Everyone faces challenges in aging well and maintaining good health. It is more difficult to age well and stay healthy when you have diabetes. This book will give you practical tips and ideas. 101 Tips for Aging Well with Diabetes is written in simple, question-and-answer format. It reveals the secrets to maintaining good health with diabetes. You will find answers to many important questions, such as “Why aren’t my new diabetes medications lowering my blood glucose?” What precautions should I take if I’m in a nursing facility? What’s causing my leg pain? What has changed in my wife’s personality since she was diagnosed with diabetes? You can age well with diabetes while staying in good health. These 101 tips can help you age well with diabetes.
101 Tips for Aging Well with Diabetes
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Aadhunik Kavi Vimarsh
0 out of 5(0)आधुनिक कवि विमर्श –
‘डॉ. धनंजय वर्मा ने आधुनिकता को एक व्यापक सन्दर्भ में देखा-परखा है और विश्व साहित्य पर उनको दृष्टि रही है। उन्हें भारतीय सामाजिक परिवेश का भी ध्यान है। इसीलिए आधुनिकता सम्बन्धी उनका विवेचन किन्हीं आयातित सिद्धान्तों पर आधारित न होकर उनकी अपनी समझ बूझ से उपजा है। आधुनिकता के सन्दर्भ में धनंजय ने जिस रचनाशीलता पर विचार किया है उससे उन्होंने अन्तरंग साक्षात्कार किया है और हम सब आश्वस्त हैं कि उनका यह अध्ययन आधुनिकता के विषय में प्रचलित कई भ्रान्तियों को तोड़ेगा और हमें चीज़ों को सही सन्दर्भ में देखने की समझ देगा।’—डॉ. प्रेमशंकर, सागर
लेखक ने अपनी मौलिक दृष्टि से आधुनिकता, आधुनिकीकरण, समकालीनता, परम्परा आदि प्रत्ययों और विषयों में अभूतपूर्व विवेचन किया है। लेखक के चिन्तन, विषय के प्रति एप्रोच और विश्लेषण में अभूतपूर्वता है। आधुनिकता के प्रत्यय के सन्दर्भ में लोक से हटकर अपना विशिष्ट सोच-विचार प्रस्तुत किया है। इससे लेखकों, आलोचकों के मस्तिष्क में बने-बनाये ढाँचे टूटेंगे और आधुनिकता, समसामयिकता आदि के विषय में पुनर्विचार करना होगा। लेखक में उच्चकोटि की आलोचनात्मक क्षमता है और आद्योपान्त अपने दृष्टिकोण को अध्ययन और तर्कों से पुष्ट करने का प्रातिभ ज्ञान है।—डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
आलोचक ने हिन्दी के स्वच्छन्दतावादी कवियों को ग़ैर-आधुनिक सिद्ध करने के आलोचकीय भ्रमों का तार्किक समाधान किया है। मुझे नहीं लगता कि आधुनिकता में अन्तर्निहित विविध प्रवृत्तियों—धाराओं के बारे में इतनी समग्र पड़ताल हिन्दी में और कहीं उपलब्ध है इस पड़ताल का क्षितिज निश्चय ही देशज से लेकर वैश्विक है।—डॉ. कमला प्रसाद
इन पुस्तकों (आधुनिकता के बारे में तीन अध्याय, आधुनिकता के प्रतिरूप और समावेशी आधुनिकता) की विशेषता यही है कि ये शोध प्रबन्धों की जड़ता से ग्रस्त नहीं है। मौलिक समीक्षा की विचारशीलता और गम्भीरता इनमें आद्यन्त उपलब्ध है। कविता केन्द्रित आधुनिकता सम्बन्धी अध्ययन होने से धनंजय वर्मा ने अपनी पुस्तक-त्रयी में छायावाद से लेकर अज्ञेय और भारती (नागार्जुन और सुमन, मुक्तिबोध और शमशेर) तक की हिन्दी कविता को विश्लेषण का विषय बनाया है। एक तरह से यह आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास विश्लेषण भी है। धनंजय वर्मा की समावेशी आधुनिकता सम्बन्धी अवधारणा एवं कविता के विश्लेषण के कारक तत्त्व दरअसल भविष्य के समीक्षकों के लिए विचारशील पीठिका तैयार करते हैं। उनकी अवधारणा में देशज आधुनिकता के बीज तत्त्व बिखरे पड़े है।—डॉ. ए. अरविन्दाक्षन
