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Before You Start Up: How to Prepare to Make Your Startup Dream a Reality
One of the most mind-blowing motivational books at any point composed, Think and Grow Rich is likely the main monetary book you can at any point expect to peruse. Motivating ages of peruses since the time it was first distributed in 1937, Think and Grow Rich Hill’s greatest hit has been utilized by a huge number of business pioneers all over the planet to make a substantial arrangement for progress that, when followed, never comes up short. In any case, it will be erroneous to restrict the book to be just about accomplishing monetary wealth. a persuasive self-awareness and self-improvement guide, its center strength lies in the way that it elucidates upon material abundance as well as that at its core, it is a composition on assisting people with prevailing in all professions and to do or be nearly anything they need in this world. Think and Grow Rich has been recorded in John C. Maxwell a Lifetime Must Read Books List and furthermore positioned as the 6th soft cover business book a long time after it was first distributed by Business Week Magazine Best-Seller List
SKU: PRK0467298 -
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Bharat Mein Mahabharat
भारत में महाभारत –
महाभारत विश्व का ऐसा अद्वितीय महाकाव्य है जिसकी महाप्राणता ने असंख्य रचनाओं को जन्म दिया है।
रचना की कालजयिता सिर्फ़ ख़ुद जीवित रहने में नहीं, उन रचना-पीढ़ियों को जन्म देने में है, जो अगले तमाम युग, भूगोलों और जीवनों में सर्जना नये उत्प्रेरण से अनेकानेक कालजयी कृतियों को रचती है। महाभारत में ऐसी उदारता, ऐसा लचीलापन और ऐसी निस्संगता है जो अपने अनुकूल ही नहीं, अपने विरुद्ध, रचना-संसारों को भी अर्थवान बना देती है। व्यास न तो रूढ़ि के पोषक हैं न उसके वाहक; उनके भीतर मानवता के प्रति ऐसी अपार राग-धारा तथा पारदर्शी दृष्टि और सृजन कौशल है, जो हर युग में मानवता विरोधी आवाज़, दुष्कृतियों और विलोमों से टक्कर लेने का पुरुषार्थ रखती और देती है। महाभारत के प्रवक्ता उग्रश्रवा का यह कहना सही है कि यहाँ वह सब है जो स्वर और व्यंजन के बीच निहित वाङ्मय में हो सकता है—इतनी विपुल ज्ञानराशि, भावराशि और विचार राशि को कौन ग्रहण करना न चाहेगा? पिछले पाँच हज़ार वर्षों से नागर और लोक में वह प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष और रिसकर आयी विविध अर्थवत्ता और प्राण-चेतना से साहित्य और कलाओं को अनुप्राणित करता रहा है।
महाभारत से गृहीत और प्रेरित रचनाओं का एक विशाल सागर है जो उसके नित नये अर्थ खोलता है। वैसे भी, कौन सौभाग्यशाली देश नहीं चाहेगा—ऐसी अक्षय-रसा ‘कामधेनु’ को दुहना, उससे पोषण पाना और जीवन के गहन अर्थों में अपने समय, सोच और व्यंजना में उतरना और उतरते चले जाना….।
महाभारत को कुछ लोग धर्म ग्रन्थ कहते हैं, पर उसके लिए धर्म का अर्थ ‘मानवता’ है। भला बताइए संसार में ऐसा कौन-सा धर्म ग्रन्थ है जो अपने ख़िलाफ़ एक भी आवाज़ सुन पाता है? ऐसी गुस्ताख़ी करने वाले कितने लोग सूली पर चढ़ाये गये, उन्हें ज़हर पिलाया गया और क़त्ल किया गया? पर हमारे पास क्या ऐसा एक भी उदाहरण है कि महाभारत के विरुद्ध रचने, कहने और बरतने के लिए किसी को दण्डित किया गया? फिर यह धर्म ग्रन्थ कैसे हुआ? यह काव्य तो स्वयं अपने भीतर विरोधों, विसंगतियों, विद्रूपताओं का ऐसा संसार रचता है कि आप उससे ज़्यादा क्या रचेंगे? एक महाप्राण रचना ऐसी ही होती है जहाँ प्रेम और वीभत्स एक साथ रह सकते हैं और हर एक को अपनी पात्रता और कामना के अनुरूप वह मिलता है जिससे वह अपने समय का सत्य अन्वेषित कर सके। संस्कृति ऐसे ही अनन्त स्रावों और टकरावों का नाम है, यह हमें महाभारत ने ही बताया है कि संस्कृति क्या होती है और कैसे रची जाती है?
