दासों की दास्तान
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Research (शोध), Tales of the Slaves Book, दासों की दास्तान
Duniyaan Ki Daashon Ki Dashtan (दुनिया की दासों की दास्तान )
Research (शोध), Tales of the Slaves Book, दासों की दास्तानDuniyaan Ki Daashon Ki Dashtan (दुनिया की दासों की दास्तान )
दुनियाँ के दासों को दास्तान पुस्तक एक तरह से इतिहास का पुनर्लेखन है। इतिहास लिखते समय लेखकों को सभी तरह के पूर्वाग्रहों दुराग्रहों से दूर होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका है। इसका परिणाम यह हुआ कि अभी भी इतिहास के मौलिक तत्व जनमानस के निगाहों से ओपाल हैं। साहित्य में भी ऐसा ही हुआ है। निराला नागार्जुन एवं अन्य कुछ प्रगतिशील साहित्यकारों को छोड़ दिया जाय तो साहित्य सम्राटों, राजा-रानियों एवं नवाबों के ईर्द गिर्द घूमता नजर आयेगा। भारतीय इतिहास में यहाँ लिखा हुआ मिलता है कि विश्व प्रसिद्ध दा विश्वविद्यालय को 1199 में बख्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया था। काश प्रसाद जायसवाल के शोध संस्थान के खोजों से पता चला है कि बख्तियार खिलजी बख्तिार से दक्षिण गया हो नहीं था। नालन्दा विश्वविद्यालय को बौद्ध धर्म विरोधी तत्वों ने नष्ट किया है। इस पुस्तक में ऐसे ह किया गया है, जिस पर किसी इतिहासकार का अध्यन नहीं जा सका था।
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