यह विवेचन इतना सन्दर्भसम्पन्न और आलोचना प्रगल्भ है कि लगता है जैसे हम काव्य-आलोचना के साथ-साथ आधुनिक कविता के सन्दर्भ ग्रन्थ से या लघु एनसायक्लोपीडिया से साक्षात्कार कर रहे है। धनंजय की इस पुस्तक का यदि ठीक से नोटिस हिन्दी आलोचना और हिन्दी के साहित्यिक एवं भाषिक विकास की दृष्टि से लिया जाता तो एक बड़ा विमर्श आधुनिकता को लेकर हो सकता था।—डॉ. रमेश दवे
आधुनिकता के अबतक के विकास और उसके छद्म तथा वास्तविक, अप्रासंगिक और प्रासंगिक, अप्रामाणिक और प्रामाणिक रूपों के बीच एक स्पष्ट विभाजक रेखा खींचने की कोशिश की गयी है। धनंजय वर्मा आधुनिकता के समग्र वैचारिक चिन्तन से टकराते है।…धनंजय वर्मा पश्चिमी सन्दर्भों में और उनसे हटकर आधुनिकता के स्वरूप को स्पष्ट करने की कोशिश करते हैं और आधुनिकीकरण पर विचार करने के लिए धनंजय वर्मा ने भारतीय सन्दर्भ और हिन्दी चिन्तन को आधार बनाया है।—डॉ. परमानन्द श्रीवास्तवSKU: VPG9326352963₹307.00₹410.00 -
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Aage Jo Pichhe Tha
0 out of 5(0)आगे जो पीछे था –
‘स्व के उजागर होने में ही देखना छुपा है।’ -हकु शाह
तमाम जीवों में से शायद मनुष्य में ही यह क्षमता है कि वह अपने से परे हो कर कभी-कभार इस सचराचर धरा और उसके बीच ख़ुद को देख-परख सके। यह देखना-परखना हर कला रूप अपनी तरह से, अपने व्याकरण के तहत करता है। देख्या परखिया सिख्या।
संस्कृति, संस्कार, इतिहास और स्मृति की एक भाँय-भाँय करते कई कमरों वाली हवेली से बाहर बदलते जीवन की खुली सड़क तक की यह यात्रा अपने-अपने औजारों की घिसी हुई थैली उठाये हुए तमाम संगीतकार, नर्तक, चित्रकार, स्थपित, लेखक, कवि सभी करते रहते हैं। कभी झिझक और अचरज से, कभी भय-विस्मय के साथ सहृदय रसिकों की छोड़ दें तो हमारे समय में वह तटस्थ आँख अधिकतर रसिक जनों के मन में बन्द हो कर रह गयी है जो इन कलाकारों की रचनाओं से अचानक कभी पंक्ति से उठा कर स्वर या शब्द या रंग अथवा भंगिमा को कौतुकीभाव से बच्चे की तरह निर्दोष मन से देखे और आनन्दित हो ले।मनीष का यह उपन्यास उसी निर्दोष पारदर्शी दृष्टि का सन्धान कर रहा है जहाँ घर बदर नायक ‘प्रारब्ध’ किसी अज्ञात पुश्तैनी स्मृतियों की हवेली से बरसों बाद निकलकर अपने चारों ओर के बदलाव भरे विश्व से एक कुतूहल भाव से, निर्दोष खुलेपन से सहमता-सा टकरा रहा है। जीवन का प्रमाण तो जीवन ही है, इसलिए नाम, रूप, गन्ध और तमाम ऐन्द्रिक संस्पर्श यहाँ हैं, पर चक्राकार गति से कभी आगे के पीछे तो कभी पीछे के आगे होते हुए। इसे जो इसी कौतुकी भाव से पढ़ेगा सोई परम पद पावेगा। किसी तर्रार-सी, ‘कोटेबल्कोट्स’ से भरी भराई आदि मध्य अन्त वाली नटवर नागर ख़बरिया कथा का सीधे आगे-आगे को भागता तारतम्य नायक प्रारब्ध या उसकी महिला संगिनी रात्रि के नाम, जीवन या गतिविधि में खोजनेवाले सावधान!
