Interview
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Interview
Guftgoo
गुफ़्तगू – फ़िराक़ गोरखपुरी –
श्री शौक़ को क़रीब तीन वर्षों पूर्व अंग्रेज़ी में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘द् स्पोक फ़िराक़’ की वजह से ख्याति मिली और वे चर्चा का विषय बने। प्रस्तुत पुस्तक उसी का हिन्दी संस्करण है। यह पुस्तक उर्दू के महान् शायर, पद्मभूषण रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी के बारे में उपलब्ध श्रेष्ठ सन्दर्भ-ग्रन्थों में से है। इस पुस्तक को उर्दू साहित्य में अंशदान मानते हुए इसकी राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समाचार पत्रों में व्यापक रूप से चर्चा हुई। ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स’ में श्री शौक़ के बारे में एक लम्बी टिप्पणी में शामिल की गयी, क्योंकि उनकी यह पुस्तक किसी प्रख्यात हस्ती के साथ अभी तक विदित सबसे लम्बे साक्षात्कार पर आधारित है, जिसे पूरा करने में उन्हें 16 वर्ष 4 महीने लगे। प्रस्तुत हिन्दी संस्करण में मूल पुस्तक के अतिरिक्त फ़िराक़ की कुछ चुनिन्दा नज़्में, ग़ज़लें और रुबाइयाँ भी दी गयी हैं।SKU: VPG8170555056 -
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Guftgoo
गुफ़्तगू – फ़िराक़ गोरखपुरी –
श्री शौक़ को क़रीब तीन वर्षों पूर्व अंग्रेज़ी में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘द् स्पोक फ़िराक़’ की वजह से ख्याति मिली और वे चर्चा का विषय बने। प्रस्तुत पुस्तक उसी का हिन्दी संस्करण है। यह पुस्तक उर्दू के महान् शायर, पद्मभूषण रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी के बारे में उपलब्ध श्रेष्ठ सन्दर्भ-ग्रन्थों में से है। इस पुस्तक को उर्दू साहित्य में अंशदान मानते हुए इसकी राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समाचार पत्रों में व्यापक रूप से चर्चा हुई। ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स’ में श्री शौक़ के बारे में एक लम्बी टिप्पणी में शामिल की गयी, क्योंकि उनकी यह पुस्तक किसी प्रख्यात हस्ती के साथ अभी तक विदित सबसे लम्बे साक्षात्कार पर आधारित है, जिसे पूरा करने में उन्हें 16 वर्ष 4 महीने लगे। प्रस्तुत हिन्दी संस्करण में मूल पुस्तक के अतिरिक्त फ़िराक़ की कुछ चुनिन्दा नज़्में, ग़ज़लें और रुबाइयाँ भी दी गयी हैं।SKU: VPG9352292158 -
Interview
Kar Lo Preet Khulasa Gori
कलाओं में भारतीय आधुनिकता के एक मूर्धन्य सैयद हैदर रज़ा एक अथक और अनोखे चित्रकार तो थे ही उनकी अन्य कलाओं में भी गहरी दिलचस्पी थी। विशेषतः कविता और विचार में। वे हिन्दी को अपनी मातृभाषा मानते थे और हालाँकि उनका फ्रेंच और अंग्रेज़ी का ज्ञान और उन पर अधिकार गहरा था, वे फ्रांस में साठ वर्ष बिताने के बाद भी, हिन्दी में रमे रहे। यह आकस्मिक नहीं है कि अपने कला-जीवन के उत्तरार्द्ध में उनके सभी चित्रों के शीर्षक हिन्दी में होते थे। वे संसार के श्रेष्ठ चित्रकारों में, 20-21वीं सदियों में, शायद अकेले हैं जिन्होंने अपने सौ से अधिक चित्रों में देवनागरी में संस्कृत, हिन्दी और उर्दू कविता में पंक्तियाँ अंकित की। उनके पुस्तक-संग्रह में, जो अब दिल्ली स्थित रज़ा अभिलेखागार का एक हिस्सा है, हिन्दी कविता का एक बड़ा संग्रह शामिल था। रज़ा की एक चिन्ता यह भी थी कि हिन्दी में कई विषयों में अच्छी पुस्तकों की कमी है। विशेषतः कलाओं और विचार आदि को लेकर। वे चाहते थे कि हमें कुछ पहल करनी चाहिए। 2016 में साढ़े चौरानवे वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद रज़ा फाउण्डेशन ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए हिन्दी में कुछ नयी किस्म की पुस्तकें प्रकाशित करने की पहल रज़ा पुस्तक माला के रूप में की है, जिनमें कुछ अप्राप्य पूर्व प्रकाशित पुस्तकों का पुनःप्रकाशन भी शामिल है। उनमें गाँधी, संस्कृति-चिन्तन, संवाद, भारतीय भाषाओं से विशेषतः कला-चिन्तन के हिन्दी अनुवाद, कविता आदि की पुस्तकें शामिल की जा रही हैं।
SKU: VPG9389012385