने हैं।
‘महाभारत’ की कथा में कृष्ण का प्रवेश भी इस खण्ड में हो गया है।
प्रख्यात कथाओं का पुनःसृजन उन कथाओं का संशोधन अथवा पुनर्लेखन नहीं होता, वह उनका युगसापेक्ष अनुकूलन मात्र भी नहीं होता। पीपल के बीज से उत्पन्न प्रत्येक वृक्ष, पीपल होते हुए भी, स्वयं में एक स्वतन्त्र अस्तित्व होता है, वह न किसी का अनुसरण है, न किसी का नया संस्करण। मौलिक उपन्यास का भी यही सत्य है।
मानवता के शाश्वत प्रश्नों का साक्षात्कार लेखक अपने गली-मुहल्ले, नगर- देश, समाचार पत्रों तथा समकालीन इतिहास में आबद्ध होकर भी करता है, और मानव सभ्यता तथा संस्कृति की सम्पूर्ण जातीय स्मृति के सम्मुख बैठकर भी। पौराणिक उपन्यासकार के ‘प्राचीन’ में घिरकर प्रगति के प्रति अन्धे हो जाने की सम्भावना उतनी ही घातक है, जितनी समकालीन लेखक की समसामयिक पत्रकारिता में बन्दी हो एक खण्ड-सत्य को पूर्ण सत्य मानने की मूढ़ता। सर्जक साहित्यकार का सत्य अपने काल-खण्ड का अंग होते हुए भी, खण्डों के अतिक्रमण का लक्ष्य लेकर चलता है।
नरेन्द्र कोहली का नया उपन्यास है ‘महासमर’। घटनाएँ तथा पात्र महाभारत से सम्बद्ध हैं; किन्तु यह कृति एक उपन्यास है आज के एक लेखक का मौलिक सृजन!SKU: VPG9350728925 -
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Adhikar : Mahasamar-2
महासमर – अधिकार –
‘महाभारत’ की कथा पर आधृत उपन्यास ‘महासमर’ की दूसरी कड़ी ‘अधिकार’ यशस्वी कथाकार नरेन्द्र कोहली की महत्त्वपूर्ण रचना है। ‘अधिकार’ की कहानी हस्तिनापुर में पाण्डवों के शैशव से आरम्भ होकर, वारणावत के अग्निकांड पर जाकर समाप्त होती है वस्तुतः यह खण्ड ‘अधिकारों’ की व्याख्या अधिकारों के लिए हस्तिनापुर में निरन्तर होने वाले षड्यन्त्र, अधिकार को प्राप्त करने की तैयारी तथा संघर्ष की कथा है। राजनीति में अधिकार प्राप्त करने के लिए होनेवाली हिंसा तथा राजनीतिक त्रास के बोझ में दबे हुए असहाय लोगों की पीड़ा की कथा समानान्तर चलती है। सतोगुणी राजनीति तथा तमोन्मुख रजोगुणी राजनीति का अन्तर इसमें स्पष्ट होता है। एक ओर निर्लज्ज स्वार्थ और भोग तथा दूसरी ओर अनासक्त धर्म-संस्थापना का प्रयत्न। दोनों पक्ष आमने-सामने हैं।
‘महाभारत’ की कथा में कृष्ण का प्रवेश भी इस खण्ड में हो गया है।
प्रख्यात कथाओं का पुनःसृजन उन कथाओं का संशोधन अथवा पुनर्लेखन नहीं होता, वह उनका युगसापेक्ष अनुकूलन मात्र भी नहीं होता। पीपल के बीज से उत्पन्न प्रत्येक वृक्ष, पीपल होते हुए भी, स्वयं में एक स्वतन्त्र अस्तित्व होता है, वह न किसी का अनुसरण है, न किसी का नया संस्करण। मौलिक उपन्यास का भी यही सत्य है।
मानवता के शाश्वत प्रश्नों का साक्षात्कार लेखक अपने गली-मुहल्ले, नगर- देश, समाचार पत्रों तथा समकालीन इतिहास में आबद्ध होकर भी करता है, और मानव सभ्यता तथा संस्कृति की सम्पूर्ण जातीय स्मृति के सम्मुख बैठकर भी। पौराणिक उपन्यासकार के ‘प्राचीन’ में घिरकर प्रगति के प्रति अन्धे हो जाने की सम्भावना उतनी ही घातक है, जितनी समकालीन लेखक की समसामयिक पत्रकारिता में बन्दी हो एक खण्ड-सत्य को पूर्ण सत्य मानने की मूढ़ता। सर्जक साहित्यकार का सत्य अपने काल-खण्ड का अंग होते हुए भी, खण्डों के अतिक्रमण का लक्ष्य लेकर चलता है।
