Linguistics Books
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Anya Bhasha Shikshan Ke Brihat Sandarbh
अन्य भाषा – शिक्षण के बृहत् सन्दर्भ –
शैलीविज्ञान की आमद ने ‘शैली’ की अवधारणा को आमूलचूल बदल कर रख दिया है। क्षेत्रीय, सामाजिक, सन्दर्भयुक्त तथा मिश्रित शैली की सामाजिक सम्प्रेषण में ज़रूरी भूमिका ने शिक्षण सामग्री में भी परिवर्तन लाना शुरू कर दिया है। भाषा के भिन्न-भिन्न प्रकार्यों को भी सम्प्रेषण प्रक्रिया के सन्दर्भ में पहचाना तथा अन्य भाषा-शिक्षण में अब पर्याप्त स्थान दिया गया है। कहना न होगा कि इन परिवर्तनों ने भाषा-शिक्षण की प्रविधि और प्रणाली को भी नया मोड़ दे दिया है।
अन्य भाषा-शिक्षण (द्वितीय और विदेशी) के इसी परिवर्तनशील स्वरूप को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। बातें यहाँ सैद्धान्तिक कम, व्यावहारिक अधिक हैं। अन्य भाषा-शिक्षण में इलेक्ट्रानिक मीडिया और कम्प्यूटर की भूमिका पर चर्चा के साथ-साथ सम्प्रेषणपरक द्वितीय भाषा शिक्षण पर यहाँ सम्यक विचार किया गया है। साहित्य भाषा-शिक्षण के लिए इक़बाल के ‘तराना-ए-हिन्दी’ का विश्लेषण उस नयी प्रविधि का एक नमूना है जिसे भाषा शिक्षण के लिए अपनाने पर आज विशेष बल दिया जा रहा है। साहित्यिक पाठ के माध्यम से भाषा-दक्षता को बढ़ावा देने वाला यह ढाँचा अन्य भाषा शिक्षण के प्रमुख सिद्धान्तों को भी सामने ले आता है।SKU: VPG9350001714 -
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Bharat Ki Bhashayen
भारत की भाषाएँ –
विख्यात भाषाविज्ञानी राजमल बोरा की यह पुस्तक भारतीय भाषाविज्ञान के क्षेत्र में एक अनोखी कृति है। भारत की प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण भाषाओं का विवेचन करनेवाली यह एकमात्र पुस्तक है, जिसमें उनके भूगोल को भी रेखांकित किया गया है। इस पुस्तक की एक और विशेषता यह है कि इस विवेचन में दक्षिण भारत को द्रविड़ परिवार के भौगोलिक क्षेत्र को केन्द्र – मानकर अन्य भाषाओं का विवेचन किया गया है। आर्य परिवार और द्रविड़ परिवार, ये दोनों ही परिवार आधुनिक भाषाविज्ञान की देन है, लेकिन यह वर्गीकरण भौगोलिक आधार पर ही उपलब्ध है, ऐतिहासिक आधार पर इसका विवेचन नहीं मिलता। राजमल बोरा ने अपने विपुल शोध के आधार पर और भौतिक दृष्टि से इस कठिन काम को सम्पन्न करते हुए दक्षिण भारत की चारों प्रमुख भाषाओं और भारतवर्ष की आधुनिक भाषाओं पर स्वतन्त्र अध्याय लिखे हैं। भारत की भाषाओं के ऐतिहासिक विकास और अन्तःसम्बन्ध को समझने के लिए एक अनिवार्य कृति।SKU: VPG8170553915 -
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Bhasha Sahitya Aur Sanskriti Shikshan
भाषा साहित्य और संस्कृति शिक्षण –
भारत की बहुभाषिक और बहुसांस्कृतिक संरचना में दूसरी भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण की अपनी आवश्यकताएँ और समस्याएँ हैं। विदेशी भाषा के रूप में भी हिन्दी शिक्षण की अलग माँग है। फिर भी अन्य भाषा हिन्दी शिक्षण पर हिन्दी में पुस्तकों का नितान्त अभाव हैं। इस तरह की जो किताबें हिन्दी में प्रकाशित हैं उनमें में अधिकतर व्याकरण-शिक्षण की परिधि तक सीमित है। इसका एक कारण तो यह है कि इन पुस्तकों के लेखक या तो शुद्ध भाषावैज्ञानिक हैं या हिन्दी के वैयाकरण अतः वे सिद्धान्त चर्चा से बाहर नहीं निकल पाते और संरचना केन्द्रित भाषा शिक्षण को ही भाषा अधिगम का प्रथम और अन्तिम सोपान मानते हैं।
