कविता (Poetry)
Showing all 8 results
-
कविता (Poetry)
अनकही (ankahi)
कभी-कभी इस संसार को देखकर अजीब सा लगता है कि मनुष्य ऐसा क्यों है और वह ऐसा विस्मित कर देनेवाला व्यवहार कर सकता है? जब अजीबोगरीब दुनिया में हम होते हैं, हृदय में कविता की यारा का प्रवाह होने लगता है। कुछ कविता पूर्ण लिखने के लिए भाव का दबाव तीव्र हो जाता है और फिर कलम की स्याही अक्षर को जन्म देने लगती है। जब हम मौचक्क होते हैं, बेपता लिफाफा, दरख्त, नाता, पछी, अंधाशीशा और जब हम अप्राकृतिक होते हैं नदी, प्रकृति, जंगल में प्रेम, दरिया, चुनौतियों की तरह अनुभव करते हैं। जिन्दगी की जंग में हौसला को बनाये रखने के लिए जनून, कैसे, सफर, जीवन कला, मन इत्यादि सी विचारधारा का सम्बल लेना पड़ता है। आपसी जब गम के दबाब में टूटता है, अनकही, प्यार, राम, उसको, वादों की जंजीर की तरह तरप निकलती है।
प्रेम एक अनमोल एहसास है जिनके अनन्त बोल हैं। हर के अपने तराने है और मेरी प्रेम तरंग प्रेम सन्देश, आँखें, आह, दिल्लगी, उम्मीद, प्रेम की जीत, वजूद, प्रेम में बहती दिखाई पड़ती है। हम चाहे किसी भी स्थिति में क्यों न हों, ईश्वर बरबस ख्यालों में आते रहते हैं, जैसे राम वन्दना, भजन, दुर्गा आरती, दुर्गा गीत, अधीश, घनश्याम, ओम कहो श्याम वर्ण, नव सृष्टि करो माता की तरह जिस भूमि पर हम जन्म लेते हैं उसके लिए कुछ करने की हसरत जलता चाँद, निर्माण, खड़ा हुआ अपना भारत, राजनीति, अमर पात्र, राष्ट्र पुत्र के रूप में प्रस्तुत होती है और कुछ बिखड़े नाय जो मैं कह न पाऊंगा, आप खुद ही इसमें जाकर महसूस करेंगे।
SKU: JPPAT98077 -
कविता (Poetry)
अन्त: के स्वर (ant ke swar)
आज साहित्य जगत में छंद दम तोड़ते नजर आ रहे हैं, ऐसे में कवियित्री किरण सिंह जी ने अन्तः के स्वर (दोहा संग्रह) रचकर समाज को दिशानिर्देश तो दिया ही है साथ ही छंदों में आक्सीजन देकर उन्हें जीवित रखने का भरपूर प्रयास भी किया है!
इस संग्रह में कहीं आध्यात्म मिलता है, तो कहीं प्रेम की पराकाष्ठा, कहीं ऋतु रंग मिलता है तो कहीं जीवन दर्शन, कहीं कोमल हृदया स्त्री के स्वर तो कहीं सशक्त स्त्री का उद्घोष!