नरेन्द्र कोहली का नया उपन्यास है ‘महासमर’। घटनाएँ तथा पात्र महाभारत से सम्बद्ध हैं; किन्तु यह कृति एक उपन्यास है आज के एक लेखक का मौलिक सृजन!SKU: VPG8170551980 -
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Adhikar : Mahasamar-2 (Deluxe Edition)
महासमर – अधिकार –
‘महाभारत’ की कथा पर आधृत उपन्यास ‘महासमर’ की दूसरी कड़ी ‘अधिकार’ यशस्वी कथाकार नरेन्द्र कोहली की महत्त्वपूर्ण रचना है। ‘अधिकार’ की कहानी हस्तिनापुर में पाण्डवों के शैशव से आरम्भ होकर, वारणावत के अग्निकांड पर जाकर समाप्त होती है वस्तुतः यह खण्ड ‘अधिकारों’ की व्याख्या अधिकारों के लिए हस्तिनापुर में निरन्तर होने वाले षड्यन्त्र, अधिकार को प्राप्त करने की तैयारी तथा संघर्ष की कथा है। राजनीति में अधिकार प्राप्त करने के लिए होनेवाली हिंसा तथा राजनीतिक त्रास के बोझ में दबे हुए असहाय लोगों की पीड़ा की कथा समानान्तर चलती है। सतोगुणी राजनीति तथा तमोन्मुख रजोगुणी राजनीति का अन्तर इसमें स्पष्ट होता है। एक ओर निर्लज्ज स्वार्थ और भोग तथा दूसरी ओर अनासक्त धर्म-संस्थापना का प्रयत्न। दोनों पक्ष आमने-सामने हैं।
‘महाभारत’ की कथा में कृष्ण का प्रवेश भी इस खण्ड में हो गया है।
प्रख्यात कथाओं का पुनःसृजन उन कथाओं का संशोधन अथवा पुनर्लेखन नहीं होता, वह उनका युगसापेक्ष अनुकूलन मात्र भी नहीं होता। पीपल के बीज से उत्पन्न प्रत्येक वृक्ष, पीपल होते हुए भी, स्वयं में एक स्वतन्त्र अस्तित्व होता है, वह न किसी का अनुसरण है, न किसी का नया संस्करण। मौलिक उपन्यास का भी यही सत्य है।
मानवता के शाश्वत प्रश्नों का साक्षात्कार लेखक अपने गली-मुहल्ले, नगर- देश, समाचार पत्रों तथा समकालीन इतिहास में आबद्ध होकर भी करता है, और मानव सभ्यता तथा संस्कृति की सम्पूर्ण जातीय स्मृति के सम्मुख बैठकर भी। पौराणिक उपन्यासकार के ‘प्राचीन’ में घिरकर प्रगति के प्रति अन्धे हो जाने की सम्भावना उतनी ही घातक है, जितनी समकालीन लेखक की समसामयिक पत्रकारिता में बन्दी हो एक खण्ड-सत्य को पूर्ण सत्य मानने की मूढ़ता। सर्जक साहित्यकार का सत्य अपने काल-खण्ड का अंग होते हुए भी, खण्डों के अतिक्रमण का लक्ष्य लेकर चलता है।
नरेन्द्र कोहली का नया उपन्यास है ‘महासमर’। घटनाएँ तथा पात्र महाभारत से सम्बद्ध हैं; किन्तु यह कृति एक उपन्यास है आज के एक लेखक का मौलिक सृजन!SKU: VPG9352291854 -
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Ahmad Nadeem Kasami Ek Shayar Ek Aadami
अहमद नदीम कासमी –
उर्दू साहित्य और प्रगतिशील आन्दोलन के इतिहास में अहमद नदीम कासमी की अपनी अलग ही शख़्सियत है। तय कर पाना मुश्किल है कि वे शायर बड़े हैं या कथाकार। उन्होंने भरपूर शाइरी भी की और भरपूर कथा-साहित्य भी रचा और दोनों ही विधाओं में अपनी अलग और पायेदार पहचान बनायी। सैयद एहतिशाम हुसैन के अनुसार “उनकी सुन्दर कविताएँ मानव- प्रेम की भावना जगाती हैं और भविष्य के सुन्दर सपनों का चित्रण करती हैं।”
अहमद नदीम कासमी का जन्म 20 नवम्बर, 1916 को सरगोधा (अब पाकिस्तान में) के अंगा गाँव में हुआ और कैबलपुर, शेखपुरा व बहावलपुर में उन्होंने तालीम पायी। उनके चचा पौर थे और घर का वातावरण आध्यात्मिक भावना से भरपूर, इसका असर अहमद नदीम की निजी ज़िन्दगी पर भी गहरे तक पड़ा। जीवन शैली और आदतों में वे अपने अन्य साहित्यिक दोस्तों से बिल्कुल अलग नज़र आये।
