chintan
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Hindi Bhasha Chintan
हिन्दी भाषा चिन्तन –
हिन्दी भाषा के रचनाकारों, पोषकों, अनुवादकों (चाहे वे किसी प्रान्त या क्षेत्र के हों) ने हिन्दी भाषा के भीतर विशाल जन-जीवन की आत्मा से बराबर तालमेल बनाये रखा है। इनको अब हिन्दी व्याकरण में उकेरना होगा। बनावटी, अनुवाद आश्रित, जन सम्पर्क से दूर होती जा रही सामर्थ्यहीन हिन्दी का तिरस्कार करना भी इस व्याकरण के लिए ज़रूरी होगा। भाषा की शुद्धता या मानकता की ईदे कर हिन्दी भाषा के स्वाभाविक विकास और प्रयोग को; कहा जाय उसकी लचीली प्रकृति या ग्रहणवादी प्रवृत्ति की आलोचना करने वाले शुद्धतावादियों से सावधान रहे बिना और भाषा सम्पर्क एवं भाषा- विकास की स्वाभाविक व्याकरणिक परिणतियों का संकेत दिये बिना हिन्दी व्याकरण की परतों (संलमते) को नहीं टटोला सकता है। हिन्दी भाषा मात्र, ‘एक’ व्याकरणिक व्यवस्था नहीं है, वह हिन्दी भाषा समुदाय में व्यवस्थाओं की व्यवस्था के रूप में प्रचलित और प्रयुक्त है; इस तथ्य के प्रकाश में निर्मित हिन्दी व्याकरण ही भाषा के उन उपेक्षित धरातलों पर विचार कर सकेगा जो वास्तव में भाषा प्रयोक्ता के ‘भाषाई कोश’ की धरोहर हैं। कोई भी जीवन्त शब्द और जीवन्त भाषा एक नदी की तरह विभिन्न क्षेत्रों से गुज़रती और अनेक रंग-गन्ध वाली मिट्टी को समेटती आगे बढ़ती है। हिन्दी भी एक ऐसी ही जीती जागती भाषा है। इसके व्यावहारिक विकल्पों को व्याकरण में उभारना, यही एक तरीका है कि हम हिन्दी को उसकी राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका में आगे ले जा सकते हैं।SKU: VPG8181439888 -
Research (शोध)
Mahatma Gandhi Ke Arthik Chintan Ke Paripreksh Mein Shiksha ( महात्मा गांधी के आर्थिक चिंतन के परिप्रेक्ष में शिक्षा )
Research (शोध)Mahatma Gandhi Ke Arthik Chintan Ke Paripreksh Mein Shiksha ( महात्मा गांधी के आर्थिक चिंतन के परिप्रेक्ष में शिक्षा )
महात्मा गाँधी के आर्थिक चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा में यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है कि गाँधीजी वस्तुतः एक सुयोग्य अर्थशास्त्री और व्यवहारिक शिक्षाशास्त्री थे जिन्होंने देश की मिट्टी में कौन सी अर्थव्यवस्था पनप सकती है तथा नव अंकुरित मानव शिशु किस शैक्षणिक पर्यावरण में अस्फुटित, पल्लवित, पुष्पित और प्रतिफलित हो सकती है, इस तथ्य को भलीभांति जानते थे ।
इस पुस्तक में क्रमश: महात्मा गाँधी : व्यक्तित्व निर्माण, पर्यावरण एवं परिस्थितियाँ, महात्मा गाँधी: जीवन-दर्शन और उनका आर्थिक चिन्तन, महात्मा गाँधी के आर्थिक चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा और उसके विभिन्न आयाम पर प्रकाश डाला गया है।
विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक महात्मा गाँधी के शिक्षा के आर्थिक चिन्तन के संबंध में रूची लेने वाले सुधी पाठकों एवं समाज के सभी वर्गों के पाठकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा ।
