Major research on Tantra, Hindu meditation and exercise system, as well as the nature of consciousness.
The Tantric Path to Higher Consciousness
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Ajneya Rachanawali (Volume-11)
0 out of 5(0)अज्ञेय रचनावली-11
अज्ञेय एक ऐसे विलक्षण और विदग्ध रचनाकार हैं, जिन्होंने भारतीय भाषा और साहित्य को भारतीय आधुनिकता और प्रयोगधर्मिता से सम्पन्न किया है: तथा बीसवीं सदी की मूलभूत अवधारणा ‘स्वतन्त्रता’ को अपने सृजन और चिन्तन में केन्द्रीय स्थान दिया है। उनकी यह भारतीय आधुनिकता उन्हें न सिर्फ़ हिन्दी, बल्कि समूचे भारतीय साहित्य का एक ‘क्लासिक’ बनाती है। विद्रोही और प्रश्नाकुल रचनाकार अज्ञेय ने कविता, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, नाटक, आलोचना, डायरी, यात्रा वृत्तान्त, संस्मरण, सम्पादन, अनुवाद, व्यस्थापन, पत्रकारिता आदि विधाओं में लेखन किया है। उनके क्रान्तिकारी चिन्तन ने प्रयोगवाद, नयी कविता और समकालीन सृजन में निरन्तर नये प्रयोगों से नये सृजन के प्रतिमान निर्मित किये हैं। जड़ीभूत एवं रूढ़ जीवन-मूल्यों से खुला विद्रोह करते हुए इस साधक ने जिन नयी राहों का अन्वेषण किया, वे असहमति और विरोध का मुद्दा भी बनीं, लेकिन आज स्थिति यह है कि अज्ञेय को ठीक से समझे बिना नयी पीढ़ी के रचनाकर्म के संकट का आकलन करना ही मुश्किल है।
‘अज्ञेय रचनावली’ में अज्ञेय का तमाम क्षेत्रों में किया गया विपुल लेखन पहली बार एक जगह समग्र रूप में संकलित है। अज्ञेय जन्म-शताब्दी के इस ऐतिहासिक अवसर पर हिन्दी के मर्मज्ञ और प्रसिद्ध आलोचक प्रो. कृष्णदत्त पालीवाल के सम्पादन में यह कार्य विधिवत सम्पन्न हुआ। आशा है, हिन्दी साहित्य के शोधार्थियों एवं अध्येताओं के लिए अज्ञेय की सम्पूर्ण रचना सामग्री एक ही जगह एक साथ उपलब्ध हो सकेगी।SKU: VPG9326352253₹750.00₹1,000.00 -
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Abhaga Painter
0 out of 5(0)अभागा पेंटर –
वह कई बार अपनी बनाई हुई पेन्टिंग फाड़ चुका था। जो भाव वो चाह रहा था वो आ नहीं पा रहा था। वो चाहता था कि पेन्टिंग को देखकर व्यक्ति उसे देखता रह जाये तथा उसे सजीव होने का अहसास हो। वो महान चित्रकारों के स्तर का भाव उतारना चाह रहा था। उसकी इच्छा होती थी कि वो रात में भी उसी कमरे में सो जाये तथा रात के सन्नाटे में पेन्टिंग बनाये। लेकिन जेल प्रशासन ने इसकी अनुमति उसे नहीं दी।
आख़िर उसकी मेहनत रंग लायी एवं एक रचना ने अपनी आकृति प्राप्त कर ली। पेन्टिंग का विषय दिल को छू लेने वाला था ‘एक स्कूल की बच्ची स्कूल की ड्रेस में अपना स्कूल बैग लिए, उदास खड़ी हुई है। उसके सामने एक तरफ़ एक व्यक्ति बढ़ी हुई दाढ़ी-मूँछों के साथ क़ैदी के कपड़ों में जेल की सलाख़ों के पीछे खड़ा हुआ उसे बे-नज़रों से देख रहा है तथा दूसरी तरफ़ बादलों के पीछे परी जैसे सफ़ेद कपड़ों में एक महिला असहाय होकर बिटिया को निहार रही है। बिटिया आँखों में आँसू लिए हुए उस महिला को देख रही है। तीनों आकृतियों की आँखों में बेचैन कर देने वाली पीड़ा एवं दुख है।’ चित्र को इतनी सफ़ाई से बनाया गया था कि देखने वाला वेदना से कराह उठता था। चित्र क्या था, दुखों एवं वेदना की एक पूरी गाथा थी।