अहमद नदीम कासमी ने शेर कहना छोटी उम्र में ही शुरू कर दिया था और उनकी नज़्में व ग़ज़लें उसी दौरान रिसालों में शाये होने लगी थीं। आगे चलकर अपने एक दोस्त की सलाह पर उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू की और उनकी पहली कहानी ‘बुत तराश’ 1934 में, उस ज़माने के मशहूर शायर अख्तर शीरानी के सम्पादन में निकलने वाली पत्रिका ‘हुमायूँ’ में प्रकाशित हुई, जिसकी तारीफ़ मंटो ने की। उसके बाद कासमी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और दोनों विधाओं में समान गति से क़लम चलाते रहे और अपनी एक अलग पहचान दर्ज करते रहे।
1935 में बी.ए. करने और कुछ अरसे तक सरकारी नौकरी करने के बाद कासमी ने आजीविका के लिए स्थाई तौर पर रेडियो और अख़बारी पत्रकारिता का क्षेत्र चुन लिया। पहले पेशावर रेडियो स्टेशन में स्क्रिप्ट राइटिंग का कार्य किया फिर ‘अदबे लतीफ’, ‘सवेरा’, ‘नुकू’, ‘इमरोज़’, ‘फूल’ आदि एक के बाद एक पत्रिकाएँ अखबार बदलते हुए एडीटरी का पेशा करते रहे। इस दरमियान कई बार उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी।
उनकी प्रकाशित कृतियों में ‘धड़कने’ (1962) पहली है, जो बाद में ‘रिमझिम’ शीर्षक से पुनः प्रकाशित हुई और इसी नाम से जानी गयी। अन्य काव्यकृतियाँ है ‘जलाओ जमाल’, ‘शील-ए-गुल’, ‘दश्ते यम’ तथा ‘महोत’। ‘चौपाल’, ‘बगुले’, ‘सैलाबो-गिर्दाब’, ‘दगे दीवार’, ‘बर्गे हिना’, ‘घर से घर तक’ आदि उनके 14 कहानी संग्रह भी आ चुके हैं। इसके अलावा मंटो के साथ उनका पत्राचार भी किताब की शक्ल में प्रकाशित हो चुका है।
प्रस्तुत चयन उपर्युक्त काव्यकृतियों और ‘कुलियात’ के आधार पर इस प्रकार तैयार किया गया है, कि अहमद नदीम कासमी के समूचे कवि व्यक्तित्व का परिचय काव्य प्रेमियों को मिल सके।SKU: VPG8181435194 -
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Andhere Ki Atma
अँधेरे की आत्मा –
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मलयालम के चर्चित कथाकार एम.टी. वासुदेवन नायर के कहानी-संग्रह सामान्य जन की जिजीविषा की ओर संकेत है। ‘अँधेरे की आत्मा’ में ऐसे सामान्य जन की जिजीविषा की ओर संकेत है जो परिस्थितियों के दबाव में विवश ज़रूर दिखता है पर फिर भी विपरीत स्थितियों में निरन्तर संघर्षरत रहते हुए अपनी गरिमा पर आँच नहीं आने देता। इस तरह आम आदमी के स्वाभिमान को श्री नायर बहुत ख़ूबसूरती से उकेरते हैं और उसे हमारी स्मृतियों का अंग बना देते हैं।
एक प्रगतिशील कथाकार होने के नाते श्री नायर उन सामाजिक विषमताओं पर प्रहार करते हैं जो मनुष्य को सहज रूप से जीने के अधिकार से वंचित करती हैं। सीधी-सहज शैली और उतनी ही सादी भाषा में अपने समृद्ध अनुभवों से वे कई यादगार चरित्रों से पाठक को रू-ब-रू कराते हैं।
इन कहानियों में मलयाली समाज की काफ़ी कुछ बानगी हमें देखने को मिलती है। केरल की प्राकृतिक समृद्धि और माटी की उर्वर-आर्द्रता का अहसास भी होता चलता है। श्री नायर आभिजात्य समाज से कहीं ज़्यादा लोक-समाज से अपनी निकटता महसूस करते हैं, यही उनकी रचनात्मक शक्ति भी है जो इस संग्रह की कहानियों में सर्वत्र नज़र आती है।SKU: VPG8126315147 -