यहाँ आकृतियाँ हैं, परछाइयाँ हैं, धूल-भरी सड़कें और परछाइयों के बीच पड़े फूल और उनके रंग हैं। यह देखना एक चितेरे का शब्दों को पदार्थों को कभी उनके शब्दनाम से जोड़ कर, कभी उससे हटा कर दूसरे शब्द के बगल में रख कर देखना है, इस प्रक्रिया में सब कुछ बदलता है, रंग, शब्द, आकार, रेखाएँ और परम्परा की स्मृतियाँ समय यहाँ घड़ी के काँटों या कलेंडरी तारीख़ों से नहीं बनता। यह कायान्तरण की ज़मीन है जहाँ हर पदार्थ किसी तरह से हर दूसरे पदार्थ से जुड़ा है और अचानक दोनों से किसी तीसरे पदार्थ को उभरते हुए हम देखते हैं।
यहाँ असल सवाल अमीरी बनाम ग़रीबी, भोग बनाम वैराग्य या संकलन बनाम अपरिग्रह का नहीं, इन सबके मथे जाने से निकलते एक अमूर्त सत्य को पुराने सधुक्कड़ी फ़क़ीरों योगियों की तरह किसी अतिपरिचित दृश्य या शब्द या उपादान के माध्यम से हठात् देख सकने का है। जब भूमि नयी-नयी थी, संस्कृति शब्दों की वाचिकता में महफ़ूज़ थी और छापे की मशीनों वाले परदेसी जहाज़ पहली बार तट पर लग रहे थे। हमारे स्वाधीन पुरखों ने परम्परा की जड़ पर मँडराता ख़तरा देखा और शब्दों, बिम्बों, ध्वनियों को किसी क़दर नष्ट होने से बचाया था।
यह उपन्यास अतिपरिष्कार, अतिवाचालता और अतिअन्तरंगता से टनाटन लेखन विश्व से उलट कर एक खोये हुए सहज, सुगम और सघन मार्ग और शाब्दिक जड़ों की ईमानदार टोह यात्रा है जिसका न कोई शुरू है न ही अन्त। निरन्तरता ही इसका प्रारब्ध है और रात्रि इसके रंगों आकारों का गुप्त तलघर। -मृणाल पाण्डेSKU: VPG9326354905₹150.00₹200.00 -
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Achchha To Tum Yahan Ho
0 out of 5(0)अच्छा तो तुम यहाँ हो –
राजेन्द्र क़रीने के कथाकार हैं। जन और जीवन से उन्हें गहरा लगाव है और वे कहानियों का ‘कंटेंट’ इर्द-गिर्द घट रही घटनाओं में तलाशते हैं। उनकी क़लम बदी की मुख़ालिफ़ और नेकी की हिमायती है। मानवीय रिश्तों और मनुष्यत्व की गरिमा में उनका गहरा यक़ीन है। लोक के वृत्त में रहते हुए चीज़ों का सन्धान करने की कला उनके पास है और उनका यह हुनर उनकी कहानियों में बख़ूबी झलकता है। चाहे ‘अच्छा तो तुम यहाँ हो’ के स्त्री-पुरुष हों या ‘जयहिन्द’ के कलेक्टर या कमांडर अथवा ‘पाइपर माउस’ का नायक चूहा, वे हमें बेहद अपने लगते हैं, हमारे अपने बीच के परिचित और जाने-पहचाने।
राजेन्द्र घटनाओं और संवादों की लटों से कहानी को बहुत जतन से गूँथते हैं। उनकी भाषा उनका साथ देती है। वे कहीं लड़खड़ाते नहीं और न ही हड़बड़ी में भागते दीखते हैं। सधी हुई चाल, न प्रकम्प, न उतावलापन। वे तनाव और लगाव दोनों को बहुत सलीके से व्यक्त करते हैं। वे अपनी ओर से नहीं बोलते, बल्कि वाक़ये और किरदार बोलते हैं। उनके पात्र पाठक को अपने साथ-साथ देर और दूर तलक ले चलने की क़ुव्वत रखते हैं। यही नहीं, इस यात्रा के बाद पाठक के लिए उन्हें भूल पाना मुमकिन नहीं हो पाता।
राजेन्द्र शब्दों को विचारों की मद्धिम आँच में पकाते हैं। वे रिश्तों की सान्द्रता को चीन्हते हैं और क़लम से रिश्तों की देह में धँसी किरचों को बीनते हैं। उनकी कथायात्रा हताशा, नैराश्य, अवसाद अथवा पलायन के साथ समाप्त नहीं होती, वह साहसपूर्वक आगे की यात्रा की भूमिका रचती है। राजेन्द्र यथार्थ से मुठभेड़ के साहसी और चेतस कथाकार हैं और समाज और व्यवस्था के खोट और खुरंट को उजागर करने से नहीं चूकते। वे चुहल भी करते हैं और तंज़ भी कसते हैं। इन लम्बी कहानियों में वे कहीं भी शिथिलता या स्फीति के शिकार नहीं होते। आज के समय की ये कहानियाँ समकालीन कथा जगत को समृद्ध करती हैं।——डॉ. सुधीर सक्सेनाSKU: VPG9326355698₹165.00₹220.00
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