Dr. Mithilesh Kumari Mishra (Vyaktitva Aur Krititva) डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्रा (व्यक्तित्व और कृतित्व) BookHeBook Online Store
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Dr. Mithilesh Kumari Mishra (Vyaktitva Aur Krititva) डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र (व्यक्तित्व और कृतित्व)


1988 में डा० मिथिलेश कुमारी मिश्र की रचनाओं से मेरा परिचय हुआ । डा० मिथिलेश कुमारी मिश्र ने हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में मौलिक रचनाएँ की इनमें से दाक्षायणी और देवयानी महाकाव्य है । संस्कृत में आम्रपाली नाटक है । दाक्षायणी और देवयानी में महाकाव्य के शास्त्रीय लक्षण अधिकांश पूरे हुए हैं और रोचकता में भी कोई कमी नहीं है । अंग्रेजी काव्य इण्डिया में भारतीय संस्कृति को उजागर करने वाली मानव जीवन की चिरंतन समस्याओं का उठाया गया है । अस्थिदान में मानव कल्याण को केन्द्र बिन्दु बनाया गया है। सुजान में इतिहास के रक्त रंजित पन्नों का सजीव बिम्ब प्रस्तुत देवयानी, आम्रपाली, सुजान और इण्डिया में नारी के विभिन्न पहलुओं और विभिन्न भूमिकाओं को बड़ी सतर्कता के साथ चित्रित किया गया है। इतना होने पर भी डा० मिथिलेश कुमारी मिश्र या उनकी कृतियों पर आलोचनात्मक कार्य नहीं हुआ। इन कृतियों को पढ़कर मुझे आश्चर्य और दुःख भी हुआ कि ऐसी श्रेष्ठ कृतियों का नाम तक लोगों के बीच नहीं पहुंचा। साना कि इन कृतियों पर कोई शोधकार्य किया जाय जिससे साहित्य जगत् को लाभ हो  साहित्य प्रेमी इस शोध प्रबन्ध का स्वागत करेंगे एवं इसका लाभ उठायेंगे ।

प्रस्तुत शोध प्रबंध उक्त विचार को असत्य एवं निराधार साबित करता है। प्रस्तुत ग्रंथ शोध प्रबंध के रूप में लिखा हुआ है। इसमें डॉ. मिथिलेश कुमारी की जीवनी का जो चित्र प्रस्तुत है, उससे पता चलता है कि डॉ. मिथिलेश कुमारी साहित्यिक प्रतिभा संपन्न मनीषी ही नहीं, परन्तु मानवता की सच्ची संविका भी हैं। इसलिए ही उनकी कृतियों में पौराणिक नारियों की सेवा-परायणता का मार्मिक चित्रण हुआ है। देवयानी की शर्मिला के सुख से कयर्थियों घोषणा करती है ।

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डॉ. मिथिलेश कुमारी समुद्र में छिपे रत्न के समान हैं। जब तक गोताखोर समुद्र की गहराई में नहीं पैठते और रत्नाकर के रत्नों को बाहर नहीं लाते, तब तक न रत्नों का पता लगता, न रत्नों का मूल्य, न उनको प्रसिद्ध ही फैलती है। डॉ. रमा लक्ष्मी नरसिंहन ने साहित्य रत्नाकर में पैठकर अपने अपूर्व परिश्रम व अद्भुत साधना से डॉ. मिथिलेश कुमारी की प्रतिभा व महिमा को हमारे सामने रखा है, जिससे हमें पता लगा है कि प्रतिभा की धनी मिथिलेश कुमारी रतनगर्भा है।

डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र विहार को श्रेष्ठ साहित्यिक विभूतियों में एक हैं। आप संस्कृत, हिन्दी व अंग्रेजी पर समान अधिकार रखती है। आपकी प्रतिभा बहुमुखी है। फलतः कर्म उम्र में बहुत-सी रचनाएँ लखनी से निकली हैं। हर एक रचना की अपनी- अपनी विशेषता है। जब तक उन सभी रचनाओं का अध्ययन नहीं किया जाय तब तक डॉ. मिथिलेश कुमारी की कृतियों का समग्र मूल्यांकन संभव नहीं होगा ।

Binding

Hard Cover ( कठोर आवरण )

Language

Hindi ( हिंदी )

Pages

245

Publisher

Janaki Prakashan ( जानकी प्रकाशन )

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