Journalism
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Aadhunik Vigyapan
जिस तीव्रता से विश्व औद्योगीकरण की ओर बढ़ रहा है उतनी ही तीव्रता से विज्ञापन का महत्व बढ़ता जा रहा है। समयानुसार इसकी संरचना एवं शिल्प में आवश्यकतानुकूल परिर्वतन होता रहा है। वस्तुतः आधुनिक समाज में विज्ञापन की भूमिका बहुत हद तक बदल गई है। आज विज्ञापन केवल सूचना मात्र नहीं देता बल्कि उपभोक्ता को ब्रांड-विशेष खरीदने के लिए बाध्य भी करता है। आधुनिक पूंजीवादी समाज में विज्ञापन का दायित्व पहले की अपेक्षा बढ़ गया है। इसकी भूमिका में भी गुणात्मक परिवर्तन आ गया है। वस्तुतः किसी भी समाज व्यवस्था के विकास का मापदंड उसकी अर्थव्यवस्था होती है और अर्थव्यवस्था के विकास का मूल है विज्ञापन। डॉ. पातंजलि की यह पुस्तक आधुनिक युग में विज्ञापन के बदलते स्वरूप को उद्घाटित करती है। आधुनिक विज्ञापन का कलेवर, विषय-वस्तु, संरचना एवं भाषा संबंधी सभी परिवर्तनों पर लेखक की दृष्टि बराबर बनी रही है। व्यावहारिक हिन्दी को बढ़ावा देने और उसके प्रयोग-क्षेत्र को विस्तृत करने के लिए निरन्तर प्रयासरत डॉ. पातंजलि की इस पुस्तक में आधुनिक विज्ञापन के सभी पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। विज्ञापन जैसे विषय पर हिन्दी भाषा में पुस्तक लिखने के गंभीर प्रयास अभी तक नहीं हुए हैं। प्रस्तुत पुस्तक इसी रिक्तता को भरने का सार्थक प्रयास है। टॉपचंद पातंजलि
SKU: VPG8170555070 -
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Breaking News
ब्रेकिंग न्यूज़ –
तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखिन की देखी-कबीर ने जब यह दोहा कहा या लिखा होगा, तो उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन टीवी पत्रकारिता उनके इस दोहे को भविष्यवाणी की तरह सिद्ध कर देगी। टीवी पत्रकारिता ने दस से भी कम वर्षों में जिस तरह से समाज में अपने आपको स्थापित कर लिया है, सचमुच आश्चर्यजनक है। यह यात्रा शुरू हुई थी ‘आज तक’ नामक 20 मिनट के एक छोटे से कार्यक्रम से, जिसकी सफलता आज समाचार चैनलों की होड़ में बदल चुकी है। आज तक, एनडीटीवी इंडिया, ज़ी न्यूज, इंडिया टीवी, चैनल सेवन… ये महज कुछ समाचार चैनलों के नाम हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले कुछ वर्षों में कम से कम दर्जन भर समाचार चैनल हिन्दी में ही शुरू हो जायेंगे। महज पाँच सालों के भीतर ही समाचार चैनलों की भूमिका बढ़ी है। जिस तरह से उसने अपनी उपयोगिता साबित की है, उससे यह साबित हुआ है कि यह एक स्थायी माध्यम के रूप में समाज में बना रहने वाला है।
जिस तेज़ी से समाज में समाचार चैनलों की जगह बनी है, उसी तरह से उसको लेकर बहसें भी तेज़ हुई हैं। चाहे स्टिंग ऑपरेशन का मामला हो या नैतिकता का या अपराध और सेक्स से जुड़े पहलू हों, टीवी को लेकर इस तरह की बहसें भी बढ़ी हैं। स्वयं पत्रकारिता के पेशे को लेकर भी तरह-तरह की बहसें चल रही हैं। प्रिंट पत्रकारिता का दौर मिशन पत्रकारिता का दौर था जिसे निश्चित तौर पर टीवी ने एक प्रोफ़ेशन में बदल दिया है। अचानक पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े पहलुओं की चर्चा होने लगी है। देश भर में पत्रकारिता प्रशिक्षण को लेकर जागरूकता बढ़ी है।