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Dard Aaya Tha dabe Paon
दर्द आया था दबे पाँव –
जे. एन. कौशल (जितेन्द्र नाथ कौशल) रंगमंच के एक प्रतिभाशाली शिक्षक, निर्माता और लेखक थे। ‘दर्द आया था दबे पाँव’ में उनके 28 लेखों, रंग-प्रसंगों व संस्मरणों का संचयन है। इनके माध्यम से भारतीय विशेषकर हिन्दी रंगमंच का चालीस वर्ष का इतिहास एक रूप में हमारे सामने प्रस्तुत हुआ है। भिन्न प्रस्तुत सभी संस्मरण प्रायः चर्चित रंगकर्मियों से सम्बद्ध हैं या फिर कुछ अवसरों को रेखांकित करते हैं। बेहद रोचक और आकर्षक शैली में लिखे गये इन संस्मरणों को पढ़ते हुए लगता है जैसे घटनाएँ दृश्य-चित्रों के रूप में बड़ी नाटकीयता से हमारी आँखों के सामने आकार ग्रहण कर रही हों।
‘दर्द आया था दबे पाँव’ में एक ओर ब. व. कारन्त, विजय तेन्दुलकर, बी. एम. शाह जैसे बारह महान रंगकर्मियों का अन्तरंग चित्रण है तो अन्य लेखों में घटनापरक कुछ भावभीनी स्मृतियाँ और कथ्यपरक आलेख हैं।
आज़ादी के बाद उभरे जिन व्यक्तित्वों भारतीय रंगमंच को नयी दिशा दी है, उन्हें जानने-समझने में कौशल जी की यह महत्त्वपूर्ण कृति पाठकों के लिए निस्सन्देह सहायक सिद्ध होगी।SKU: VPG8126316144 -
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Ghalib Chhuti Sharaab
ग़ालिब छुटी शराब’ के प्रकाशन के दौरान हिन्दी के पाठकों में अद्भुत उत्साह और उमंग देखने को मिली। पाठकों की सक्रिय भागीदारों ने यह मिथक भंग कर दिया कि हिन्दी में अच्छी पुस्तकों के पाठक नहीं है। यह पाठकों का ही दबाव था कि एक माह के भीतर ‘ग़ालिब छुटी शराब’ का दूसरा संस्करण प्रकाशित करना पड़ा। पेपरबैक संस्करण के रूप में। जिसने भी पुस्तक हाथ में ली वह पूरी पढ़े बग़ैर छोड़ नहीं पाया। अपनी अपूर्व पठनीयता, गद्य के लालित्य, भाषा रवानगी और अपने को भी मुआफ़ न करने को लेखक की ऐसी ज़िद कि पाठकों ने अब तक प्रकाशित संस्करण हाथों-हाथ लिये। साल भर के भीतर पुस्तक का तीसरा संशोधित और परिवर्द्धित संस्करण प्रेस में है। पत्र-पत्रिकाओं की राय भी इससे भिन्न नहीं। ‘ज़ी मार्निंग शो’ ने पुस्तक के अंग्रेज़ी संस्करण की ज़रूरत को रेखांकित किया, ‘इंडिया टुडे’ ने लिखा कि ‘कालिया शराब पर ही विजय प्राप्त नहीं करते, पाठकों का दिल भी जीत लेते हैं।’ ‘इंडिया टुडे’ तथा ‘तद्भव’ ने ‘ग़ालिब छुटी शराब’ के सन्दर्भ में उग्र की कालजयी कृति ‘अपनी ख़बर’ का स्मरण किया। कृष्णमोहन लिखते हैं कि हिन्दी में इसके जोड़ की फिलहाल एक ही किताब दिखती है—
पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ की ‘अपनी ख़बर’। ‘कथाक्रम’ के एक साक्षात्कार में कमलेश्वर इसे एक मूल्यवान कृति के रूप में रेखांकित करते हैं।शराब छोड़ने का इससे बेहतर और कोई रचनात्मक इस्तेमाल हो ही नहीं सकता था।—इंडिया टुडे