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Andhere Mein Hanshi
अंधेरे में हँसी –
एक संघर्ष भरी ज़िन्दगी के बीच जीने की जद्दोजहद योगेन्द्र आहूजा की कहानियों की विशेषता है। उनकी कहानियाँ उजाले में आने की आकांक्षा में मानो किसी अँधेरी सुरंग में यात्रा करने की भयावहता का दास्तान सुनती हों। साहित्य जगत् के कुछ महत्वपूर्ण पात्रों की कहानियों में उपस्थिति जैसे यही बताती हो कि पाठक इन्हें सिर्फ़ स्वप्न-कथा ही नहीं समझे बल्कि वह सृजनशील लोगों और चिन्तकों द्वारा किये जा रहे प्रतिरोध की सच्चाई को भी महसूस करे।
योगेन्द्र आहूजा अपने लेखन में क्लाइमेक्स तक पहुँचने की जल्दबाज़ी में नहीं दिखते। शास्त्रीय गायक की तरह दूर तक ले जाते हैं। गन्तव्य की तलाश में वे प्रायः अपने पाठकों को भूलभुलैया में डाल देते हैं, यह भी उनकी कला है। वे इसके ज़रिये जीवन के उलझाव को रेखांकित करते हैं।
हक़ीक़त को बयान करनेवाली इन कहानियों में अँधेरे से उलझते हुए भी शोषण से मुक्ति का स्वप्न नज़र आता है। निश्छल सामाजिकता की उजली इबारत पर स्याही फेरनेवाले जन विरोधी लोगों के अँधेरे के विरुद्ध योगेन्द्र आहूजा की कहानियाँ ज़ोर से हँसती नज़र आती हैं।SKU: VPG8126310375 -
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Andhkaar Kaal : Bharat Mein British Samrajya
इस धमाकेदार पुस्तक में लोकप्रिय लेखक शशि थरूर ने प्रामाणिक शोध एवं अपनी चिरपटुता से यह उजागर किया है कि भारत के लिए ब्रिटिश शासन कितना विनाशकरी था। उपनिवेशकों द्वारा भारत के अनेक प्रकार से किये गये शोषण जिनमें भारतीय संसाधनों के ब्रिटेन पहुँचने से लेकर भारतीय कपड़ा उद्योग, इस्पात निर्माण, नौवहन उद्योग और कृषि का नकारात्मक रूपान्तरण शामिल है। इन्हीं सब घटनाओं पर प्रकाश डालने के अतिरिक्त वे ब्रिटिश शासन के प्रजातन्त्र एवं राजनीतिक स्वतन्त्रता, क़ानून व्यवस्था, साम्राज्य के पश्चिमी व भारतीय समर्थक और रेलवे के तथाकथित लाभों के तर्कों को भी निरस्त करते हैं। अंग्रेज़ी भाषा, चाय और क्रिकेट के कुछ निर्विवादित लाभ वास्तव में कभी भी भारतीयों के लिए नहीं थे अपितु उन्हें औपनिवेशकों के हितों के लिए लाया गया था। भावपूर्ण तर्कों के साथ शानदार ढंग से वर्णित यह पुस्तक भारतीय इतिहास के एक सर्वाधिक विवादास्पद काल के सम्बन्ध में अनेक मिथ्या धारणाओं को सही करने में सहायता करेगी। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का प्रारम्भ 1600 में रानी एलिज़ाबेथ I के द्वारा सिल्क, मसालों एवं अन्य लाभकारी भारतीय वस्तुओं के व्यापार के लिए ईस्ट इण्डिया कम्पनी को शामिल कर लिए जाने से हुआ। डेढ़ शती के भीतर ही कम्पनी भारत में एक महत्तवपूर्ण शक्ति बन गयी। वर्ष 1757 में रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में कम्पनी बलों ने बंगाल में शासन कर रहे सराजुद्दौला को प्लासी में अपेक्षाकृत बेहतर तोपों एवं तोपों से भी उच्च स्तर के छल से पराजित कर दिया। कुछ वर्ष बाद युवा एवं कमज़ोर पड़ चुके शाह आलम II को धमका कर एक फ़रमान जारी करवा लिया जिसके द्वारा उसके अपने राजस्व अधिकारियों का स्थान कम्पनी के प्रतिनिधियों ने ले लिया। अगले अनेक दशक तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने ब्रिटिश सरकार के सहयोग से लगभग पूरे भारत पर अपना नियन्त्रण फैला लिया और लूट-खसोट, कपट, व्यापक भ्रष्टाचार के साथ-साथ हिंसा एवं बेहतरीन बलों की सहायता से शासन किया। यह स्थिति 1857 में तब तक जारी रही जब बड़ी संख्या में कम्पनी के भारतीय सैनिकों के नेतृत्व में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध पहला बड़ा विद्रोह हुआ। विद्रोहियों को पराजित कर देने के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने सत्ता अपने हाथ में ले ली और 1947 में भारत के स्वतंत्र होने तक देश पर दिखावटी तौर पर अधिक दयापूर्ण ढंग से शासन किया।
SKU: VPG9387648043 -
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Antim Bayan
अन्तिम बयान –
मंजुल भगत ने गत-अनागत के कालगत अदृश्य कुहासों में भटकने के बजाय अपने सामने जीती-जागती, तीव्रता और उत्कटता से ज़िन्दगी को जीती, भोगती, लहू-लुहान होती दुनिया को अपनी कहानियों का विषय बनाया। वे काल में नहीं स्पेस में सन्तरण करते पात्रों की बहुआयामी कथा कहती हैं—पूरे मानवीय लगाव, सरोकार और विश्वसनीयता के साथ। इन पात्रों में भी स्वभावतः उनकी नज़र नारी-जीवन से सम्बद्ध पक्षों और प्रश्नों पर ज़्यादा टिकती है। स्त्री पात्रों का भरा-पूरा संसार है मंजुल की कहानियों में। विकल्पों को तलाश करती नारियाँ, निर्णय लेती नारियाँ, समस्याओं के स्थायी-अस्थायी समाधान खोजती नारियाँ और कभी-कभी ‘अस्मि’ यानी ‘मैं हूँ’ के अहसास में अपनी सार्थकता तलाश कर आश्वस्त होती नारियाँ…।
मंजुल की कहानियों की बहुत बड़ी शक्ति, कैमरे के लैंस की तरह अपने विषय को फ़ोकस में बनाये रखने की सामर्थ्य है। जहाँ कहानी की सम्भावना न दिखाई पड़ती हो, वहाँ भी उसमें कहानीपन पैदा कर ले जाने का रचनात्मक कौशल उनके रचना-संसार को बड़ा परिचित, जीवन्त और विश्वसनीय बनाता है।—डॉ. निर्मला जैनSKU: VPG8126309970 -
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Antim Shabd
अन्तिम शब्द –
एक सशक्त तथा संवेदनशील कथा लेखक के रूप में मराठी साहित्यकार गंगाधर गाडगिल की योग्यता की परिचायक उनकी कुछ विशेष कहानियों का संग्रह है— ‘अन्तिम शब्द’। इनमें प्रमुख रूप से नारी जीवन की विविधता का चित्रण है। नारी स्वभाव के जो विविध रूप इन कहानियों में दिखाई देते हैं वे निश्चय ही लेखक की सूक्ष्म दृष्टि की देन हैं। इन कहानियों की नारी चाहे बालिका हो, तरुणी हो या वृद्धा, वह चाहे उच्च वर्ग की हो अथवा मध्यम या निम्न वर्ग की, जिस बारीक़ी से वे नारी मन की विविध छटाओं को परिस्थिति के ताने-बाने में गूँथकर उनका चित्रण करते हैं वह निश्चय ही सराहनीय है।
वास्तविक जीवन में नारी की महत्ता को गाडगिल ख़ूब पहचानते हैं। उसका सामर्थ्य, उसकी पवित्रता, उसका समर्पण भाव, साथ ही उसकी स्वार्थपरायणता, उसकी धूर्तता तथा उसकी असहायता एवं मूर्खता, कुछ भी उनकी लेखनी से अछूता नहीं रहा। वे अपनी कथा नायिका के व्यवहार पर कोई भाष्य, कोई टिप्पणी नहीं करते, न ही कोई उपदेश देते हैं, उनका उद्देश्य केवल जीवन दर्शन है। और यही गुण उनकी कथाओं को विशेष ऊँचाई प्रदान करता है। आशा है, हिन्दी पाठकों को उनकी ये कहानियाँ बहुत रुचिकर लगेंगी।SKU: VPG8126313990