Memories
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Chehre
अदब का ताल्लुक़ दिल के रिश्ते से होता है, हमारे अहसास की पैमाइश और गहराई की अभिव्यक्ति कोई लफ़्ज़ नहीं बल्कि जज़्बातों का सैलाब होता है, जिसे हम जीते हैं, महसूस करते हैं। ज़िन्दगी इन्हीं खट्टे-मीठे तज़ुरबों की कहानी बन जाती है। कुछ कलन्दर इसे अपने इशारे पर नचाते हैं और कुछ को ये। उर्दू अदब की दौलत ऐसे दीवाने-फनकारों से हमेशा लबरेज़ रही है जिन्होंने अपनी कहानी को लफ़्ज़ों के दस्तावेज़ से रोशन किया है। निदा फ़ाज़ली की ‘चेहरे’ उर्दू अदब के ऐसे ही मस्त-कलन्दरों की ज़िन्दगी की आपबीती है। मशहूर शाइरों का अन्दाज़े -बयां, उनका तौर–तरीका, ख़्वाहिशें, हसद, मोहब्बतें, चाल-चलन, सादगी, रवानी, मिठास और लोच को निदा फ़ाज़ली की क़लम जिस तरह से बयां करती है वो कमाल है। लगता है ये किसी का जाति मामला नहीं बल्कि हमारा ही आईना है जिसमें हमें अपना ही चेहरा दिखाई देता है।
निदा फ़ाज़ली के अन्दाज़ में ख़ूबसूरती और सलीके का मिश्रण है आप जानते हैं आपको कब-कब क्या कहना है। ‘चेहरे’ निदा भाई के अपने संस्मरण हैं जो अब हमारा भी हिस्सा हैं।
SKU: VPG9350004920 -
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In Bin
इन बिन… –
डोगरी की सुप्रसिद्ध कवयित्री, हिन्दी कथाकार पद्मा सचदेव की नवीनतम कृति है—’इन बिन…’। पद्मा जी लिखती हैं—गुज़रे हुए वक़्तों में हैसियत वाले लोगों के घरों में काम करनेवाले नौकर-चाकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने मालिकों के साथ रहते हुए उस घर के सदस्य जैसे हो जाते थे।… बहुत से घरों में तो बुजुर्ग हो जाने पर ये नौकर घरेलू मामलों में सलाह भी देने लगते थे… इन रिश्तों के और भी बहुत से पहलू हैं, पर मैं तो सिर्फ़ यह जानती हूँ कि आज भी इनके बिना घर-गृहस्थी के संसार से पार होना बड़ा मुश्किल है।
पद्मा जी कहती हैं इस सफ़र में जो भी आत्मीयता से मिलकर साथ चले वे तो हमेशा से ही संग रहे, पर जो लोग राह में आगे-पीछे हो गये उन सभी की स्मृतियाँ भी मैंने अपने अन्दर परत-दर-परत सहेजकर रखी हुई हैं। उन्हीं के बारे में है यह पुस्तक ‘इन बिन…’।SKU: VPG8126314911 -
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Kahne Ko Bahut Kuch Tha
“मेरा ननिहाल था रावलपिण्डी। घर से मेरी नानी जितने दिन जीवित रहीं, एक उदास चुप्पी का पुराना सालू समेटे, बिछुड़ा हुआ अतीत जीती रहीं। उनके पैर के तलवे का ज़ख्म जो घर की ड्योढ़ी लाँघते समय उन्हें ख़ूनो-ख़ून कर गया था। उनकी मृत्यु तक बराबर रिसता रहा। आँसू जैसे आँखों से नहीं पैर की मवाद में बहते रहे…। तब तक जब तक उन्होंने नब्बे वर्ष की उम्र में निवाड़ की चारपाई पर, निःशब्द दम तोड़ दिया। वह अपने नित्य के नाटक से बाहर चली गयीं। दिल्ली के घर के रंगमंच पर से विदा लेकर उस पृष्ठभूमि में जहाँ वह अभिनय का एक बेबस पात्र नहीं, वह स्वयं थीं अकेली अपनी पुरानी रावलपिण्डी की ‘रलियाराम हवेली’ से रुख़सत लेती हुई। तब से बचपन से नानी की रावलपिण्डी, पाकिस्तान कहीं मेरे भीतर तिलस्म…रूमानियत…दर्द सा सरसराता रहा। फिर मेरे जाने-अनजाने एक फैस्सीनेशन में बदल गया। – ‘एक संस्मरण का अंश’
SKU: VPG9389012712 -
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Neh Ke Naate Anek
नेह के नाते अनेक –