दूसरा कारण यह है कि भाषावैज्ञानिक पृष्ठभूमि के इन लेखकों की साहित्य-भाषा में तनिक भी रुचि नहीं है जबकि अन्य भाषा के शिक्षण का बहुत बड़ा हिस्सा पाठ केन्द्रित होता है। भारत के भाषाविद् और साहित्यवेत्ता दो खेमों में बँटे हुए हैं। भाषाविज्ञानी साहित्य से और साहित्यकार आलोचक भाषाविज्ञान से अपने को कोसों दूर रखते हैं। अन्य देशों में ऐसा नहीं है, क्योंकि वे जानते हैं कि साहित्यिक कृति में भाषा अध्ययन की तथा भाषा में सर्जनात्मकता की अनन्त सम्भावनाएँ निहित हैं। कारण कुछ भी हों, अन्य भाषा शिक्षक को सम्बोधित सामग्री का हिन्दी में नितान्त अभाव है, इसमें दो राय नहीं। हिन्दीतर क्षेत्रों तथा विश्व के अन्य देशों में हिन्दी पढ़ानेवालों को यह पुस्तक ध्यान में रखकर तैयार की गयी है।
अतः अन्य भाषा शिक्षण की पृष्ठभूमि, भाषा तथा भाषा-शिक्षण की अधुनातन संकल्पनाओं का सरल विवेचन इस पुस्तक की अपनी विशेषता है। अन्य भाषा-शिक्षण के इतिहास का लेखाजोखा देनेवाली और समय-समय पर इस ज्ञान क्षेत्र में आये परिवर्तनों की ओर संकेत करने वाली यह हिन्दी में पहली पुस्तक है।
भाषा, साहित्य और संस्कृति शिक्षण के बीच अन्तःक्रियात्मक प्रणाली का प्रतिपादन करने से यह पुस्तक अधिगम विकास की उस संकल्पना को साकार करती है, जिसमें शिक्षण की एक सीमा के बाद भाषा-अध्येता स्वतः अपने प्रयास से अपनी भाषायी और भाषा प्रयोग की शक्ति का विकास करने की और उद्यत होता है।SKU: VPG8181436191 -
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Bhasha Vimarsh Navya Bhashavaigyanik Sandarbah
भाषा-विमर्श नव्य भाषावैज्ञानिक सन्दर्भ –
यह पुस्तक हिन्दी में भाषा-विषयक विवेचन की गतानुगतिक रूढ़ि को तोड़ती भाषा-विमर्श के नये ‘स्कोप’ को हमारे सामने प्रस्तुत करती है। यह हमें बताती है कि भाषा-विमर्श क्या है और उसके सही सन्दर्भ क्या हैं। हिन्दी में पहली बार यहाँ भाषा-विमर्श भाषा के सामान्य और विशिष्ट-दोनों गुणधर्मो की दृष्टि से प्राप्त होता है। इस पुस्तक में भाषा-विषयक विमर्श के स्वरूप प्ररूप, प्रकार्य और क्षेत्र को न केवल बड़ी गहराई और तलस्पर्शिता से एक बड़े दायरे में उपस्थापित किया गया है, बल्कि आज के नव्य भाषावैज्ञानिक साक्ष्य में इसे पहली बार व्याकरणिकता, शैक्षणिकता, अर्जनात्मकता, सार्वभौमिकता, सापेक्षता, सर्वेक्षणपरकता, यौन विभेदकता तथा प्ररूपात्मकता (Typologicality) से सन्दर्भित कर विवेचित किया गया है। लेखक मानता है कि ‘भाषा-व्यवहार’ और ‘वचन-कर्म’ यद्यपि भाषाव्यवहार-शास्त्र (Pragmatics) के अभिन्न अंग हैं, तथापि ये भाषा-विमर्श के अहम मुद्दे भी हैं। अतः यहाँ ये एक अपरिहार्य दायित्व के बतौर भाषा-विमर्श के अन्तर्गत विवेचित हुए हैं।
इस पुस्तक में पहली बार गहन भाषाविज्ञान (Micro-Linguistics), बृहत् भाषाविज्ञान (Macro-Linguistics) और अधिभाषाविज्ञान (Mera-Linguistics)- तीनों के अन्तर्गत सक्रिय भाषा की अपेक्षित भूमिका (role) को अपने विमर्श का विषय बनाया गया है, जहाँ भाषा-विमर्श के साथ इनका न केवल सीधा सरोकार स्पष्ट होता है, बल्कि इनकी प्राथमिक नातेदारी भी सिद्ध हो जाती है।