अर्थशास्त्र एवं शिक्षाशास्त्र की समान रुचि की छात्रा होने के नाते वर्षों से मेरे मन में जिज्ञासा बनी हुई थी कि मैं भारत के ही नहीं, विश्व के महान् व्यक्ति महात्मा गाँधी के आर्थिक एवं शैक्षणिक चिन्तन के विभिन्न आयामों और भारतीय परिप्रेक्ष्य में इसके आपसी सम्बन्धों तथा इसकी आधुनिक उपयोगिताओं एवं महत्वों की वैज्ञानिक विवेचना करूँ, परन्तु समयाभाव और पारिवारिक उलझणों के कारण इसे कार्य रूप देने में थोड़ी कठिनाइयाँ सामने आयीं, परन्तु मैंने हिम्मत न हारी और इस प्रकार के विशाल और गहन विषय पर शोध कार्य पूरा कर लिया। आधुनिक अर्थशास्त्र हमारी वर्तमान सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न तत्वों को बहुत गहराई से प्रभावित कर रहा है। वर्तमान समय में शिक्षा और अर्थ का संबंध भी गहराता जा रहा है। पाश्चात्य पूँजीवादी व्यवस्था में अर्थोपार्जन के जो तरीके हैं, ये भारतीय परिवेश के लिए अपने मूल स्वरूप में सर्वग्राह्य नहीं हैं। गाँधीजी ऐसी परिस्थितियों से वाकिफ थे, अतः उन्होंने अपने आर्थिक चिन्तन के आधार को व्यावहारिक बनाया और एक ऐसी शिक्षा, विशेषकर बुनियादी शिक्षा योजना की नीति तैयार की जिससे शिक्षार्थी ज्ञानार्जन के साथ-साथ अर्थोपार्जन भी कर सकें और साथ ही आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी बनकर राष्ट्र की रीढ़ को मजबूत भी कर सकें।
SKU: JPPAT98047 -
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Marxvadi Saundaryashastra : Samagra Chintan
भारत में भी स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान दूसरे दशक में मार्क्सवाद की विचार दृष्टि आ चुकी थी। स्वप्नलोक के कवि टैगोर, कवि सुब्रह्मण्यम भारती और प्रेमचन्द पर। इसका तत्काल प्रभाव पड़ा था। इनके सहित अनेक रचनाकार क्रान्ति के स्वप्न देखने लगे थे और अपनी ‘बेलाग लेखनी से ब्रिटिश साम्राज्यवाद और देशी सामन्तवाद के खिलाफ़ सर्वहारा की संगठन की। आत्मशक्ति प्रदान कर रहे थे। तीसरे दशक के समाप्त होते-होते रचनाकारों में अभूतपूर्व लहर दौड़ी। भावुकता के स्तर पर ही सही संख्यातीत रचनाकार जन्मे। सज्जाद ज़हीर, मुल्कराज आनन्द और प्रेमचन्द के प्रयास से प्रगतिशील लेखक संघ का जन्म हुआ। तत्काल बुर्जुआ सौन्दर्यवाद के खिलाफ़ जनवादी सौन्दर्य के पक्षधरों ने संकल्प लिया, संकल्प की नयी उत्तेजना और दृष्टिकोण के साथ आरोह-अवरोह से गुज़रता प्रगतिशील लेखन सम्प्रति राष्ट्रीय रचना कर्म के भीतर एक अनिवार्य धारा बन गया। पाँचवें दशक में इस धारा को राजनीतिक आक्रोश का शिकार होना पड़ा। छठवें दशक में आत्मवादी, प्रतिगामी और बुर्जुआ रचनाकारों ने संगठित हमला किया किन्तु अजेय जनवादी सौन्दर्य-दृष्टि रचनाकारों में जीवित रही। अटूट, दृढ़ जीवनी शक्ति का प्रमाण मुक्तिबोध की रचनाओं के प्रकाशनोपरान्त और
बुलन्दी से मिला। सातवें और आठवें दशकों में यह शक्ति इतनी प्रभावशील हो गयी कि बुर्जुआ कला के योजनाकार सांसत में पड़ गये। अतएव, आज हम जहाँ खड़े हैं, हमारे पास मार्क्सवादी रचनाकारों की समर्थ शृंखला है। अब ज़रूरत इस बात की है कि हम समूची विरासत को पहचानें, आत्मालोचन करें और बुर्जुआ संस्कृति की रक्षा के लिए किये जा रहे ताबड़तोड़ प्रयासों को आमूल नष्ट करने का बीड़ा लें। ‘मार्क्सवादी सौन्दर्यशास्त्र’ की यह पुस्तक ऐसे ही प्रयास का एक अंग है।SKU: VPG9388434287 -
