Odiya Novel
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Deva Shishu
देवशिशु –
अनुपूर्वा अमेरिका से भारत अनिच्छा से वापस आयी थी। वह वहाँ कला शिक्षक के रूप में अपना व्यवस्थित जीवन जी रही थी।
वह अमेरिका के आरामदायक उपनगरीय जीवन से स्थानान्तरित होकर आयी थी। उसे यह तनिक भी आभास नहीं था कि उसका भारत वापसी का फ़ैसला जीवन को बिल्कुल बदल देनेवाला साबित होगा।
एक बार उसकी कॉलेज की पुरानी साथी ने उसका परिचय ‘सेरिब्रल पलसि’ से पीड़ित बच्चों के स्कूल ‘आशा ज्योति’ से कराया।
यहाँ आकर उसे न जाने क्या लगा कि उसने अस्थायी आर्ट टीचर के रूप में स्वयंसेवक बनने का फ़ैसला ले लिया। अनुपूर्वा बच्चों को सिखाने लगी कि कैसे चित्र बनाकर उसमें रंग भरते हैं आदि-आदि; लेकिन उसे क्या पता था कि बच्चे अनजाने में उसे जीवन का वास्तविक पाठ पढ़ा रहे हैं——बीमारी से लड़ने, दोस्ती, प्रेम और हँसी का पाठ। बाहर की दुनिया इन्हें भले ही शारीरिक या मानसिक दृष्टि से कमज़ोर समझे, इनके अन्दर कुछ कर गुज़रने की अपार क्षमताएँ हैं।
अनुपूर्वा और कोई नहीं, स्वयं लेखिका हैं, जिन्होंने इन बच्चों के जीवन के अन्तरंग पहलुओं को बहुत नज़दीकी से जाना-समझा और उसे उपन्यास के रूप में शब्दबद्ध किया। एक बहुत ही रोचक कथानक पहली बार हिन्दी पाठकों के समक्ष।SKU: VPG9326350570 -
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Trandralok ka Praharee
तन्द्रालोक का प्रहरी –
इतिहास में धर्म के नाम पर बहुत अन्याय और नृशंसता होने के बावजूद धर्म की भित्ति या मर्म जिस तरह से असत्य नहीं है, वैसे ही टोना-टोटका के नाम से होने वाली प्रवंचना और कुसंस्कार से समाज के पीड़ित होने के बावजूद इन सबका उत्स भी क्षणिक नहीं है। हमारे स्थूल इन्द्रियानुभूत जगत के बाहर (या इसके साथ ओतप्रोत रहकर) चेतना के अनेक स्तर, अनेक वास्तविकताएँ हैं। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि ये सब आधिभौतिक (supernatural) हैं पर इन सबके साथ आध्यात्मिकता का कोई सम्बन्ध नहीं।
‘तन्द्रालोक का प्रहरी’ में लेखक उक्त दो विपरीत धुरियों के बीच तनी रस्सी पर किसी नट की भाँति सन्तुलन दिखाता है। यहाँ न पुराने का तिरस्कार है और न नये की अवांछित सिफ़ारिश।
मनोरोग चिकित्सा के सन्धान से पूर्व ओझा-गुनियों की तीन पीढ़ियों का दस्तावेज़ी इतिहास है——’तन्द्रालोक का प्रहरी’। यह अनुवाद प्रवहमान और ओड़िया का स्वाद अक्षुण्ण रखते हुए भी हिन्दी की मूल कृति का सा आनन्द देता है।SKU: VPG9326350259