In the past decades, Jain studies have seen a significant increase in interest. The organizers of the 12th World Sanskrit Conference will be remembered by scholars for arranging a panel on the subject. This was the first such conference. This volume contains ten papers that demonstrate the variety, importance and breadth of topics that are possible. Philological analysis is still useful regardless of whether it focuses on a single work or on a group of texts. An historical approach is required to study the “strategy and narrative” and predication. Kavya literature lends itself for new and deeper interpretations. The reader will also see the continuous renewal of Jainism as a new “literary genre” and a new sect gain momentum in modern times.
Jaina Studies
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Hindi Novels and Litrature
Hindi Vyakaran
0 out of 5(0)हिन्दी व्याकरण –
…व्याकरण की उपयोगिता और आवश्यकता इस पुस्तक में यथास्थान बतलायी गयी है, तथापि यहाँ इतना कहना उचित जान पड़ता है कि किसी भाषा के व्याकरण का निर्माण उसके साहित्य की पूर्ति का कारण होता है और उसकी प्रगति में सहायता देता है। भाषा की सत्ता स्वतन्त्र होने पर भी व्याकरण उसका सहायक अनुयायी बनकर उसे समय-समय और स्थान-स्थान पर जो आवश्यक सूचनाएँ देता है, उससे भाषा का लाभ होता है…
भाषा की चंचलता दूर करने और उसे व्यस्थित रूप में रखने के लिए व्याकरण ही प्रधान और सर्वोत्तम साधन है।… —कामताप्रसाद गुरुSKU: VPG9326351027₹210.00₹280.00 -
Hindi Novels and Litrature
Hindi Vyakaran Ke Naveen Kshitij
0 out of 5(0)हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज –
‘व्याकरण’ अपने प्रकट स्वरूप में एककालिक (स्थिरवत् प्रतीयमान) भाषा का विश्लेषण है, जो भाषाकृति-परक है। किन्तु, वह पूर्णता व संगति तभी पाता है जब ऐतिहासिक-तुलनात्मक भाषावैज्ञानिक प्रक्रियाओं तथा अर्थ विचार की धारणाओं के भीतर से निकल कर आये। यह बात कारक, काल, वाच्य, समास जैसी संकल्पनाओं के साथ विशेषतः और पूरे व्याकरण पर सामान्यतः लागू होती है। फिर भी, व्याकरण है तो प्रधानतः आकृतिपरक अवधारणा ही।
हिन्दी व्याकरण-पुस्तकों के निर्माण की अब तक जो लोकप्रिय शैली रही है, वह अंग्रेज़ी ग्रैमर से अभिभूत रहे पण्डित कामताप्रसाद गुरु के प्रभामण्डल से बाहर निकलकर, कुछ नया सोचने में असमर्थ रही है। वैसे पण्डित किशोरीदास वाजपेयी और उनके भी पूर्वज पण्डित रामावतार शर्मा ने हिन्दी व्याकरण को अधिक स्वस्थ और तर्कसंगत पथ प्रदान करने के अथक प्रयत्न किये, किन्तु उस पथ पर चलना लेखक को रास नहीं आया। लेखक का स्पष्ट विचार है कि हिन्दी भाषा को उसके मूल विकास-परिवेश [वेदभाषा-पालि-प्राकृत-अपभ्रंश-अवहट्ट-हिन्दी] में समझना चाहिए; हिन्दी भाषा के विश्लेषण को भी भारतीय भाषा दर्शन का संवादी होना चाहिए।
‘हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज’ पुस्तक का लेखक भारतीय भाषा दर्शन से उपलब्ध व्याकरणिक संकल्पनाओं पद, प्रकृति, प्रातिपदिक, धातु, प्रत्यय, विभक्ति, कारक, काल, समास, सन्धि, उपसर्ग आदि को मूलार्थ में हिन्दी व्याकरण में विनियुक्त या अन्वेषित करने को प्रतिबद्ध रहा है।
इस विषय पर हिन्दी में अब तक प्रकाशित पुस्तकों में विशेष महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी कृति।SKU: VPG8126340859₹337.00₹450.00 -
Hindi Novels and Litrature
Sanchayiata
0 out of 5(0)संचयिता –
सबसे बड़ा पारखी है समय और वह किसी का लिहाज नहीं करता। जो रचना काल की कसौटी पर खरी उतरती है, उसकी सार्थकता एवं चिर नवीनता के सम्मुख प्रश्नचिह्न लगाना असम्भव है। ‘दिनकर’ जी की एक नहीं अनेक रचनाएँ ऐसी हैं जिनका महत्त्व तो अक्षुण्ण है हो, उनको प्रासंगिकता भी न्यूनाधिक पूर्ववत् ही है। आज की पीढ़ी का रचनाकार भी दिनकर-साहित्य से अपने को उसी प्रकार जुड़ा हुआ अनुभव करता है जिस प्रकार उसके समकालीनों ने किया। ऐसे ही समय की कसौटी पर खरी उतरी शाश्वत रचनाओं की अन्यतम निधि है—’संचयिता’, और यह निधि दिनकर जी ने भारतीय ज्ञानपीठ के आग्रह पर तब संजोयी थी जब उन्हें उनकी अमर काव्यकृति ‘उर्वशी’ के लिए 1972 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
इस संकलन में दिनकर जी के प्रखर व्यक्तित्व के साथ उनकी व्यक्तिगत रुचि भी झलकती है। रचनाओं को लेकर वे देश के कोने-कोने में गये और अपनी ओजस्वी वाणी से काव्य-प्रेमियों को कृतार्थ करते रहे। उनके काव्य पाठ की अनुगूँज आज भी देश के लाखों काव्य-प्रेमियों के मन में वैसी की वैसी ही बनी हुई है।
परवर्ती पीढ़ियों पर दिनकर-काव्य की छाप निरन्तर पड़ती रही है। छायावादोत्तर हिन्दी काव्य को समझने में ही नहीं वरन आज के साहित्य के मर्म तक पहुँचने में भी काव्य के हर विद्यार्थी के लिए दिनकर-काव्य का गम्भीर अनुशीलन अनिवार्य है।SKU: VPG9326350709₹150.00₹200.00
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