He is widely considered to be one of the greatest Advaita teachers, a teaching of non-duality. He takes us beyond the realms of the ego and beyond the illusion of subject/object, good or bad, high or low, to the ground upon which the manifest universe rests. This is the place where intellect and mind cannot reach, and it is beyond words. This book by Dr. Powell is a masterful work that clearly shows the way to get us back to where we were.
Dialogues on Reality
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Abhaga Painter
0 out of 5(0)अभागा पेंटर –
वह कई बार अपनी बनाई हुई पेन्टिंग फाड़ चुका था। जो भाव वो चाह रहा था वो आ नहीं पा रहा था। वो चाहता था कि पेन्टिंग को देखकर व्यक्ति उसे देखता रह जाये तथा उसे सजीव होने का अहसास हो। वो महान चित्रकारों के स्तर का भाव उतारना चाह रहा था। उसकी इच्छा होती थी कि वो रात में भी उसी कमरे में सो जाये तथा रात के सन्नाटे में पेन्टिंग बनाये। लेकिन जेल प्रशासन ने इसकी अनुमति उसे नहीं दी।
आख़िर उसकी मेहनत रंग लायी एवं एक रचना ने अपनी आकृति प्राप्त कर ली। पेन्टिंग का विषय दिल को छू लेने वाला था ‘एक स्कूल की बच्ची स्कूल की ड्रेस में अपना स्कूल बैग लिए, उदास खड़ी हुई है। उसके सामने एक तरफ़ एक व्यक्ति बढ़ी हुई दाढ़ी-मूँछों के साथ क़ैदी के कपड़ों में जेल की सलाख़ों के पीछे खड़ा हुआ उसे बे-नज़रों से देख रहा है तथा दूसरी तरफ़ बादलों के पीछे परी जैसे सफ़ेद कपड़ों में एक महिला असहाय होकर बिटिया को निहार रही है। बिटिया आँखों में आँसू लिए हुए उस महिला को देख रही है। तीनों आकृतियों की आँखों में बेचैन कर देने वाली पीड़ा एवं दुख है।’ चित्र को इतनी सफ़ाई से बनाया गया था कि देखने वाला वेदना से कराह उठता था। चित्र क्या था, दुखों एवं वेदना की एक पूरी गाथा थी।
डिप्टी साहब ने जब पहली बार चित्र को देखा तो वह देखते ही रह गये। उन्हें पहली बार महेन्द्र के व्यक्तित्व की गहराई का अहसास हुआ। उनके मुख से निकल पड़ा ‘एक महान कालजयी वैश्विक रचना।’
फिर उन्होंने भावावेश में आकर महेन्द्र को गले से लगा लिया—’महेन्द्र बाबू आपको यह कृति बहुत ऊँचाई पर ले जायेगी। इसे मैं स्वयं दिल्ली लेकर जाऊँगा।’ महेन्द्र तो अभी भी उस कृति की रचना प्रक्रिया में ही खोया हुआ था। वह अभी भी सामान्य मनोदशा में लौट नहीं पाया था।—इसी उपन्यास सेSKU: VPG8194928706₹337.00₹450.00 -
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Aadhunik Kavi Vimarsh
0 out of 5(0)आधुनिक कवि विमर्श –
‘डॉ. धनंजय वर्मा ने आधुनिकता को एक व्यापक सन्दर्भ में देखा-परखा है और विश्व साहित्य पर उनको दृष्टि रही है। उन्हें भारतीय सामाजिक परिवेश का भी ध्यान है। इसीलिए आधुनिकता सम्बन्धी उनका विवेचन किन्हीं आयातित सिद्धान्तों पर आधारित न होकर उनकी अपनी समझ बूझ से उपजा है। आधुनिकता के सन्दर्भ में धनंजय ने जिस रचनाशीलता पर विचार किया है उससे उन्होंने अन्तरंग साक्षात्कार किया है और हम सब आश्वस्त हैं कि उनका यह अध्ययन आधुनिकता के विषय में प्रचलित कई भ्रान्तियों को तोड़ेगा और हमें चीज़ों को सही सन्दर्भ में देखने की समझ देगा।’—डॉ. प्रेमशंकर, सागर
लेखक ने अपनी मौलिक दृष्टि से आधुनिकता, आधुनिकीकरण, समकालीनता, परम्परा आदि प्रत्ययों और विषयों में अभूतपूर्व विवेचन किया है। लेखक के चिन्तन, विषय के प्रति एप्रोच और विश्लेषण में अभूतपूर्वता है। आधुनिकता के प्रत्यय के सन्दर्भ में लोक से हटकर अपना विशिष्ट सोच-विचार प्रस्तुत किया है। इससे लेखकों, आलोचकों के मस्तिष्क में बने-बनाये ढाँचे टूटेंगे और आधुनिकता, समसामयिकता आदि के विषय में पुनर्विचार करना होगा। लेखक में उच्चकोटि की आलोचनात्मक क्षमता है और आद्योपान्त अपने दृष्टिकोण को अध्ययन और तर्कों से पुष्ट करने का प्रातिभ ज्ञान है।—डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
आलोचक ने हिन्दी के स्वच्छन्दतावादी कवियों को ग़ैर-आधुनिक सिद्ध करने के आलोचकीय भ्रमों का तार्किक समाधान किया है। मुझे नहीं लगता कि आधुनिकता में अन्तर्निहित विविध प्रवृत्तियों—धाराओं के बारे में इतनी समग्र पड़ताल हिन्दी में और कहीं उपलब्ध है इस पड़ताल का क्षितिज निश्चय ही देशज से लेकर वैश्विक है।—डॉ. कमला प्रसाद
