The Yogasutra, Patanjali’s book, is one of six Darsanas of Ancient Indian Philosophy. It aims to reveal the mysteries of yoga and give insight into its practices, and to lead the aspirant to the realization of their individual selves to the ultimate self. The book is divided into four chapters. Chapter-I explains the different actions that are necessary to stop the mind from exhibiting its emotions. Chapter-II focuses on the gross impurities found in our minds. Chapter-III focuses on the dissolution of our worldly lives by resorting to Samyama. Chapter-IV describes the operation of the three-fold action that relates to the past, present and future. It shows how each individual self can be freed from the bonds of actions and is merged with Brahman. The Yoga Sutras of Patanjali are included in the book. Vyasa’s commentary is also included. English translations of the text and commentary, notes, appendix, and chart are all available.
Yogasutra of Patanjali
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Aadhunik Hindi Gadya Sahitya Ka Vikas Aur Vishleshan
0 out of 5(0)आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का विकास और विश्लेषण –
प्रख्यात आलोचक विजय मोहन सिंह की पुस्तक ‘आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का विकास और विश्लेषण’ में आधुनिकता को नये सिरे से परिभाषित और विश्लेषित करने की पहल है। काल विभाजन की पद्धति भी बदली, सटीक और बहुत वैज्ञानिक दिखलाई देगी।
साहित्य के विकासात्मक विश्लेषण की भी लेखक की दृष्टि और पद्धति भिन्न है। इसीलिए हम इस पुस्तक को आलोचना की रचनात्मक प्रस्तुति कह सकते हैं।
पुस्तक में आलोचना के विकास क्रम को उसके ऊपर जाते ग्राफ़ से ही नहीं आँका गया है। युगपरिवर्तन के साथ विकास का ग्राफ़ कभी नीचे भी जाता है। लेखक का कहना है कि इसे भी तो विकास ही कहा जायेगा।
लेखक ने आलोचना के पुराने स्थापित मानदण्डों को स्वीकार न करते हुए बहुत-सी स्थापित पुस्तकों को विस्थापित किया है। वहीं बहुत-सी विस्थापित पुस्तकों का पुनर्मूल्यांकन कर उन्हें उनका उचित स्थान दिलाया है।
पुस्तक में ऐतिहासिक उपन्यासों और महिला लेखिकाओं के अलग-अलग अध्याय हैं। क्योंकि जहाँ ऐतिहासिक उपन्यास प्रायः इतिहास की समकालीनता सिद्ध करते हैं, वहीं महिला लेखिकाओं का जीवन की समस्याओं और सवालों को देखने तथा उनसे जूझने का नज़रिया पुरुष लेखकों से भिन्न दिखलाई पड़ता है। समय बदल रहा है। बदल गया है। आज की महिला पहले की महिलाओं की तरह पुरुष की दासी नहीं है। वह जीवन में कन्धे से कन्धा मिलाकर चलनेवाली आधुनिक महिला है। वह पीड़ित और प्रताड़ित है तो जुझारू, लड़ाकू और प्रतिरोधक जीवन शक्ति से संचारित भी है।SKU: VPG9326352475₹562.00₹750.00 -
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Aathwan Rang @ Pahad Gaatha
0 out of 5(0)आठवाँ रंग@ पहाड़-गाथा –
उपन्यास में लेखक ने सामाजिक प्रश्नों को सजग दृष्टि से उठाया है। किसी भी धर्म के प्रति आग्रह और पक्षपात न दिखाकर मानव सम्बन्धों की कसौटी पर सभी की जड़ता और क्रूरता को लेखक ने गम्भीरता से परखा है। प्रदीप जिलवाने की भाषा अत्यन्त सजीव, संयत और साफ़-सुथरी है, जिसके कारण उपन्यास का सृजनात्मक पक्ष उभरकर सामने आता है।