कालिया के संस्मरणों में एक अभिव्यक्ति उसकी लेखकीय या व्यावसायिक ज़िन्दगी का दर्दनाक आँकड़ा पेश करती है।—हिन्दुस्तान
कालिया हों, राजेन्द्र यादव हों या कमलेश्वर सबके पास जीवन्त भाषा है और जिये हुए को फिर से जीने का हुनर भी। रवीन्द्र कालिया के संस्मरण पढ़ते हुए यह विचार ज़रूर उत्पन्न होता है कि फक्कड़पन, ज़िन्दादिली, संघर्षशील जीवन और कबीराना ठाठ कहीं-न-कहीं रचनात्मकता की ज़मीन को भी जर्खेज़ कर रहे होते हैं। वह अपने क़द के मुताबिक़ किसी को छोटा नहीं होने देते, बल्कि अपनी दुर्बलताओं और ज़िदों का जी खोलकर उल्लेख करते हैं।—राष्ट्रीय सहारा
अन्तिम आवरण पृष्ठ –
‘ग़ालिब छुटी शराब’ पढ़कर उससे ज़्यादा मस्ती तो मुझ पर छा गयी मजा आ गया। सामने होते बाँहों में भरकर बधाई देती।—मन्नू भंडारी
एक ऐसे समय में, जो आम आदमी के विरुद्ध जा रहा है, जब आदर्शवाद, राजनेताओं, मसीहाओं पर से विश्वास उठना शुरू हो जाय, जब चीज़ें बड़ी बेहूदी दिखाई पड़ने लगें, जब संवाद का शालीन सिरा ही न मिले—ऐसे समय में लेखकों ने ख़ुद को उधेड़ना शुरू किया। पहले अपने को तो पहचान लो। देखो तुम भी तो वैसे नहीं हो। रवीन्द्र कालिया की ‘ग़ालिब छुटी शराब’ कितनी मूल्यवान पुस्तक है।—कमलेश्वर
‘ग़ालिब छुटी शराब’ पढ़कर सोच रहा था, मुलाक़ात होगी तो तारीफ़ करूँगा। यह रचना आप ही के लिए भारी चुनौती है, बधाई।—अमरकान्तहिन्दी में इस तरह से लिखा नहीं गया। हिन्दी में लेखक आमतौर पर नैतिक-भयों और प्रतिष्ठापन के आग्रहों से भरा है। हिन्दी में बड़े और दमदार लेखक भी यह नहीं कर सके। तुम बहादुर और हमारी पीढ़ी के सर्वाधिक चमकदार लेखक हो। इस किताब ने तुम्हें हम सब से ऊपर कर दिया है। हिन्दी में यह अप्रतिम उदाहरण है। दिस बुक इज़ ग्रेट सक्सेस।—ज्ञानरंजन
SKU: VPG9326350907 -
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Kshana Boley Kana Muskaye
क्षण बोले कण मुसकाये –
‘प्रभाकर’ जी की कृतियों में उनकी चिन्तन-प्रक्रिया और लेखन-शैली के कारण साहित्य और पत्रकारिता का अनुपम संगम है। उनके रिपोर्ताज़ तो और भी अधिक अन्तर्दर्शी और मर्मस्पर्शी होते हैं। प्रस्तुत पुस्तक ‘क्षण बोले कण मुसकाये’ में ऐसे ही पच्चीस रिपोर्ताज़ हैं जिनमें हम विगत वर्षों में घटित कुछेक घटनाओं के आधार पर राष्ट्र एवं लोक-जीवन की झाँकी पूरे आनन्द एवं तल्लीनता के साथ देख सकते हैं।SKU: VPG8126330782 -
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Puratattva Ka Romance
पुरातत्त्व का रोमांस –