इन पुस्तकों (आधुनिकता के बारे में तीन अध्याय, आधुनिकता के प्रतिरूप और समावेशी आधुनिकता) की विशेषता यही है कि ये शोध प्रबन्धों की जड़ता से ग्रस्त नहीं है। मौलिक समीक्षा की विचारशीलता और गम्भीरता इनमें आद्यन्त उपलब्ध है। कविता केन्द्रित आधुनिकता सम्बन्धी अध्ययन होने से धनंजय वर्मा ने अपनी पुस्तक-त्रयी में छायावाद से लेकर अज्ञेय और भारती (नागार्जुन और सुमन, मुक्तिबोध और शमशेर) तक की हिन्दी कविता को विश्लेषण का विषय बनाया है। एक तरह से यह आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास विश्लेषण भी है। धनंजय वर्मा की समावेशी आधुनिकता सम्बन्धी अवधारणा एवं कविता के विश्लेषण के कारक तत्त्व दरअसल भविष्य के समीक्षकों के लिए विचारशील पीठिका तैयार करते हैं। उनकी अवधारणा में देशज आधुनिकता के बीज तत्त्व बिखरे पड़े है।—डॉ. ए. अरविन्दाक्षन
यह विवेचन इतना सन्दर्भसम्पन्न और आलोचना प्रगल्भ है कि लगता है जैसे हम काव्य-आलोचना के साथ-साथ आधुनिक कविता के सन्दर्भ ग्रन्थ से या लघु एनसायक्लोपीडिया से साक्षात्कार कर रहे है। धनंजय की इस पुस्तक का यदि ठीक से नोटिस हिन्दी आलोचना और हिन्दी के साहित्यिक एवं भाषिक विकास की दृष्टि से लिया जाता तो एक बड़ा विमर्श आधुनिकता को लेकर हो सकता था।—डॉ. रमेश दवे
आधुनिकता के अबतक के विकास और उसके छद्म तथा वास्तविक, अप्रासंगिक और प्रासंगिक, अप्रामाणिक और प्रामाणिक रूपों के बीच एक स्पष्ट विभाजक रेखा खींचने की कोशिश की गयी है। धनंजय वर्मा आधुनिकता के समग्र वैचारिक चिन्तन से टकराते है।…धनंजय वर्मा पश्चिमी सन्दर्भों में और उनसे हटकर आधुनिकता के स्वरूप को स्पष्ट करने की कोशिश करते हैं और आधुनिकीकरण पर विचार करने के लिए धनंजय वर्मा ने भारतीय सन्दर्भ और हिन्दी चिन्तन को आधार बनाया है।—डॉ. परमानन्द श्रीवास्तवSKU: VPG9326352963₹307.00₹410.00 -
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Man’s Search For Meaning
0 out of 5(0)Basically this book is mentioned what is the meaning of man and focus on how create suicide and depression. However contribution to psychiatry was quite different and handle many honors achievement includes. How to save human and his nature Logo therapy system in used our life and save human mind and human nature. This book is based on save the Human mind and Human nature. How you can apply and direct the power of your subconscious mind to achieve all your goals and dreams. The Power of Your Subconscious Mind has inspired millions of readers to unlock the unseen forces and invisible power within them.
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Aathwan Rang @ Pahad Gaatha
0 out of 5(0)आठवाँ रंग@ पहाड़-गाथा –
उपन्यास में लेखक ने सामाजिक प्रश्नों को सजग दृष्टि से उठाया है। किसी भी धर्म के प्रति आग्रह और पक्षपात न दिखाकर मानव सम्बन्धों की कसौटी पर सभी की जड़ता और क्रूरता को लेखक ने गम्भीरता से परखा है। प्रदीप जिलवाने की भाषा अत्यन्त सजीव, संयत और साफ़-सुथरी है, जिसके कारण उपन्यास का सृजनात्मक पक्ष उभरकर सामने आता है।
प्रदीप जिलवाने ने अपने पात्रों के माध्यम से समाज के उन काले यथार्थ पर सार्थक रोशनी डालने की कोशिश की है, जो बहुधा मनुष्य जीवन के अधरंग हिस्से में जड़ता बनकर काई की तरह चिपका रहता है और वह कभी उजागर नहीं होता है। कभी उसके सामने धर्म आड़े आ जाता है तो कभी जाति तो कभी वर्गभेद। वैसे देखा जाये तो जिलवाने ने इस उपन्यास के माध्यम से आदिवासी समाज के विनष्ट होते जा रहे जीवन को रेखांकित करने की भरपूर कोशिश की है। फिर भी शिकंजे में फँसे और पीड़ित मामूली आदमी की व्यथा-कथा अधूरी ही रह जाती है। लेकिन उपन्यास में लेखक यह बताने में सफल रहता है कि संस्थागत धर्म के लिए इन्सान अन्ततः अपनी शक्ति संरचना की मुहिम में एक औज़ार भर होता है।
दरअसल, ‘आठवाँ रंग@ पहाड़-गाथा’ उपन्यास के बहाने मनुष्यता को अन्तिम और अनिवार्य धर्म रेखांकित करने की एक कोशिश है और वह भी बग़ैर किसी अन्य को ख़ारिज करते हुए।SKU: VPG9326352789₹180.00₹240.00
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