प्रस्तुत पुस्तक मध्यकालीन मिहार (1707-1765 की एक शोधपूर्ण रचना है। भारतीय इतिहास में ऐसे क्षेत्रीय अध्ययन का महत्त्व निर्विवाद है । सर्वविदित है कि भारत के विभिन्न क्षेत्र एक-दूसरे से अलग होते हुए भी सर्वा केन्द्रीय सता एवं संस्कृति को प्रभावित करते रहे हैं।
महान् मुगलों ने अपनी सम्पूर्ण व्यवस्था में बिहार के विशिष्ट महत्त्व को स्वीकारते हुए अपने धुरंधर प्रशासकों एवं सक्षम शाहजादों को बिहार का सूबेदार नियुक्त करने की प्रथा चलाई थी। बाद के मुगलों ने तो इस परम्परा का निर्वाह किया, किन्तु देश एवं प्रांत के व्यापक हित के लिए नहीं, वरन् अपने निहित एवं निकृष्ट स्वार्थों के लिए। परिणामस्वरूप गैरत खाँ, मीरजुमला, सरवुलन्द खाँ, नुसरत यार खाँ, मुर्शीद कुली और अलीवर्दी जैसे नामी-गिरामी और सक्षम सूबेदारों के होते हुए भी गिरावट के दौर को रोका नहीं जा सका। यह गिरावट सार्वजनिक एवं लोकजीवन के सभी क्षेत्रों, यथा-राजनीति एवं प्रशासन, समाज एवं संस्कृति, अर्थ एवं उद्योग तथा व्यापार में परिलक्षित होती है । परिणामस्वरूप, सम्पूर्ण देश के साथ बिहार भी पतनशील जीवन की ओर अग्रसर होता हुआ अँग्रेजों का गुलाम हो गया और चौतरफा गिरावट के कुप्रभावों से अबतक नहीं उबर पाया है।
डा० हरिहर दास ने उपलब्ध सामग्री एवं साक्ष्यों के कुशल उपयोग में तथा आलोचनात्मक विश्लेषण एवं विवेकपूर्ण निष्कर्ष स्थापित करने में ऐतिहासिक वस्तुनिष्ठता, शोधपरक दक्षता और क्षमता से प्रभावित किया है। हिन्दी भाषा में ऐसी रचन्ग शोधकर्त्ताओं एवं सामान्य पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
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