प्रदीप जिलवाने ने अपने पात्रों के माध्यम से समाज के उन काले यथार्थ पर सार्थक रोशनी डालने की कोशिश की है, जो बहुधा मनुष्य जीवन के अधरंग हिस्से में जड़ता बनकर काई की तरह चिपका रहता है और वह कभी उजागर नहीं होता है। कभी उसके सामने धर्म आड़े आ जाता है तो कभी जाति तो कभी वर्गभेद। वैसे देखा जाये तो जिलवाने ने इस उपन्यास के माध्यम से आदिवासी समाज के विनष्ट होते जा रहे जीवन को रेखांकित करने की भरपूर कोशिश की है। फिर भी शिकंजे में फँसे और पीड़ित मामूली आदमी की व्यथा-कथा अधूरी ही रह जाती है। लेकिन उपन्यास में लेखक यह बताने में सफल रहता है कि संस्थागत धर्म के लिए इन्सान अन्ततः अपनी शक्ति संरचना की मुहिम में एक औज़ार भर होता है।
दरअसल, ‘आठवाँ रंग@ पहाड़-गाथा’ उपन्यास के बहाने मनुष्यता को अन्तिम और अनिवार्य धर्म रेखांकित करने की एक कोशिश है और वह भी बग़ैर किसी अन्य को ख़ारिज करते हुए।SKU: VPG9326352789₹180.00₹240.00 -
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Man’s Search For Meaning
0 out of 5(0)Basically this book is mentioned what is the meaning of man and focus on how create suicide and depression. However contribution to psychiatry was quite different and handle many honors achievement includes. How to save human and his nature Logo therapy system in used our life and save human mind and human nature. This book is based on save the Human mind and Human nature. How you can apply and direct the power of your subconscious mind to achieve all your goals and dreams. The Power of Your Subconscious Mind has inspired millions of readers to unlock the unseen forces and invisible power within them.
SKU: PRK1846041242₹224.00₹299.00 -
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Ajneya Rachanawali (Volume-11)
0 out of 5(0)अज्ञेय रचनावली-11
अज्ञेय एक ऐसे विलक्षण और विदग्ध रचनाकार हैं, जिन्होंने भारतीय भाषा और साहित्य को भारतीय आधुनिकता और प्रयोगधर्मिता से सम्पन्न किया है: तथा बीसवीं सदी की मूलभूत अवधारणा ‘स्वतन्त्रता’ को अपने सृजन और चिन्तन में केन्द्रीय स्थान दिया है। उनकी यह भारतीय आधुनिकता उन्हें न सिर्फ़ हिन्दी, बल्कि समूचे भारतीय साहित्य का एक ‘क्लासिक’ बनाती है। विद्रोही और प्रश्नाकुल रचनाकार अज्ञेय ने कविता, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, नाटक, आलोचना, डायरी, यात्रा वृत्तान्त, संस्मरण, सम्पादन, अनुवाद, व्यस्थापन, पत्रकारिता आदि विधाओं में लेखन किया है। उनके क्रान्तिकारी चिन्तन ने प्रयोगवाद, नयी कविता और समकालीन सृजन में निरन्तर नये प्रयोगों से नये सृजन के प्रतिमान निर्मित किये हैं। जड़ीभूत एवं रूढ़ जीवन-मूल्यों से खुला विद्रोह करते हुए इस साधक ने जिन नयी राहों का अन्वेषण किया, वे असहमति और विरोध का मुद्दा भी बनीं, लेकिन आज स्थिति यह है कि अज्ञेय को ठीक से समझे बिना नयी पीढ़ी के रचनाकर्म के संकट का आकलन करना ही मुश्किल है।
‘अज्ञेय रचनावली’ में अज्ञेय का तमाम क्षेत्रों में किया गया विपुल लेखन पहली बार एक जगह समग्र रूप में संकलित है। अज्ञेय जन्म-शताब्दी के इस ऐतिहासिक अवसर पर हिन्दी के मर्मज्ञ और प्रसिद्ध आलोचक प्रो. कृष्णदत्त पालीवाल के सम्पादन में यह कार्य विधिवत सम्पन्न हुआ। आशा है, हिन्दी साहित्य के शोधार्थियों एवं अध्येताओं के लिए अज्ञेय की सम्पूर्ण रचना सामग्री एक ही जगह एक साथ उपलब्ध हो सकेगी।SKU: VPG9326352253₹600.00₹800.00
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