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Marxvadi Saundaryashastra : Samagra Chintan
भारत में भी स्वतन्त्रता संघर्ष के दौरान दूसरे दशक में मार्क्सवाद की विचार दृष्टि आ चुकी थी। स्वप्नलोक के कवि टैगोर, कवि सुब्रह्मण्यम भारती और प्रेमचन्द पर। इसका तत्काल प्रभाव पड़ा था। इनके सहित अनेक रचनाकार क्रान्ति के स्वप्न देखने लगे थे और अपनी ‘बेलाग लेखनी से ब्रिटिश साम्राज्यवाद और देशी सामन्तवाद के खिलाफ़ सर्वहारा की संगठन की। आत्मशक्ति प्रदान कर रहे थे। तीसरे दशक के समाप्त होते-होते रचनाकारों में अभूतपूर्व लहर दौड़ी। भावुकता के स्तर पर ही सही संख्यातीत रचनाकार जन्मे। सज्जाद ज़हीर, मुल्कराज आनन्द और प्रेमचन्द के प्रयास से प्रगतिशील लेखक संघ का जन्म हुआ। तत्काल बुर्जुआ सौन्दर्यवाद के खिलाफ़ जनवादी सौन्दर्य के पक्षधरों ने संकल्प लिया, संकल्प की नयी उत्तेजना और दृष्टिकोण के साथ आरोह-अवरोह से गुज़रता प्रगतिशील लेखन सम्प्रति राष्ट्रीय रचना कर्म के भीतर एक अनिवार्य धारा बन गया। पाँचवें दशक में इस धारा को राजनीतिक आक्रोश का शिकार होना पड़ा। छठवें दशक में आत्मवादी, प्रतिगामी और बुर्जुआ रचनाकारों ने संगठित हमला किया किन्तु अजेय जनवादी सौन्दर्य-दृष्टि रचनाकारों में जीवित रही। अटूट, दृढ़ जीवनी शक्ति का प्रमाण मुक्तिबोध की रचनाओं के प्रकाशनोपरान्त और
बुलन्दी से मिला। सातवें और आठवें दशकों में यह शक्ति इतनी प्रभावशील हो गयी कि बुर्जुआ कला के योजनाकार सांसत में पड़ गये। अतएव, आज हम जहाँ खड़े हैं, हमारे पास मार्क्सवादी रचनाकारों की समर्थ शृंखला है। अब ज़रूरत इस बात की है कि हम समूची विरासत को पहचानें, आत्मालोचन करें और बुर्जुआ संस्कृति की रक्षा के लिए किये जा रहे ताबड़तोड़ प्रयासों को आमूल नष्ट करने का बीड़ा लें। ‘मार्क्सवादी सौन्दर्यशास्त्र’ की यह पुस्तक ऐसे ही प्रयास का एक अंग है।SKU: VPG9388434270 -
Research (शोध)
आधुनिक भारत में मुस्लिम राजनीतिक चिंतन का विकास (Aadhunik Bharat mein Muslim rajnitik Chintan ka Vikas)
Research (शोध)आधुनिक भारत में मुस्लिम राजनीतिक चिंतन का विकास (Aadhunik Bharat mein Muslim rajnitik Chintan ka Vikas)
भारत स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उन्होंने 1857-50 के विद्रोह में हिन्दूओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया और अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को चुनौती दिया। अंग्रेजों ने मुसलमानों को सत्ता से बेदखल कर भारत की बागडोर को अपने हाथों में लिया था। मुसलमानों को हिन्दूओं ने भारत का शासक स्वीकार किया था और दोनों समुदायों के लोगों ने मिलकर भारत को मजबूती प्रदान किया था। अंग्रेजों के हाथों अपनी खोयी हुयी सत्ता को हासिल करने के लिए सैयद अहमद बरेलवी के नेतृत्व में बहावी आंदोलन की शुरुआत हुयी, जिसे कुचल दिया गया। 