डिप्टी साहब ने जब पहली बार चित्र को देखा तो वह देखते ही रह गये। उन्हें पहली बार महेन्द्र के व्यक्तित्व की गहराई का अहसास हुआ। उनके मुख से निकल पड़ा ‘एक महान कालजयी वैश्विक रचना।’
फिर उन्होंने भावावेश में आकर महेन्द्र को गले से लगा लिया—’महेन्द्र बाबू आपको यह कृति बहुत ऊँचाई पर ले जायेगी। इसे मैं स्वयं दिल्ली लेकर जाऊँगा।’ महेन्द्र तो अभी भी उस कृति की रचना प्रक्रिया में ही खोया हुआ था। वह अभी भी सामान्य मनोदशा में लौट नहीं पाया था।—इसी उपन्यास सेSKU: VPG8194928706₹337.00₹450.00 -
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Adwaitka Upanishad
0 out of 5(0)अद्वैतका उपनिषद् –
आद्य शंकराचार्य भारत को और वैदिक परम्परा को प्राप्त हुआ दिव्य व्यक्तित्व है। गीता में कहा गया है कि जब धर्म की ग्लानि होती है तब मुक्त पुरुष को अवतार लेना पड़ता है। परन्तु भारत में 6-7वें शतक में देवत्व के समकक्ष विद्वान सन्त ने जीवन के पच्चीसवें वर्ष में वैदिक धर्मग्लानि हटाकर नव उत्साह से भारत में वैदिक धर्म की संस्थापना की और यह कार्य आगे अखण्डित और सामर्थ्य से चलता रहे, इस दूरदृष्टि से चार मठों की चार दिशाओं में स्थापना की। इसका परिणाम इतना सशक्त था कि आज तक वह सनातन वैदिक परम्परा हिन्दू नाम से दृढ़मूल है। और दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। आद्य शंकराचार्य जैसा बुद्धितेजस्वी महात्मा, प्रगल्भ विचारक, पन्थसमन्वय महर्षि इस भारत में होना और हिन्दू धर्म को प्राप्त होना, यह इस देश का और धर्म का उच्चतम पुण्यफल ही है। अवैदिक सम्प्रदायों का निरसन कर वैदिक सम्प्रदाय में समन्वय स्थापित कर उन्होंने सर्व सम्प्रदायों की परस्पर द्वेष व मत्सरवादी विचारधारा को समाप्त कर दिया। ‘अद्वैत सिद्धान्त’ की स्थापना करके तथा अपने सर्व देवताओं का गुणगान करने वाले अनेक स्तोत्रों के माध्यम से पुनः अद्वैत का सन्देश देते हुए ‘भक्तिमार्ग’ की बैठक दृढ़मूल की।
मराठी की प्रसिद्ध उपन्यासकार शुभांगी भडभडे ने अपने अमृत महोत्सव वर्ष में हिन्दू धर्म के लिए अमृत रूप महान तत्त्ववेत्ता आद्य शंकराचार्य को अपने उपन्यास का नायक चुना, यह सचमुच रत्नकांचन योग है।
शुभांगी भडभडे ने आद्य शंकराचार्य को साधारण मराठी पाठकों तक पहुँचाने की अपनी प्रतिज्ञा सफलता से पूरी की है। मराठी में रचित उपन्यास का इस हिन्दी अनुवाद को अनेक पाठक मिलें, यही आशा है।SKU: VPG9387919976₹712.00₹950.00
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