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Gail Aur Gun
गैल और गन –
वीरेन्द्र जैन ग्रामीण पृष्ठभूमि पर लिखने के लिए ख्यात रहे हैं। उनकी ख्याति की मुख्य वजह है उनकी रचनाओं में आज के भारतीय ग्रामीण समाज का प्रामाणिक और मार्मिक चित्रण। जातिवाद और नौकरशाही के रेशे-रेशे को खोलता उपन्यास गैल और गन जब कादम्बिनी पत्रिका में प्रकाशित हुआ, तब लेखक को पटना से एक पाठक मुकेश कुमार ने लिखा : वास्तव में आपकी लेखनी का प्रवाह दिल को छूता है। समकालीन परिवेश और मानवीय संवेदनाओं के बीच बुना यह ताना-बाना एक सच्चा दस्तावेज़ मालूम पड़ता है जो पाठकों को सोचने के लिए मजबूर करता है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर से अनुराग अग्निहोत्री ने लिखा: सरकारी प्रक्रिया में फँसने वाले आज्ञा प्रसाद को किसी तरह से नहीं बचाया जा सकता। नक्कारख़ाने में नती की तरह आज्ञा प्रसाद की दरख़्वास्तें पड़ी रहेंगी। उन पर कोई भी कार्यवाही नहीं होगी। खसरा, खतौनी, लेखपाल, क़ानूनगो, नायब, कलेक्टर, थाना दिवस, तहसील दिवस, सब कुछ बकवास है। मुझे लग रहा है कि कुर्सी पर बैठे लोग अपने-अपने हिस्से के हिन्दुस्तान को लूटने में लगे हैं। आपके गद्य में लालित्य है।SKU: VPG8181431240