‘ब्रेकिंग न्यूज़’ पुस्तक चर्चित टीवी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी की एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें टीवी पत्रकारिता से जुड़े विभिन्न बहसों की चर्चा तो है ही, साथ ही, पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े पहलुओं को समझने-समझाने की साफ़ और ईमानदार कोशिश इसमें दिखाई देती है। अगर आप यह जानना चाहते हैं कि एक आदर्श टीवी रिपोर्टर के क्या गुण होने चाहिए, एंकरिंग करते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, टीवी के लिए समाचार लिखते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। किन पहलुओं पर ज़ोर देना चाहिए, 24 घंटे चलने वाला समाचार चैनल किस रूप में काम करते हैं, टीवी पर प्रसारित होने वाले समाचारों के लिए उत्तरदायी कौन होता है, यह माध्यम प्रिंट पत्रकारिता से कितना भिन्न होता है या उसका पूरक होता है- इस तरह की तमाम जिज्ञासाओं को इस पुस्तक में शान्त करने की कोशिश की गयी है। चूँकि यह पुस्तक एक ऐसे टीवी पत्रकार द्वारा तैयार की गयी है, जो इस माध्यम से एकदम आरम्भ से ही जुड़े रहे हैं, जिन्होंने उसे जवान होते देखा है और उसके भविष्य को जानने-समझने की कोशिश कर रहे हैं। इसे एक ‘इनसाइडर’ की ‘इनसाइड स्टोरी’ की तरह भी पढ़ा जा सकता है।
SKU: VPG8181435303 -
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Breaking News
ब्रेकिंग न्यूज़ –
तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखिन की देखी-कबीर ने जब यह दोहा कहा या लिखा होगा, तो उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि एक दिन टीवी पत्रकारिता उनके इस दोहे को भविष्यवाणी की तरह सिद्ध कर देगी। टीवी पत्रकारिता ने दस से भी कम वर्षों में जिस तरह से समाज में अपने आपको स्थापित कर लिया है, सचमुच आश्चर्यजनक है। यह यात्रा शुरू हुई थी ‘आज तक’ नामक 20 मिनट के एक छोटे से कार्यक्रम से, जिसकी सफलता आज समाचार चैनलों की होड़ में बदल चुकी है। आज तक, एनडीटीवी इंडिया, ज़ी न्यूज, इंडिया टीवी, चैनल सेवन… ये महज कुछ समाचार चैनलों के नाम हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगले कुछ वर्षों में कम से कम दर्जन भर समाचार चैनल हिन्दी में ही शुरू हो जायेंगे। महज पाँच सालों के भीतर ही समाचार चैनलों की भूमिका बढ़ी है। जिस तरह से उसने अपनी उपयोगिता साबित की है, उससे यह साबित हुआ है कि यह एक स्थायी माध्यम के रूप में समाज में बना रहने वाला है।
जिस तेज़ी से समाज में समाचार चैनलों की जगह बनी है, उसी तरह से उसको लेकर बहसें भी तेज़ हुई हैं। चाहे स्टिंग ऑपरेशन का मामला हो या नैतिकता का या अपराध और सेक्स से जुड़े पहलू हों, टीवी को लेकर इस तरह की बहसें भी बढ़ी हैं। स्वयं पत्रकारिता के पेशे को लेकर भी तरह-तरह की बहसें चल रही हैं। प्रिंट पत्रकारिता का दौर मिशन पत्रकारिता का दौर था जिसे निश्चित तौर पर टीवी ने एक प्रोफ़ेशन में बदल दिया है। अचानक पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े पहलुओं की चर्चा होने लगी है। देश भर में पत्रकारिता प्रशिक्षण को लेकर जागरूकता बढ़ी है।