सबसे बड़ी बात है कि यह पुस्तक न केवल भाषाई ज्ञानानुशासन के सन्दर्भ में ज्ञान प्रदान करने वाली एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है, अपितु जीवन-जगत् में भी सामान्य भाषा-व्यवहार के सन्दर्भ में हमारी भाषा-चेतना और भाषा-विवेक को समृद्ध करने वाली सर्वोत्तम पुस्तक है। अन्ततः ‘भाषा-विमर्श’ के जिज्ञासु पाठकों के लिए हिन्दी में एकमात्र पठनीय, मननीय और संग्रहणीय पुस्तक!SKU: VPG9350725665 -
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Bolchal Ki Hindi Aur Sanchar
बोलचाल की हिन्दी और संचार –
देश भर में शिक्षा के क्षेत्र में मूलभूत परिवर्तन हो रहे हैं। हर विषय में नयी बातें जोड़ कर उसे कई आयामों और सन्दर्भों में देखा और समझा जा रहा है। इसका नतीजा यह है कि बहुत-सी पुरानी बातें नकारी जा रही हैं और बहुत-सी नयी बातें पुरानी मान्यताओं को ध्वस्त भी कर रही हैं। नवीनता की इस प्रक्रिया को ध्यान में रखकर द्वितीय भाषा के स्तर पर हिन्दी के पाठयक्रमों में भी नवीनता लाने का प्रयास किया गया है। इस बिन्दु को केन्द्र में रखते हुए हिन्दी के व्यावहारिक पक्ष पर यह पाठ्य पुस्तक तैयार की गयी है। पुस्तक के द्वारा मलयालम भाषी हिन्दी छात्रों को बोलचाल की हिन्दी और उसकी शब्दावली का व्यावहारिक परिचय मिलता है। इस पुस्तक में कार्यालय, परिवार, यात्रा, पुलिस स्टेशन, बैंक आदि सन्दर्भों में प्रयुक्त हिन्दी वार्तालाप के नमूने दिये गये हैं। अध्यापकों का दायित्व है इन नमूनों के आधार पर छात्रों की हिन्दी भाषिक क्षमता और योग्यता को बढ़ाना और हिन्दी की प्रयुक्तियों से उनको अवगत कराना। पुस्तक में पाठों के साथ अभ्यास भी दिये गये हैं। साथ ही हिन्दी भाषा की सामान्य ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के अलावा वर्तमान में विविध क्षेत्रों में उसके प्रयोग और उसकी विशिष्टता का ज्ञान कराने वाली उपयोगी सामग्री भी दी गयी है। इससे हिन्दी भाषा को व्यावहारिक रूप से अपनाने के लिए एक सिद्धान्तिक आधार मिलेगा।SKU: VPG9387155107 -
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Bolchal Ki Hindi Aur Sanchar
बोलचाल की हिन्दी और संचार –
देश भर में शिक्षा के क्षेत्र में मूलभूत परिवर्तन हो रहे हैं। हर विषय में नयी बातें जोड़ कर उसे कई आयामों और सन्दर्भों में देखा और समझा जा रहा है। इसका नतीजा यह है कि बहुत-सी पुरानी बातें नकारी जा रही हैं और बहुत-सी नयी बातें पुरानी मान्यताओं को ध्वस्त भी कर रही हैं। नवीनता की इस प्रक्रिया को ध्यान में रखकर द्वितीय भाषा के स्तर पर हिन्दी के पाठयक्रमों में भी नवीनता लाने का प्रयास किया गया है। इस बिन्दु को केन्द्र में रखते हुए हिन्दी के व्यावहारिक पक्ष पर यह पाठ्य पुस्तक तैयार की गयी है। पुस्तक के द्वारा मलयालम भाषी हिन्दी छात्रों को बोलचाल की हिन्दी और उसकी शब्दावली का व्यावहारिक परिचय मिलता है। इस पुस्तक में कार्यालय, परिवार, यात्रा, पुलिस स्टेशन, बैंक आदि सन्दर्भों में प्रयुक्त हिन्दी वार्तालाप के नमूने दिये गये हैं। अध्यापकों का दायित्व है इन नमूनों के आधार पर छात्रों की हिन्दी भाषिक क्षमता और योग्यता को बढ़ाना और हिन्दी की प्रयुक्तियों से उनको अवगत कराना। पुस्तक में पाठों के साथ अभ्यास भी दिये गये हैं। साथ ही हिन्दी भाषा की सामान्य ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के अलावा वर्तमान में विविध क्षेत्रों में उसके प्रयोग और उसकी विशिष्टता का ज्ञान कराने वाली उपयोगी सामग्री भी दी गयी है। इससे हिन्दी भाषा को व्यावहारिक रूप से अपनाने के लिए एक सिद्धान्तिक आधार मिलेगा।SKU: VPG8181434920