प्रख्यात ललित निबन्धकार कृष्णबिहारी मिश्र के ये निबन्ध, संस्मरण विधा के आसाधारण उदाहरण हैं जो साहित्य के कृती व्यक्तित्वों की जीवन घटनाओं और अनुभवों को लोक-व्यापी अर्थ देते हैं। विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, नन्ददुलारे वाजपेयी, हजारीप्रसाद द्विवेदी, वाचस्पति पाठक, स.ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, प्रभाकर माचवे, ठाकुरप्रसाद सिंह, धर्मवीर भारती, शिवप्रसाद सिंह, कुमारेन्द्र पारसनाथ सिंह जैसे लेखकों पर लिखे ये निबन्ध साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान के अधिकारी हैं। लेखक के लिए संस्मरण केवल अतीत-स्मृति नहीं, ‘म्लान पड़ रही जीवनप्रियता को रससिक्त कर पुनर्नवा’ करने वाले हैं। इन्हें पढ़कर ‘ध्यान आता है कि किस बिन्दु से चलकर, राह की कितनी विकट जटिलता से जूझते हम कहाँ पहुँचे हैं’; सचमुच इससे ‘लोकयात्रा की थकान’ थोड़ी कम हो जाती है।
वर्तमान और भविष्य को काफ़ी हद तक आश्वस्त करने वाले, संकटों से घिरी सृजनशील ऊर्जा की याद को ताज़ा करते, इन संस्मरणों में लेखक ने विरासत के मार्मिक तथ्यों के माध्यम से, कुछ तीख़े सवाल भी खड़े किये हैं, जो नये विमर्श के लिए मूल्यवान सूत्र सिद्ध हो सकते हैं।SKU: VPG8126309989 -
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Pichhley Panne
पिछले पन्ने –
संस्मरण विधा लेखन की दूसरी विधाओं के बनिस्पत कठिन व दुष्कर विधा है और किन्ही अर्थों दुस्साध्य भी। इसलिए कि लेखन का बीज की जा सकने वाली ‘कल्पना’ के लिए इस विधा में कोई स्पेस नहीं होता। कल्पना वह पानी है जिससे कुम्हार की तरह एक लेखक इतिवृत्तात्मकता की मिट्टी को गूँथकर एक रचना रचता है। इसी अर्थ में इसे एक दुस्साध्य विधा माना जा सकता है।
फिर संस्मरण ही एक ऐसी विधा है जहाँ लेखक की भी मौजूदगी होती है। यहाँ कठिनता यह है कि संस्मरण लेखक के पास ज़बर्दस्त अनुपात बोध होना आवश्यक है। अर्थात् अपने कथ्य में लेखक की मौजूदगी बस उतनी होनी चाहिए जितना दाल में नमक।
लेकिन लेखक अगर गुलज़ार जैसी कद्दावर शख़्सियत का मालिक हो तो इस अनुपात-बोध के गड़बड़ाने का ख़तरा पैदा हो जाना लाज़िमी है। ‘पिछले पन्ने’ के संस्मरणों से गुज़रते हुए बारहाँ हम चौंकते हैं कि गुलज़ार ने बिना अपनी कोई ख़ास मौजूदगी दर्ज किये, बड़ी रवानगी के साथ इन्हें रचा है। पुस्तक में संकलित पोर्ट्रेट्स व मर्सिया हमें दग्ध-विदग्ध करते हैं। बिमल राय, भूषण बनमाली, मीना कुमारी, जगजीत सिंह आदि को यहाँ जिस अपनेपन से याद किया गया है, हम उनके जीवन की उन अँधेरी कन्दराओं में भी झाँक आते हैं जो इनकी शख़्सियत की ऊपरी चमकीली रोशनियों में अब तक कहीं छिपी हुई थीं।
एक निहायत ही ज़रूरी व संग्रहणीय पुस्तक, जहाँ लेखक हमारे समकाल के आकाश में चमकते सितारों को ज़मीन पर उतार लाया है। -कुणाल सिंहSKU: VPG9326350068 -
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Prem Piyala Jin Piya
प्रेम पियाला जिन पिया –
चेखव की मर्मभेदी कहानियाँ, डिकेन्स के मानवतावादी उपन्यास, वेल्स की रोमांचक वैज्ञानिक कथाएँ और रिल्के की अद्भुत कविताएँ—विश्व-साहित्य के इन अमर हस्ताक्षरों की प्रेरणा का उद्गम कहाँ है इनके कृतित्व के पीछे, निजी जीवन की कौन-सी पीड़ाएँ थीं, कौन-से गोपन प्रणय या उजागर अनुराग-बन्धन थे? यह सब आप बहुत ही रोचक और कलात्मक रूप में जानेंगे ‘प्रेम पियाला जिन पिया’ में।प्रामाणिक तथ्यों और अन्तरंग आत्मीय विश्लेषण के कारण पुष्पा भारती के ये कथा-निबन्ध ऐसे बन पड़े हैं जिन्हें एक बार पढ़कर आप कभी भूल नहीं पायेंगे और फिर-फिर पढ़ना चाहेंगे, जीवन की अनेक उद्वेलित, प्रगाढ़, तन्मय और उदासीन मनःस्थितियों में।