‘ब्रेकिंग न्यूज़’ पुस्तक चर्चित टीवी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी की एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें टीवी पत्रकारिता से जुड़े विभिन्न बहसों की चर्चा तो है ही, साथ ही, पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े पहलुओं को समझने-समझाने की साफ़ और ईमानदार कोशिश इसमें दिखाई देती है। अगर आप यह जानना चाहते हैं कि एक आदर्श टीवी रिपोर्टर के क्या गुण होने चाहिए, एंकरिंग करते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, टीवी के लिए समाचार लिखते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। किन पहलुओं पर ज़ोर देना चाहिए, 24 घंटे चलने वाला समाचार चैनल किस रूप में काम करते हैं, टीवी पर प्रसारित होने वाले समाचारों के लिए उत्तरदायी कौन होता है, यह माध्यम प्रिंट पत्रकारिता से कितना भिन्न होता है या उसका पूरक होता है- इस तरह की तमाम जिज्ञासाओं को इस पुस्तक में शान्त करने की कोशिश की गयी है। चूँकि यह पुस्तक एक ऐसे टीवी पत्रकार द्वारा तैयार की गयी है, जो इस माध्यम से एकदम आरम्भ से ही जुड़े रहे हैं, जिन्होंने उसे जवान होते देखा है और उसके भविष्य को जानने-समझने की कोशिश कर रहे हैं। इसे एक ‘इनसाइडर’ की ‘इनसाइड स्टोरी’ की तरह भी पढ़ा जा सकता है।
SKU: VPG8181435309 -
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Electronic Media Ki Chunautiyaan
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की चुनौतियाँ –
स्वाधीनता से पहले ही भारत के द्वार पर विज्ञान ने दस्तक देना शुरू कर दिया था। सबसे बड़ी क्रान्ति तो बिजली से हुई थी, जिसे जन-साधारण तक पहुँचते-पहुँचते कई दशक लग गये। भारत में सबसे पहले हवेलियों में ही बिजली के हंडे जगमगाये थे। विदेश में निर्मित कारों ने भी सबसे पहले सामन्तों की हवेली में ही प्रवेश किया था। बग्घियों और ताँगों की जगह कारों ने घेर ली थी। जनसंख्या का विस्फोट हुआ तो ताँगों का स्थान रिक्शा और ऑटोरिक्शा ने ले लिया। भारत में रेडियो का प्रवेश भी एक चमत्कार की तरह हुआ था। एक ज़माना था जब लोग मीलों चलकर रेडियो सुनने जाते थे। देखते-देखते रेडियो ने जन-साधारण तक अपनी पैठ मज़बूत कर ली। रेडियो में प्रसारित समाचार पर जैसे प्रामाणिकता की मुहर लग जाती थी। फिर आया जादू का पिटारा, टेलीविज़न। पश्चिम में इसे ‘इडियट बॉक्स’ के रूप में पुकारा जाता है। इसके बाद आया मोबाइल, रेडियो ने मोबाइल में भी परकाया प्रवेश कर लिया। कल आप मोबाइल पर टेलीविज़न भी देख पायेंगे। टेलीविज़न की लीला न्यारी है। भारत में इस सुविधा का विकास अत्यन्त चरणबद्ध रूप से हुआ। माँग को देखते हुए विकास की गति अति तीव्र रही। जब भारत में टेलीविज़न आया तो लोगों की उत्सुकता इस हद तक पहुँच चुकी थी कि वे प्रसारण के चार घंटे टेलीविज़न सेट के सामने बैठ कर बिताया करते थे, चाहे ‘कृषि-दर्शन’ जैसा कार्यक्रम ही क्यों न आ रहा हो। फिर आया ख़बरिया चैनलों का दौर। चौबीस घंटे आप समाचार देख सकते थे। लोग पहले टेलीविज़न पर समाचार देखते, सुबह अख़बारों में समाचार पढ़ते।
