डॉ. मिथिलेश कुमारी समुद्र में छिपे रत्न के समान हैं। जब तक गोताखोर समुद्र की गहराई में नहीं पैठते और रत्नाकर के रत्नों को बाहर नहीं लाते, तब तक न रत्नों का पता लगता, न रत्नों का मूल्य, न उनको प्रसिद्ध ही फैलती है। डॉ. रमा लक्ष्मी नरसिंहन ने साहित्य रत्नाकर में पैठकर अपने अपूर्व परिश्रम व अद्भुत साधना से डॉ. मिथिलेश कुमारी की प्रतिभा व महिमा को हमारे सामने रखा है, जिससे हमें पता लगा है कि प्रतिभा की धनी मिथिलेश कुमारी रतनगर्भा है।
डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र विहार को श्रेष्ठ साहित्यिक विभूतियों में एक हैं। आप संस्कृत, हिन्दी व अंग्रेजी पर समान अधिकार रखती है। आपकी प्रतिभा बहुमुखी है। फलतः कर्म उम्र में बहुत-सी रचनाएँ लखनी से निकली हैं। हर एक रचना की अपनी- अपनी विशेषता है। जब तक उन सभी रचनाओं का अध्ययन नहीं किया जाय तब तक डॉ. मिथिलेश कुमारी की कृतियों का समग्र मूल्यांकन संभव नहीं होगा ।
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