प्रतिष्ठित लेखक-मनीषी प्रभाकर श्रोत्रिय ने वर्षों की दूभर साधना से भारत में, और आसपास की दुनिया में, संस्कृत से लगाकर सभी भारतीय भाषाओं में महाभारत की वस्तु, सोच, प्रेरणा; यानि स्रोत से रची मुख्य रचनाओं पर इस ग्रन्थ में एक सृजनात्मक ऊर्जा से पकी भाषा में विचार-विवेचन किया है, यह जानते हुए भी कि महाभारत की ‘दुनिया’ जो हज़ारों बाँहों में भी न समेटी जा सकी वह दो बाँहों में कैसे समेटी जायेगी?…..
भारतीय ज्ञानपीठ अपने गौरवग्रन्थों की परम्परा में पाठकों को यह ग्रन्थ अर्पित करते हुए प्रसन्नता का अनुभव करता है।SKU: VPG9326352529 -
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Manonayan
मनोनयन –
संसद के उच्च सदन राज्यसभा के संगठन में मनोनीत सदस्यों की संविधान द्वारा व्यवस्था किया जाना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके माध्यम से जहाँ साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में श्रेष्ठता प्राप्त लोगों के अनुभव से राज्यसभा को गरिमा प्राप्त हुई है, वहीं संसदीय प्रक्रिया के अन्तर्गत वाद-विवाद एवं विचार-विमर्श का स्तर ऊँचा हुआ है।
चूँकि इन सदस्यों के मनोनयन का आधार उनकी विशेष प्रतिभा, योग्यता और अपने विषय के औचित्य का होना रहा है इसलिए संसदीय प्रक्रिया में उनकी भागीदारी दलगत राजनीति से परे रही है। कहा जा सकता है कि संसद में उत्कृष्टता और दूरदर्शिता की यह अनोखी व्यवस्था है।
राज्यसभा के प्रथम नामित सदस्य डॉ. ज़ाकिर हुसैन से लेकर वर्तमान के सभी नामित सदस्यों ने अपने-अपने क्षेत्र की विशेषज्ञता के कारण देश की समसामयिक समस्याओं और आवश्यकताओं की ओर संसद का समय-समय पर ध्यान आकृष्ट किया है।
प्रस्तुत पुस्तक की लेखिका का इस विषय को अधिक पुष्ट और विश्लेषित करके पाठकों, चिन्तकों और शोधार्थियों को उसे उपलब्ध कराये जाने का अच्छा प्रयास है।SKU: VPG9326350921 -
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यदुवंश प्राचीन से अर्वाचीन (Yaduvansh Prachin Se Arvachin )
प्रस्तुत पुस्तक ‘यदुवंश: प्राचीन से अर्वाचीन’ प्राचीन एवं आधुनिक साक्ष्य स्रोतों पर आधारित इनकी एक मौलिक कृति है। आपका मानना है कि कृषि प्रधान भारत देश में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के इतिहास को यदुवंश की बहुतायत संख्या, इनके परम्परागत उद्यम एवं विभिन्न राजवंशों के उद्भव, विकास एवं क्षरण के परिप्रेक्ष्य में यदुवंश की भूमिका को अनदेखा करके पूर्ण नहीं माना जा सकता। प्राचीन साम्राज्य जिनमें गोधन, गजघन, वाजिधन जो समृद्धि के मानक थे, उनमें पशुपालकों एवं वन संरक्षकों के योगदान को भला कौन नकार सकता है। यदुवंशी गौ सेवा एवं कृषि संबंधी कार्य ही नहीं करते अपितु ये अर्थव्यवस्था, राज-काज के विस्तार में योद्धा की भूमिका में अग्रणी रहे हैं। यदुवंश के आदि श्रोत श्रीकृष्ण के समय से ही ये परम्परा विद्यमान रही है। इस पुस्तक में उन्हीं मौलिक मूल्यों पर प्रकाश डाला गया है, जो कई विमाओं के रहस्योद्घाटन करेंगे ऐसा आपका दृढ विश्वास है।
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