यह समझना कठिन लग रहा था कि लोग दिन-रात समाचार के पीछे क्यों पागल रहते हैं। वास्तव में समाचार कोई जड़ वस्तु नहीं होते, वे लगातार विकसित होते हैं। उनमें भी यह जानने की उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या हुआ हत्या हो गयी तो प्रश्न उठता है, हत्या किसने की, क्यों की, हत्यारा कौन था, हत्या के प्रति शासन का क्या रवैया है, उसकी परिणति क्या हुई? टेलीविज़न के विकास में ‘स्टिंग ऑपरेशन’ ने भी नये प्राण फूँक दिये। आप स्क्रीन पर देख रहे हैं कि नेताजी रंगे हाथों रिश्वत ले रहे हैं। हर चैनल पर देख रहे हैं, हर चैनल के पास अपनी स्टोरी है। इन सब कार्यक्रमों ने टेलीविज़न की प्रासंगिकता अब तक कायम रखी है।
इस पुस्तक में सीधे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े लोगों का ‘आँखों देखा सच’ प्रस्तुत है। मीडिया की ‘इनसाइड स्टोरी’ सतह पर बहुत कम आ पाती है, इस पुस्तक में यह स्टोरी अपने ‘नौ रसों’ के साथ मौजूद है। इसके अलावा देश के नामचीन मीडिया विशेषज्ञों के आलेख इस पुस्तक को सम्पूर्ण बनाते हैं। एक प्रायः अछूते विषय पर एक सवर्था स्वागतयोग्य पुस्तक।SKU: VPG8126319480 -
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Hindi Patrakarita Evam Jansanchar
हिन्दी पत्रकारिता एवं जनसंचार –
हिन्दी पत्रकारिता और जनसंचार पुस्तक, उन सभी मूल्यों को जीवन में व्यवहारिक रूप से अपनाने के लिए बाध्य करती है जिन मूल्यों से पत्रकारिता का क्षेत्र महिमामंडित हुआ है। पत्रकारिता एवं जनसंचार एक ऐसा विषय है जो सम्पूर्ण समाज के हितों से जुड़ा हुआ है। भले ही पत्रकारिता आज एक सम्मोहक विषय बन गया हो, और बड़ी संख्या में जिज्ञासु जन इस क्षेत्र में आने लगे हों; तब भी यह क्षेत्र समाज सेवा का एक जबर्दस्त माध्यम है। संसद की तरह यहाँ कुछ भी गोपनीय नहीं है। पत्रकारिता एवं जनसंचार माध्यमों की पहुँच आज विश्व मानव तथा देश के जन-जन तक सम्भव हुई है। संवाद भी पुख्ता हुआ है। जनसंचार माध्यम शिक्षक जैसी मुद्रा अपना कर देश की जनता को शिक्षित करने प्रेरित करने एवं स्वस्थ मनोरंजन उपलब्ध कराने है। संचार माध्यमों की इस भूमिका को विस्तार भी मिल रहा है। आज आम जन का पत्रकारिता एवं जनसंचार माध्यमों से नाता टूट हो गया है। स्वतन्त्रता के बाद पत्रकारिता एवं जनसंचार माध्यमों में व्यवसायिकता दूध-पानी की तरह घुल गयी है मिशन की भावना में जबर्दस्त अभाव खटकता है। उच्च सांस्कृतिक विरासत के दिशाबोध की कमी भी खलती है। ये ऐसे ज्वलन्त प्रश्न हैं जिनके उत्तर, पाठक इस पुस्तक में सहजता के साथ खोज सकता है। पत्रकारिता एवं जनसंचार माध्यम विवेक और प्रतिभा की प्रस्तुति के उचित आधार बिन्दु कहे जा सकते हैं। पर कहीं पत्रकारिता ने हमें अमर्यादित रूप से अधिकार सजग तो नहीं बना डाला है; साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संवेदनाएँ कहीं कमज़ोर तो नहीं हुई है, राष्ट्र प्रेम व मानवीय प्रेम को जो धक्का लगा है वह शोचनीय है। इस सन्दर्भ में दिशा बोधक, मूल्य परक, एवं आचार संहिता का बुनियादी ज्ञान, इस पुस्तक में पाठक को सद्प्रेरित करता है। पुस्तक अत्यन्त पठनीय एवं ज्ञानवर्द्धक है।SKU: VPG8181439314 -
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Media Aur Hamara Samay
मीडिया और हमारा समय –