इन कथा निबन्धों को पढ़कर बच्चन ने लिखा था कि ‘भावभीनी, चित्रात्मक, साथ ही परिनिष्ठित शैली में गद्य लिखने की पुष्पा भारती की क्षमता अद्वितीय है।’ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का कहना था—”मैं मन्त्रमुग्ध-सा पुष्पा भारती की लेखनी की ज्योतिर्मयता पर अभिभूत हो उठा हूँ।” विष्णु प्रभाकर की राय में—’सहज सरल भाषा में जो चित्र उकेरे हैं ये मन और मस्तिष्क दोनों पर सहज ही अंकित हो जाते हैं। सारी की सारी कथाएँ लीक से हटकर हैं’। केशवचन्द्र वर्मा को खेद है और वे इसे हिन्दी का दुर्भाग्य मानते हैं कि ‘उपन्यास, कहानी, कविता के अलावा किसी अन्य विधा के बारे में यहाँ के पुरोधा लोगों के बहीख़ाते में कोई हिसाब-किताब रहता ही नहीं। यह अपने ढंग की अकेली किताब है। जबकि पुष्पा भारती के ये कथा-निबन्ध अपने ढंग के अकेले हैं। प्रभाकर श्रोत्रिय कहते हैं कि ‘एक-एक कथा इतनी मार्मिक, रोचक और व्यक्तित्व को उद्घाटित करनेवाली है कि क्या कहूँ…. इस समय हिन्दी में इस विधा में लिखनेवाला पुष्पा भारती की जोड़ का लेखक कोई नहीं दिखता—यह कोई प्रशंसा नहीं हक़ीक़त है।’ कुमार प्रशान्त को इन निबन्धों में ‘मौलिक कृति’ का आनन्द मिला है।SKU: VPG8126307463 -
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Wah Madiyara Sanp
जीवन को अलग-अलग निगाह से देखने और पहचानने की एक स्वच्छन्द कोशिश है। इसमें जितना समय है, उतना ही समय की गवाही देते आदमी की रंगारंग फितरतें भी। यह कहना गुनाह नहीं होगा कि लेखक की स्मृतियों की सीमा ही, इनकी भी सीमा है अन्यथा तो ये सब जो यहाँ याद किये गये हैं, सचमुच याद करने लायक हैं। ये सब अलग-अलग किस्में हैं, स्वभावतः अपनी विरलता का सौन्दर्य और रोमांच लिए हुए। जिस भाषा और शिल्प के मुहावरे में ये बाँधे गये हैं उसमें उनके व्यक्तित्व की वे सुगन्धें धीमे-धीमे मुस्करा रही हैं, जो कई अन्यों के भी अनुभवों में होंगी।
SKU: VPG9387409873 -
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Yaadein
यादें –
प्रख्यात ज्योतिर्विद, हिन्दी के यशस्वी लेखक एवं प्रतिष्ठित पत्रकार पण्डित सूर्यनारायण व्यास अपने जीवन काल में देश की जिन महान विभूतियों के सम्पर्क में आये, वैचारिक आदान-प्रदान हुआ वह सब ‘यादें’ में उनके संस्मरणात्मक लेखों के रूप में संगृहीत है। व्यासजी की सशक्त क़लम से समय-समय पर निःसृत इन संस्मरणों का ऐतिहासिक महत्त्व है और ये युग की धरोहर हैं।
इन लेखों में जहाँ ईमानदार, निरभिमानी एवं स्वाभिमानी राष्ट्रनायकों, उद्योगपतियों, सन्तों, क्रान्तिकारियों, साहित्यकारों और कलाकारों के सम्पर्क में आने से उपजे प्रेरक प्रसंग हैं वहाँ मन को गहराई तक छू जानेवाली उनके निजी जीवन की कुछेक स्मृतियाँ भी हैं। इन संस्मरणों की शैली कुछ ऐसी है कि हम कभी-कभी ठहाका लगा बैठते हैं तो कभी अनायास आँखों को नम होने से रोक नहीं पाते।
पण्डित सूर्यनारायण व्यास के आत्मज राजशेखर व्यास के कुशल सम्पादन में हिन्दी साहित्य-जगत को समर्पित है।SKU: VPG8126310588