चूंकि कवियित्री स्त्री हैं इसलिये पुरुष की शक्ति को स्वीकारते हुए भी प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में स्त्री शक्ति की पुरजोर वकालत करती हैं। यथा सागर है गहरे बहुत, चलो लिया यह मान किन्तु नदी की भी अलग है अपनी पहचान।। चल जाता सबको पता चंदा का का अगर बिखर कर होत कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि इस संकलन में जीवन के प्रत्येक पक्ष को ध्यान में रखते हुए कवियित्री ने बहुत ही खूबसूरती से अपनी कलम चलाई है। इस सृजन के लिए कवियित्री किरण सिंह जी को साधुवाद देते हुए उनके इस अनवरत साहित्यिक सफर के लिए शुभकामनाएँ।
SKU: JPPAT98075 -
कविता (Poetry)
आगे सिर्फ तिरंगा Aagee Sirf Tiranga (Kavita Sangrah)
इनसान, खासकर सरकारी सेवक पारिवारिक और सरकारी खर्चों के बीच संतुलन बनाते-बनाते परेशान रहता है। अतिशय कार्यव्यस्तता में आज मानव मशीन होकर रह गया है। उसके कार्यों का उत्पाद और उपोत्पाद की गुणवत्ता इस कदर प्रभावित है कि वे कूड़ेदान से अधिक कुछ नहीं लगते। जबकि अंग्रेजों की प्रशासनिक व्यवस्था में प्रशासकीय एजेंट के बतौर बहाल पदाधिकरी यथा – I.A.S. I.P.S. पावर प्रभाव से सुपर Thermal Power की तरह काम करते प्रतीत होते हैं। उन्हें आम जनता के हक और अधिकार को छद्म तरीकों से आहरण करते तो देखा ही जाता है, अपने अधीनस्थ कर्मियों की पीड़ा समझने की फुर्सत भी नहीं मिलती। “पगली माता” में पागल माँ के अस्तित्व और पहचान को चिन्हित् करने की कोशिश की गई है। “तूंठा वृक्ष कोपन (लैप्रोसी) से ग्रसित इनसान की व्यथा और विवशता के सापेक्ष हमारी आपकी प्रतिक्रिया उकेरी गई है। कविता के माध्यम से आतंकवाद, उग्रवाद और विखंडनवाद के इस दौर में उसके बीच मूलभूत अंतर और उसके कुकृत्यों के प्रभाव को दिखाने की कोशिश की गई है।
जागतिक मानस में “विस्तार की सत्ता” बूंदों में नहीं, लौकिक जीवन का धर्म निवाहने में है। “सभ्यता का देवता’ इसीलिए प्रेम पंथ अपनाने और सुसभ्यता की राह पर चलकर चमकने का आहवान करता है। इस निमित्त दिमागी विचारों के हठीले कीड़े सार्थक होते हैं। अंत में सत्य की शक्ति की अक्षुणता का सिद्धांत मानते हुये मेरा नम्र निवेदन होगा कि पाठकगण ही कविता की शक्ति और सामर्थ्य की पहचान करें।
इन्सान, खासकर सरकारी सेवक पारिवारिक और सरकारी खचों के बीच संतुलन बनाते-बनाते परेशान रहते हैं। अतिशय कार्यव्यस्तता में आज मानव मशीन होकर रह गया है । उसके कार्यों का उत्पाद और उपोत्पाद की गुणवत्ता इस कदर प्रभावित है कि वे कूड़ेदान से अधिक कुछ नहीं लगते । जबकि अंग्रेजों की प्रशासनिक व्यवस्था में प्रशासकीय एजेंट के बतौर बहाल पदाधिकरी यथा I.A.S., I.P.S. पावर प्रभाव – से सुपर Thermal Power की तरह काम करते प्रतीत होते हैं। उन्हें आम जनता के हक और अधिकार को छद्म तरीकों से आहरण करते तो देखा ही जाता है, अपने अधीनस्थ कर्मियों की पीड़ा समझने की फुर्सत भी नहीं मिलती। क्षमता और जरूरत का मूल्यांकन कर जो अपने जन-संसाधनों का उपयोग करते हैं, वे ही कामायाय भी होते हैं। जो भी ढाँचागत विसंगतियाँ झलकती है उसके एक ही कारण है कि यहाँ की व्यवस्था में हम उन आलाधिकारियों को भगवान से कम नहीं मानते हद यह कि से भी शक्ति प्रदर्शन में यही दिखलाते हैं कि उनसे आगे सिर्फ और सिर्फ तिरंगा ही है।