मीडिया के आकार लेने से अब तक की यात्रा में उसने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। अगर मीडिया की आज़ादी के बाद की यात्रा देखें तो उसे तीन हिस्सों में बाँट कर हम देख सकते हैं। एक आज़ादी के आन्दोलन के बोझ और उसे प्राप्त करने के बाद उपजे सपनों से दबी पत्रकारिता और दूसरी आज़ादी के मोहभंग के बाद की। और तीसरी मिशन के अन्त और पूँजी के हस्तक्षेप की पत्रकारिता। चर्चित युवा मीडिया विश्लेषक प्रांजल धर की पुस्तक ‘मीडिया और हमारा समय’ तीसरी तरह की आधुनिक पत्रकारिता की प्रवृत्तियों और उसके विचलन पर केन्द्रित एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में मीडिया में दरकते मूल्यों, नयी तकनीक, ऑनलाइन पत्रकारिता, टीवी, रंगमंच, एफ़एम रेडियो, प्रेम और बेवफ़ाई से सम्बन्धित कई लेख संकलित हैं। आधुनिक पत्रकारिता को समझने के लिए यह पुस्तक एक बेहतरीन हथियार है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस पुस्तक के कुछ निबन्ध मीडिया में पूँजी के हस्तक्षेप के नफ़े-नुक़सान को बताते हैं और मीडिया की आज़ादी के सवाल को भी सामने लाने की कोशिश करते हैं। मौजूदा समय में मीडिया की आज़ादी को लेकर एक ख़ास बहस चल रही है कि मीडिया जनपक्षीय हो या बाज़ारोन्मुखी। बाज़ार के दबाव में मीडिया अपने सरोकारों को लगभग त्याग चुका है। गम्भीर सवालों के लिए उसके पास जगह नहीं हैं। जीभ और जाँघ भूगोल में उसे बाज़ार ने फँसा लिया है। इन सवालों को भी इस पुस्तक के कई निबन्ध पूरी शिद्दत से उठाते हैं। बाज़ार से नियन्त्रित होने वाले मीडिया को इसीलिए अब नियम और क़ानून में बाँधने के लिए भी आवाज़ें उठने लगी हैं। इस सन्दर्भ में ‘मीडिया : नियमन की लकीरें’ और ‘मीडिया के नियमन की जटिलताएँ’ लेख काफ़ी महत्त्वपूर्ण सवालों को उठाते हैं। उत्तर आधुनिक मीडिया को जानने और समझने के लिए प्रांजल की पुस्तक ‘मीडिया और हमारा समय’ एक ज़रूरी किताब है।SKU: VPG9326352604 -
Journalism
Media Samagra (Media : A Complete Overview)
मीडिया युगबोध के साथ मानवता के विकास और विचारोत्तेजन का राजमार्ग है। समाज, संस्कृति, साहित्य, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं अन्तरिक्ष के व्यापक प्रसार के साथ मानव-संघर्ष, प्रगति-दुर्गति वाले जीवन-सागर में आये ज्वार-भाटा को संसूचित करने में मीडिया ही सक्षम है। अविश्वास, अन्धविश्वास, अन्धेरगर्दी को मिटाकर सभ्य, सदाशय समाज के निर्माता संचार-संसाधन ही हैं जो अद्यतन घटनाओं के उद्घोषक, वैचारिक आन्दोलन के पुरोधा सिद्ध हो रहे हैं। पल-पल पर परिवर्तित जीवन और जगत् की अनन्त जिज्ञासा का सूत्रधार यही मीडिया है जो अभिव्यक्ति का समग्र विज्ञान तथा मनोरम कला है। ‘देश की धड़कन के साथ धड़कता सूचना-स्रोत’, ‘नया नज़रिया-नयी तकनीक’ से सम्पुष्ट मीडिया ‘मिशन’, ‘प्रोफ़ेशन’ और ‘एम्बिशन’ है जिसमें सुप्रशिक्षित होकर सम्पादक, उपसम्पादक, ब्यूरोचीफ़, वार्ताकार, कमेंटेटर, स्तम्भ लेखक, कार्टूनिस्ट, पी.आर.ओ., हिन्दी अधिकारी तथा प्रोफ़ेसर के रूप में जीवन को समुज्ज्वल बनाया जा सकता है। इंडियन इन्फार्मेशन सर्विस, डी.ए.वी.पी., फ़िल्म्स डिवीजन, नेशनल फ़िल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो, पब्लिकेशन डिवीजन, प्रसार भारती के विविध पदों पर वही आसीन हो सकता है जो मीडिया विशेषज्ञ हो। मल्टीमीडिया के विभिन्न स्वरूपों में दक्षता प्राप्त कर युवा पीढ़ी गोल्ड, ग्लोरी, ग्लैमर का हकदार बन सकती है जिसके निमित्त ही इस ग्रन्थ को प्रस्तुत किया जा रहा है।
SKU: VPG9389012125