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Palasi Ka Yuddha


पलासी का युद्ध –
‘पलासी का युद्ध’ बांग्ला लेखक तपन मोहन चट्टोपाध्याय की प्रसिद्ध कृति ‘पलाशिर युद्ध’ का रूपान्तर है। पलासी के युद्ध की घटना प्रसिद्ध ऐतिहासिक तथ्य है। इतिहास में भी एक अपना रस है, उस रस को सुरक्षित रखते हुए कृतिकार ने इस रचना-शिल्प के माध्यम से इतिहास और कथा साहित्य को सम्मिलित रूप से समृद्ध किया है।
1757 ईसवी बंगाल में मध्य युग के अवसान और वर्तमान युग के आविर्भाव का सन्धिकाल माना जाता है। पलासी का युद्ध इसी समय की घटना है। कथाकार ने उस समय के समाज तथा कलकत्ता के तत्कालीन शासकों की कैसी अवस्था थी, इस कृति में इसका बहुत ही प्रामाणिक एवं रोचक चित्रांकन किया है। कलकत्ता शहर की स्थापना और तत्कालीन परिस्थितियों को समझने में कृति का महत्त्व निर्विवाद है।
उपन्यास की शैली अत्यन्त आकर्षक है। उसमें इतिहास की घटनाओं को ऐसे सहज ढंग से व्यक्त करने की क्षमता है, एक आत्मीय भाव है कि पाठक ख़ुद-ब-ख़ुद उससे जुड़ता चला जाता है।
हिन्दी पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए वर्षों से दुर्लभ इस कृति का ‘पुनर्नवा’ श्रृंखला में प्रकाशन करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।

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पलासी का युद्ध –
‘पलासी का युद्ध’ बांग्ला लेखक तपन मोहन चट्टोपाध्याय की प्रसिद्ध कृति ‘पलाशिर युद्ध’ का रूपान्तर है। पलासी के युद्ध की घटना प्रसिद्ध ऐतिहासिक तथ्य है। इतिहास में भी एक अपना रस है, उस रस को सुरक्षित रखते हुए कृतिकार ने इस रचना-शिल्प के माध्यम से इतिहास और कथा साहित्य को सम्मिलित रूप से समृद्ध किया है।
1757 ईसवी बंगाल में मध्य युग के अवसान और वर्तमान युग के आविर्भाव का सन्धिकाल माना जाता है। पलासी का युद्ध इसी समय की घटना है। कथाकार ने उस समय के समाज तथा कलकत्ता के तत्कालीन शासकों की कैसी अवस्था थी, इस कृति में इसका बहुत ही प्रामाणिक एवं रोचक चित्रांकन किया है। कलकत्ता शहर की स्थापना और तत्कालीन परिस्थितियों को समझने में कृति का महत्त्व निर्विवाद है।
उपन्यास की शैली अत्यन्त आकर्षक है। उसमें इतिहास की घटनाओं को ऐसे सहज ढंग से व्यक्त करने की क्षमता है, एक आत्मीय भाव है कि पाठक ख़ुद-ब-ख़ुद उससे जुड़ता चला जाता है।
हिन्दी पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए वर्षों से दुर्लभ इस कृति का ‘पुनर्नवा’ श्रृंखला में प्रकाशन करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।

ABOUT THE AUTHOR
तपन मोहन चट्टोपाध्याय –
तपन मोहन चट्टोपाध्याय अपने समय के बांग्ला के प्रसिद्ध लेखक और विधिवेत्ता रहे हैं। राजा राममोहन राय और ठाकुर परिवार से उनके निकट के सम्बन्ध थे। तपन मोहन ने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत वकालत से की। बाद में वे पूर्णकालिक साहित्य साधना में लग गये। उन्होंने यूरोप के अनेक देशों का भ्रमण किया और भारतीय दर्शन, इतिहास और साहित्य पर अनेक स्थानों में व्याख्यान दिये।
श्री चट्टोपाध्याय ‘विश्वभारती सोसायटी’ की संसद (कार्यकारिणी समिति) के 1941 से 1951 तक सदस्य रहे। और फिर ‘विश्वभारती’ के विश्वविद्यालय बन जाने पर उसकी एक्ज़ीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य (सन् 1960 तक) भी रहे।
तपन मोहन चट्टोपाध्याय की फ्रांसिसी भाषा में लिखित ‘सू ले माँगुए’ (आम्रकुंज की छाया में) के अतिरिक्त उनकी ‘एपल ब्लॉस्सोम ऐंड अदर स्टोरीज़’, ‘आल्पना’, ‘पलाशिर युद्ध’, ‘स्मृतिरंग’, ‘बांग्ला लिरिकेर गोड़ार कथा’, ‘हिन्दू आईने बिबाह’ (हिन्दू विवाह विधान) तथा ‘द रोड टू प्लासी’ कृतियाँ प्रकाशित हैं।

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