SKU: JPPAT98255 -
कविता (Poetry)
क्रांतिकारी वीर भगत सिंह Krantikari Veer Bhagat Singh (Prabandh Kavya)
वर्षों की प्यासी विर सचित अभिलाषायें आजडसवीर पुरूष क्रांतिकारी भगत सिंह को श्रद्धा पुष्प चढ़ाकर पूर्णतया सन्तुष्ट है उसे जो मौत का दामन में दुनियाँ की विशालतम शक्ति को एक खुली चुनौती दी थी, जो अजोवन अविवाहित रहकर क्रान्तिकुमारी कोही दुल्हन के रूप में वरण किया था. जिन्होने परिस्थितियों से बाधय होकर पीछे का मैदान, कभी मुड़कर नहीं देखा, और न कभी हर और उलझनों से घबड़ाकर सत्ता को सलाम ही किया था, जिन्होंने खून का बदला खून से ही चुकाया, जो बहरों को सुनाने के लिए भरे असेम्बली भवन में बम फेंक कर अगद की तरह सवणी दरबार में पाँव रोपकर खड़ा हो गया, जो कायर को जिन्दगी जीना नहीं जानता था, जो विषम परिस्थितियों में भी अपने सिद्धान्तों के साथ समझौता नहीं किया, जो टूट जाना जानता था पर झुकना स्वीकार नहीं था. जो दीन दलित और किसानों के प्रति असीम श्रद्धा और सम्मान का भाव रखता था। आप सोच सकते हैं कि वह व्यक्ति कितना महान संघर्ष होगा जो सता के विरूद्ध कारागृह में एक सौ चौदह दिन की भूख-हवाल कर बन्दियों को अधिकार दिलाया था और जिसके नाम से ब्रिटिश सरकार पीपल के सूखे पत्ते की वह थरथर कापती थी जो पद, पैसा और परिवार को लात मार कर दी मातृभूमि के पावन मन्दिर में अपना सर्वस्व भी अपने सिद्धान्तों के साथ समझौता नहीं किया, जो टूट जाना जानता था पर. झुकना स्वीकार नहीं था, जो दीन दलित और किसानों के प्रति असीम श्रद्धा और सम्मान का भाव रखता था। आप सोच सकते हैं। कि वह व्यक्ति कितना महान संघर्षी होगा जो सत्ता के विरूद्ध कारागृह में एक सौ चौदह दिन की भूख हड़ताल कर यन्दियों को अधिकार दिलाया था और जिसके नाम से ब्रिटिश सरकार पीपल के सूखे पत्ते की तरह थर-थर काँपती थी, जो पद, पैसा और परिवार को लात मार कर बन्दिनी मातृभूमि के पावन मन्दिर में अपना सर्वस्व स्वाहा कर डाला था, जो दुःशासन की नगरी में श्रम बनकर शंखनाद किया था. जिसे जेल और मौत का भय पथ से विचलित नहीं कर सका था, जिसने मौत को एक रूपान्तरण, स्थानान्तरण और एक मनोविकार ही समझा था।
कवि कलम की प्यारी बात की प्यासी चिर संचित अभितापायें आजवीर पुरुष क्रांतिकारी भगत सिंह को अब पुष्प चढ़कर पूर्णतया सन्तुष्ट है उसे जो मौत का वामन में दुनियाँ की विशालतम एक खुली नीती दी थी, जो अजीवन अविवाहित रहकर कुमारी कोही दुल्हन के रूप में वरण किया था, जिन्होनें परिस्थितियों से बाध्य होकर पीछे का मैदान, कभी मुड़कर नही देखा, और न कभी डर और उ से पढ़कर सत्ता को सलाम ही किया था, जिन्होंने का बदला खूद से ही चुकाया, जो बहरों को सुनाने के लिए अरे असेम्बली भवन में बम फेंक कर अंगर की तरह रावणी दरबार में पौध रोपकर खड़ा हो गया, जो कायर की जिन्दगी जीना नही जानता था, जो विषम परिस्थितियों से भी अपने सन्तों के साथ वहीं दिया, जो