1857 के विद्रोह में हिन्दू एवं मुसलमानों ने मिलकर मुगल सम्राट् बहादुर शाह जफर को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित किया। विद्रोह के समाप्त होने के बाद भी मुसलमानों को दंड दिया गया। सर सैयद अहमद खाँ ने मुसलमानों को सदियों से व्याप्त कुरीतियों से मुक्त होने को कहा। यह तब सम्भव था जब मुसलमान आधुनिक शिक्षा को अपनाते और अपने विचारों में वैज्ञानिकता को स्थान देते। दूसरी ओर, हिन्दू-मुस्लिम एकता से अंग्रेज भयभीत हो गये। उन्होंने दोनों समुदायों बीच फूट डालकर राज करने की नीति अपनाया। डब्ल्यू. डब्ल्यू. इंटर के द्वारा ‘इंडियन मान्स’ की रचना ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। सर सैयद अहमद खाँ अब तक हिन्दू-मुस्लित एकता के महान् कायल थे और हिन्दुस्तान उनका मादरे वतन् था। धीरे-धीरे अंग्रेज अधिकारियों एवं शिक्षाविदों के सान्निध्य में वे आयें और उन्हें लगने लगा कि अखिल भारतीय कॉंग्रेस पार्टी हिन्दुओं की पार्टी है। उसके द्वारा मुसलमानों का भला नहीं हो सकता है। कॉंग्रेस के समानान्तर उन्होंने पैट्रियोटिक एशोसिएशन की स्थापना की। हिन्दू सम्प्रदायवादियों की उन्होंने भत्सना की। कुछ इतिहासकारों ने उन्हें मुस्लिम साम्प्रदायिकता के जनक के रूप में देखा है। लेकिन यह सत्य से परे हैं। उन्होंने अपने समाज के लिए वही काम किया जो काम राजाराममोहन राय ने अपने समाज के लिए किया। अपने विचारों को मूर्तरूप देने के लिए उन्होंने अलीगढ़ आंदोलन की शुरुआत की और कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जिसमें पाश्चात्य शिक्षा एवं विज्ञान को काफी तरजीह दिया गया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय इनमें से एक था।
SKU: JPPAT98245 -
Research (शोध)
ब्रह्म चिन्तन Brahm Chintan
प्रस्तुत पुस्तक ब्रह्म चिन्तन का मुख्य सार संसार में लीन होकर ब्रह्म में तल्लीन कैसे हों। जब हमने भगवान् की सेवा में आत्मसमर्पण कर दिया, तब फिर हमारा समय, हमारा धन, हमारी शक्ति, मन, बुद्धि सब कुछ भगवान् का हो गया । फिर हम इनका सदुपयोग केवल भगवत्कैंकर्य में कर सकते हैं । समय का एक क्षण भी, शक्ति का एक कण भी, द्रव्य का एक पैसा भी हम व्यर्थ और निरर्थक कार्यों में नष्ट नहीं कर सकते । जिन कार्यों से न अपना उपकार होता हो, न पराये का, अपितु परिवार या समाज का अनिष्ट ही होता हो तो ऐसे कार्यों में समय, शक्ति, समझ और धन को लगाना बड़ी भूल है। व्यर्थ गपशप में, निरर्थक वाद-विवाद में, समझ, समय, शक्ति और संपदा का दुरुपयोग अक्षम्य अपराध है । कबहुँक करि कहना नर देही। देत इस बिनु हेतु सनेही ॥
आशा करते हैं कि वे कृपालु हमारी कृतघ्नता को क्षमा कर हमें पुन: दुर्लभ मानव-देह प्रदान करेंगे? फिर भी वे पुन: पुन: मानवदेह देते रहे है। इस अहेतुकी भगवत्कृपा को हमें अतिदीन भाव से संभाल कर रखना चाहिए । किसी दीन-हीन को कोई बहुमूल्य निधि बड़ी कठिनता से ही प्राप्त होती है यदि यह उसकी संभाल नहीं कर सकता तो वह अकिंचन लुट जाएगा, फिर यह निधि कहाँ पाएगा? लूटने के लिए तत्पर मायादेवी घात लगाए ही रहती हैं, निक असावधानी हुई कि लुटे। उस लुटेरी को लोग प्रत्यक्ष देख भी तो नहीं पाते तभी लुटते हैं। वे कृपालु भी इसे सहज भाव से स्वीकार करते है
SKU: JPPAT98256