अतीत, अतीत का जिया जा चुका जीवन, श्वास राग-विराग और मृत्यु को पुनर्जीवन पुरातत्त्व से रोमांस करने वाले ही दे पाते हैं। अतीत के सहजीवी मनुष्य की संस्कृति और सभ्यता के साथ ही उसके स्वप्न का भी पुनर्दर्शन करते हुए मूलतः हम अपनी ही उद्भावना, विकास और परिणति का साक्षात् करते हैं। सहस्राब्दियों पूर्व के अज्ञात संसार को पुरातत्त्वशास्त्री जिस शैशव-कौतूहल के साथ उत्खनित करते हैं और रहस्यों, कल्पनाओं तथा अपूर्व सत्यों का समाहारी साक्ष्य उपलब्ध कराकर स्तब्ध कर देते हैं, उसी अन्दाज़ की प्रस्तुति भगवतशरण उपाध्याय अपनी शोधपरक कृति ‘पुरातत्त्व का रोमांस’ में करते हैं। भगवतशरण उपाध्याय सिर्फ़ लेखक की हैसियत से ही नहीं वरन् एक पुरातत्त्वशास्त्री की तरह भी अपरिचित समय, इतिहास और संज्ञान को सूत्रबद्ध करते हैं। किसी पुरातात्त्विक के प्रेम की कैफ़ियत और ज़रूरी ज़िद के विषय में कुछ भी कहना सर्वविदित सत्य का दुहराव ही होगा। उपाध्याय जी ने पुरातत्त्व के उन स्थलों को निकट से देखा है, कुछ की खुदाई में शामिल रहे हैं और कुछ की सामग्री खनिकों की डायरियों से ली हैं। इसलिए आलेखों की प्रामाणिकता जहाँ ज्ञान को समृद्ध करती है वहीं भाषा की तरलता पाठकों का गम्भीर मनोरंजन करती है।
पुनर्नवा श्रृंखला के अन्तर्गत इस प्रसिद्ध कृति का पुनःप्रकाशन करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ सन्तुष्टि का अनुभव कर रहा है।SKU: VPG8126319749 -
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Thoontha Aam
ठूँठा आम –
भारतीय सभ्यता, संस्कृति और समाज को प्रभावित करनेवाले कारकों का क्रिटीक है ‘ठूँठा आम’। कृतिकार भगवतशरण उपध्याय भारतीय गौरव के गुणगायक रहे हैं। उन्होंने अपने लेखन में विविध भंगिमाएँ अपनाकर भारतीय परम्परा को प्रतिष्ठित किया है। यह एक ऐसा विषय है जिसके निर्वाह में अति बौद्धिकता की शुष्कता आ जाने का ख़तरा मँडराता रहता है लेकिन भगवत जी एक ऐसी मनोरंजक भाषा और शिल्प का चुनाव करते हैं जिसमें विषय की गम्भीरता भी सर्वथा सुरक्षित रहती है। पौराणिक से ऐतिहासिक, साहित्यिक से सड़क छाप और पुरातात्त्विक से अनागत क्षेत्रों तक वे इस सहजता से यात्रा करते हैं कि भाषा और दृश्यों का एक विशिष्ट रूप निर्मित हो जाता है।
बारह शीर्षकों में विभाजित इस संकलन में तत्कालीन अनेक विषयों पर स्केच और रिपोर्ताज़ हैं, किन्तु इन सभी का केन्द्रीय भाव भारतीय समय और समाज का विमर्श ही है जो आज भी अपनी प्रासंगिकता के साथ महत्त्वपूर्ण है।
पाठकों के विशेष आग्रह पर एक लम्बे अन्तराल के बाद प्रस्तुत है पुनर्नवा श्रृंखला के अन्तर्गत इस बहुचर्चित पुस्तक का नया संस्करण, नये रूपाकार में।SKU: VPG8126315246