टूट जाना जाना था पर, सुदना स्वीकार नही था, जो न चलित और किसानों के प्रति असीम अब और सम्मान पर आय रखता था। आप सोच सकते हैं कि वह व्यक्ति कितना महान संघी होगा जो सत्ता के विरूद्ध कारागृह एक सी चौकट निकालकर कधिकार बिलाया था और जिसके नाम से ब्रिटिश सरकार पीपल के सूखे पत्ते की तरह पर-थर काँपती थी, जो एक ऐसा और परिवार को लात मार कर अन्दिवाि मन्दिर में अपना सर्वस्य स्वाहा कर डाला था, जो दुर की नगरी में श्री धनकर किया था जिसे खेल और गीत का पथ से विचलित नही करकर या जिसने मीर को एक स्पान्तरण, स्थान और ए मोटी समझा था। भारत ही नहीं बल्कि पूर्ण करे एक खुली नीती की थी, जो अजीवन अविवाहि रहकर कुमारी कोठी कुलर के रूप में वरण किया था, जिन्होनें परिस्थितियों से बाय लेकर पीछे करन कभी मुड़कर नहीं देखा, और न कभी डर और उत् से एकर सत्ता को सलाम ही किया था, जिन्होंने काबला खून से ही दुधया, जो बहों को सुनने के लिए अरे असेम्बली भवन में बम फेंक कर अंगद तरह रावणी दरबार में पौध रोपकर खड़ा हो गया, जो कायर की जिंदगी जीना नहीं जानता था, जो विषम परिस्थितियों से भी अपने सन्तों के साथ समझौता नहीं किया, जो टूट जाना जानता था पर, सुवना स्वीकार नही था, जो न चलित और किसानों के प्रति असीम श्रद्ध और सम्मान कर आप रहा था। आप सोच सकते हैं कि वह व्यक्ि किल्ला महान संपपी होगा जो सत्ता के विरुद्ध कारागृह में एएफसी चैव दिनकर करे दिलाया था और जिसके नाम से ब्रिटिश सरकार पीपल के सूखे पत्ते की तरह पर पर करेंपती थी, जो एक पैसा और परिवार को लात मार कर बन्दिनी मातृभूमि के पान मन्दिर में अपना सर्वस्व स्वाहा कर डाला था. जो की श्रीम यवकर शंखनाद किया था, जि और मौत का भय पथ से विचलित नही कर 4G जिसने मौत को एक स्थावरण, वातरण और मनोविकार ही समझा था।
SKU: JPPAT98243 -
कविता (Poetry)
माई के लाल (Mai Ke Lal)
‘माई के लाल’ यह कवि गुलाबचंद सिंह ‘आभास’ की एक सशक्त भोजपुरी रचना है। इसमें सिंह की कुछ साहसिक और संघर्षी घटनाओं को लिया गया है । क्रांतिकारी की जिन्दगी कैसी होती है, इसका आकलन यर्थाथ के धरातल पर किया गया है। इस पुस्तक में करुणा एवं वीर रस का अद्भुत संगम है। मित्र शिव वर्मा से आधीरात का मिलन काफी कारुणिक दिखाई पड़ता है। जेल के दरवाजे पर परि का अंतिम मिलन, तो पाठक को करुणा में वो देता है। पाठक की आँखें गीली हो जाती है। भगत सिंह की साहसिक मीत से पाटक रोमांचित हो उ है। हर राष्ट्रीय वीर पुरुष रोम-रोम से अनुप्रेरित हो उठता है । यह पुस्तक भोजपुरी जगत की अनमोल धरोहर है । हमें विश्वास है कि भोजपुरी विद्वानों के बीच इस पुस्तक का विशेष आदर होगा।
“माई के लाल” डॉ० प्रो० गुलाबचन्द्र सिंह ‘आभास’ के एगो थक जा बहुचर्चित भोजपुरी रचना है। एकरा के हम पुरूरू से अंत तक पढ़ गइल। रचना पढ़े में काफी नीमन लागल। काव्य-कला के अपारों पर ई अछा लागल। से काव्य में क्रान्तिकारी भगत सिंह के जीवन गाथा বर्शन कइल गइल बा। हूँ छ सरगन में बॉटल गइल बा। कवि के थेय का क्रान्तिकारी भगत सिंह के जीवन के उजागर कइला काव्य में एतना बढ़ियाँ प्रवाह वा कि पाठक अंत तक बिना