गाँधी जी के मार्मिक पत्राचार (Gandhi jee Ke Marmik Patrachar ) BookHeBook Online Store
-30%

गाँधी जी के मार्मिक पत्राचार (Gandhi jee Ke Marmik Patrachar )

New

रोचक ढंग से लिखी गई यह पुस्तक मुजफ्फरपुर जिले के स्वाधीनता आन्दोलन का इतिहास भी है। जनकधारी बाबू ने ही 1916 में ‘मुजफ्फरपुर जिला होम रूल लीग’ की स्थापना की तथा वे इसके मंत्री के रूप में कार्य करते रहे। चम्पारण में निलहे साहबों के अत्याचारों से पीड़ित किसानों की मुक्ति के लिए महात्मा गाँधी ने जब संघर्ष छेड़ा तो जनकधारी बाबू ने तत्परता से इसमें भाग लिया। इनकी पुस्तक में इस संघर्ष का संजीव और रोमांचकारी वर्णन है। 1920 ई० में इन्होंने ही गण्यमान्य व्यक्तियों की सभा बुलाकर ‘मुजफ्फरपुर जिला काँग्रेस कमिटी की स्थापना की थी। आरंभ से लगातार पन्द्रह वर्षों की लम्बी अवधि तक वे जिला काँग्रेस कमिटी के मंत्री पद का उत्तरदायित्व सम्हालते रहे। असहयोग आन्दोलन में इन्होंने अपनी चलती वकालत छोड़ दी। अनेक प्रकार की कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए जनकधारी बाबू स्वाधीनता आंदोलन में बराबर अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते रहे।

आशा है पाठक को यह पुस्तक पसंद आएगी और इससे वे लाभान्वित भी होंगे।

280.00 400.00

गाँधी जी के साथ उनका निरन्तर पत्राचार हुआ करता था। महात्माजी द्वारा जनकधारी प्रसाद जी को लिखे सभी अन्तरंग पत्र की मूल प्रतियाँ आज साबरमती के गाँधी स्मारक अभिलेखागार में सुरक्षित है। दि. 6 मार्च, 1925 के अपने एक पत्र में गाँधी जीने भावविभोर होकर जनकधारी प्रसाद जी को (अंग्रेजी में) लिखा था “मैं चम्पारण के अपने विश्वस्त सहकर्मियों की याद संजोये हुए हूँ। काम करने के लिए उनसे अधिक विश्वस्त लोगों का दल न कभी मेरे पास था न होगा। यदि समूचे भारत में ऐसे ही दल हो तो स्वराज आने में अधिक विलम्ब नहीं होगा।”

श्री जनकधारी प्रसाद अत्यन्त ईश्वर प्रेमी आस्तिक थे गीता के मर्मज्ञ थे। मुजफ्फरपुर के नयाटोला में स्थित थियोसोफीकल लॉज उन्होंने ने ही श्री रामचन्द्र प्रसाद आदि थियोसोफिस्ट भक्तों के सहयोग से स्थापित किया था। उसकी जमीन की रजिस्ट्री श्री जनकधारी प्रसाद जी के नाम से ही हुई थी। वे कट्टर गाँधीवादी थे तथा सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। चरखा कातना और खादी ही पहनना उनका नियम था। गीता के मनन और ईश्वर ध्यान में ही उनका अंतिम समय बीता। बार बार की कठोर जेल यात्रा की पुलिस लाठी प्रहार से उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ा था।

महान स्वतन्त्रता सेनानी एवं गाँधी जी के सम्पारण सत्याग्रह के सहयोगी श्री जनकधारी प्रसाद जी

ग्राम भानपुरा गोरौल (चैशाली) निवासी श्री जनकधारी प्रसाद ने श्री राजेन्द वायु की देख रेख में कोलकता के प्रेसिडेन्सी कॉलेज से बी- ए० और बाद में कानून की पढ़ाई कर चम्पारण सत्याग्रह में जी जान से लग गये। 1927 से गांधी जी व कस्तूरबा जी उनके इस्लामपुर आवास में ठहरे थे। गांधी जी ने स्वयं अपनी आत्मकथा के “सहयोग” अध्याय में श्री जनकधारी प्रसाद जी की प्रशंसा की है। नमक सत्याग्रह 1942 के अगस्त क्रांती भारत छोडो आन्दोलनों आदि में छः बार अंग्रेजी सरकार के जेल में कठोर यातना भोगा। गाँधी जी के साथ बराबर उनका पत्राचार होता था जनकधारी को लिखे गए मूल पत्र साबरमती गांधी आश्रम में सुरक्षित है। दिनांक 6 मार्च, 1925 के एक पत्र में गांधी जी ने भावविभोर हो कर जनकधारी बाबू को पत्र में लिखा था- “में चम्पारण के अपने विश्वस्त सहयोगियों की बाद संजोये हुए है। काम करने के लिए उनसे अधिक वित लोगों का दल न कभी मेरे पाया होगा।

Binding

Hard Cover ( कठोर आवरण )

brands

New

Language

Hindi ( हिंदी )

Pages

133

Publisher

Janaki Prakashan ( जानकी प्रकाशन )

Based on 0 reviews

0.0 overall
0
0
0
0
0

Be the first to review “गाँधी जी के मार्मिक पत्राचार (Gandhi jee Ke Marmik Patrachar )”

There are no reviews yet.

× How can I help you?