पढले ना रह सकेला| भाव के गम्भीरता त देखे लायक बा। काव्य के ऊँचाई के ई सूक्त था। दार्शनिक विचारन के व अस्यार था। अलंकार अपने आव, आपन जगह ले लेले था। अनावासे स्वभाविक हम से काव्य के दूसरों जरूरी तत्व के समावेश हो गइल था। कवि कल्पना के राह से यर्थाय तक पहुँचे में सफल भइल बा कवि के पहचान कल्पना में होखेला। एह में कवि के सफलता प्राप्त बात पात्रोधित माता के प्रयोगों कती कतो देखें के मिलत ना। एह काव्य के गंगा के पास के तरह प्रवाह चलित वा प्रयात सागर के गम्भीरता वा हिमालय के ऊबाई था. सोन नदी के व्यापकता का विचार उदार भावुकता से ओत प्रोत था। सभ पाउन के चरित्र उमरल था। जे जइसन वा ओकर चरित्र ओइसही आइल बा। काव्य के नायक भगत सिंह के बरिओसही आइल बा। काव्य के नायक भगत सिंह के चरित्र देखे में आता उनका चरित्र सेवायें अच्छा लगा हो जाता।
रचना पढ़े में काफी गॉमन लागल। काव्य-कला के अचारों ताल। वे काव्य में क्रान्तिकारी भगत सिंह के जीवन गाथा वर्णन कहल गइल बा। छ सरगन में बॉटल गइल बा। कवि के का क्रान्तिकारी भगत सिंह के जीवन के उजागर कहला काव्य में एतना बठियाँ प्रवाह वा कि पाठक अंत तक दिना पहले ना रह सकेला| भाव के गम्भीरता से देखे लायक था। काव्य के ऊँचाई के ई छूत बा। दार्शनिक विचारन के व भरबार बा। अलंकार अपने आप, आपन जगह ले लेले बा अनावाले स्वभाविक हम से काव्य के दूसरों जरूरी तत्व के समावेश हो महल था। कवि कल्पना के राह से यर्थाथ तक पहुँचे में सफल भइल बा। कवि के पहचान कल्पना में होठोला। एह में कवि के सफलता प्राप्त था। पात्रोचित भाषा के प्रयोगों को कतो देखें के मिलत ना। एह काव्य के गंगा के धारा के तरह प्रवाह मिलत वा प्रशान्त सागर के गम्भीरता बा. हिमालय के ऊंचाई बा सोन नदी के व्यापकता वा विचार उदार भावुकता से ओतप्रोत सभ पात्रन के चरित्र उमरल बा। जे जइसन वा ओकर चरित्र आइसटी आइला काव्य के नायक भगत सिंह के चरित्र ओइसही आइल बा काव्य के नायक भगत सिंह के चरित्र देखे में आवता । उनका चरित्र से पाठक के अनया अलगाव हो जाता। क्रान्तिकारी के जीवन कईसन होला एकर वर्णन कवि बड़ा श्रीमन से कहले बा दुरु से अंत तक काव्य में सटकीयता के दरसन लेखत ना।
SKU: 9789381221303 -
कविता (Poetry)
वीर लोरिक मंजरी (Veer Lorik Manjari)
डॉ० कुमार इन्द्रदेव समकालीन हिन्दी कविता की उन बहुमुखी प्रतिभाओं में हैं, जिन्होंने कविता का कोई क्षेत्र अछूता नहीं छोड़ा। आपने गीत, गजल, कविता, महाकाव्य तथा मुक्तक काव्यादि के साथ-साथ बीर लोरिक मंजरी नामक समकालीन बोध से अनुप्राणित प्रबन्ध काव्यों की भी सफल रचना की है।
डॉ० कुमार अपने साहित्यिक दायित्व के प्रति निरन्तर जागरूक एक ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने वक्त की धड़कनों को सुना और उसकी नब्ज को बाखूबी परखा है। अपनी कृतियों के माध्यम से वे हासोन्मुखी मानव मूल्यों को बचाने के लिए निरन्तर प्रयासरत हैं। इस बात का हम उनकी वीर लोरिक मंजरी महा काव्य में देख सकते हैं।
समकालीन कविता बहुतेरी रूढ़ियों को तोड़ते हुए आगे बढ़ती रही है। कविता के विकास की इस यात्रा में डॉ० कुमार एक महत्वपूर्ण नाम है। ये कविताएँ जिस उत्सव धर्मिता के साथ जीवन को गाती हैं उसमें मनुष्यता के विभिन्न रागों को बेहतर लय में सुना जा सकता है। दैनिक जीवन के सामान्य दृश्यों और स्थितियों के सहज बिम्बों से डॉ० कुमार असामान्य और विलक्षण अभिव्यक्तियाँ प्रस्तुत करने में सफल होते हैं ये इसलिए कि कवि खुली आँखों से खुले आकाश में विचरण करता है। चूंकि यह विचरण सिर्फ यायावरी नहीं इसके काव्योद्देश्य भी हैं, इसलिए विचार और सम्वेदना के अलावा भाषिक निकष पर भी कवि खरा दिखाई पड़ता है।
डॉ० कुमार केवल सुख सौन्दर्य के कवि नहीं अपितु एक गहरी अक्खड़ता से लैस राजनीतिक कवि भी हैं। निस्संदेह उनको कविता के सरोकार मनुष्य से थोड़ा और मनुष्य बनाने के हैं।
SKU: JPPAT98260 -
कविता (Poetry)
स्पन्दन (Spandan)
कविता कवि के कल्पना लोक से निस्सरित रसवती स्रोतस्विनी है। मेरी दृष्टि में कविता का बहुत ही गरिमामय स्थान है। काव्य-रचना एक प्रकार का योग है, योग का आनंदमय स्वरूप। कविता कवि के मन पंछी का क्रीड़ाकुंज है। ( सुन्दर वाणी नीचे की ओर बहनेवाली जलधाराओं की तरह खेलती हैं। द्युलोक का स्वामी इनके द्वारा प्रशंसित होता है।) काव्य-धारा के सिवा कौन सुनता सरिता की तरह कल-कल प्रवाहिनी हो सकती है।
छंदवद्धता, लयात्मकता तो कविता के अलंकरण हैं जो इसे अधिक श्रुतिप्रिय, स्मरणसुलभ एवं प्रभावी बनाती हैं। देवभाषा संस्कृत, जो विश्व का प्राचीनतम साहित्य है, की पूर्व की सभी रचनाएँ पद्य में ही हैं। कविताएँ मुझे अच्छी लगती हैं, खासकर ऐसी कविताएँ जो एक रुपसी नारी की तरह हो भावनाप्रधान. आकर्षक, आभरण- अलंकरणयुक्त ‘मंजुल, मंगल, मोदप्रसूती’।
SKU: JPPAT98076 -
कविता (Poetry)
हैलो ! सुनो ना…(Hello ! Suno Na…)
कविता काव्यात्मक रचना का ही प्रतिरूप होती है। कविता में भावपक्ष और अन्तः सौन्दर्य की सहज प्रधानता रहती है। साथ ही उसमें कलापक्ष और रूपात्मक सौन्दर्य का भी विनिवेश अवश्यम्भावी होता है। यद्यपि व्यापक रूप से छन्दोबद्ध रचना के लिए ‘कविता’ शब्द का प्रयोग होता है, तथापि वह रचना इसलिए विशिष्ट होती है कि उसमें भाव एवं लय की मनोरम स्थिति के साथ ही रसात्मक वाक्य एवं रमणीय अर्थ के प्रतिपादक शब्दों का मधुमय विन्यास रहता है। इसे ही आचार्य विश्वनाथ ने ‘साहित्यदर्पण’ में “वाक्यं रसात्मक काव्यम्’ कहा है, तो पण्डितराज जगन्नाथ ने ‘रसगंगाधर’ में ‘रमणीयार्थ-प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्’ ये रूप में उद्घोष किया है। तो, रसात्मकता और रमणीय अर्थवत्ता की दृष्टि से प्रबुद्ध कवयित्री अनुपमा नाथ की कविता पर विचार करने पर उसमें उक्त काव्याचायों के भावतत्त्व की अप्रत्यक्ष अवस्थिति संकेतित होती है। अनुपमा की यथाप्रस्तुत काव्य-संग्रह ‘हैलो. सुनो ना’ यद्यपि छन्दोमुक्त शैली में आबद्ध है, जिसमें कुल चालीस कविताएँ आकलित हैं, तथापि इस संग्रह की प्रत्येक कविता विषय-वस्तु, भावबोध और शिल्प के विचार से समानान्तर मनोरमता की सृष्टि में समर्थ है। इतना ही नहीं, विषय-वस्तु में भाव और विचारगत नवीनताओं का भी विनियोग सहज सुलभ हुआ है।
SKU: JPPAT98070