Selected Work
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Kai Samayon Mein
कई समयों में –
‘कई समयों में’ कुँवर नारायण के लेखन से ली गयी कविताओं तथा अन्य लेखन का एक संचयन है। इसमें यह कोशिश है कि उनके साहित्य का, उनके विचारों, सरोकारों और भाषा का भरसक प्रतिनिधित्व हो सके। यह संचयन केवल एक संकलन मात्र नहीं — हमारे समय के एक अत्यन्त प्रतिभाशाली साहित्यकार से निकट परिचय का माध्यम है, जो पाठक को उनके लेखन के एक ज़्यादा बड़े संसार की ओर आकृष्ट करेगा। कुँवर नारायण के लेखन पर मिली-जुली भाषायी संस्कृति का असर है, जिसमें अवधी, खड़ी बोली, संस्कृत और उर्दू के गहरे संस्कार मिलते हैं। कुँवर नारायण स्वभाव से अन्तर्मुखी हैं, किन्तु घनिष्ठ होने पर सहज हो जाते हैं। उनके समग्र लेखन में मैं तुम-और-वे के समन्वय के साथ-साथ, निराशाओं के बावजूद, जीवनशक्ति में एक अदम्य विश्वास बना रहता है। कुँवर नारायण ‘आधुनिकता’ के अर्थ को केवल तात्कालिक या समकालीन में सीमित नहीं करते — उसे एक बृहत्तर समय-बोध में रखकर विस्तृत करते हैं। मिथक और इतिहास को जब भी वे अपने लेखन में लाते हैं, उन्हें आज की समस्याओं और मानसिकताओं से जोड़ते हैं। विभिन्नताएँ उन्हें विचलित नहीं करतीं। वे उनकी रचनाशीलता का सहज स्रोत हैं। बौद्धिकता, कवित्व, भावनाएँ, तर्क सब को वे मनुष्य की विभिन्न स्वाभाविक क्षमताओं के रूप में स्वीकार करते हैं। इस संचयन में हमें कई प्रकार के लेखन की एक आत्मीय झलक मिलती है और हम एक विश्वस्तरीय कवि के विरल व्यक्तित्व से परिचित हो पाते हैं।SKU: VPG8126330836 -
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Mohan Rakesh Sanchayan
मोहन राकेश संचयन –
मोहन राकेश नयी कहानी के दौर के प्रतिष्ठित कथाकार, उपन्यासकार, चिन्तक और नाटककार हैं। राकेश की उस पूरे दौर के विचार और संवेदना परिदृश्य के निर्माण में अहम भूमिका थी। राकेश बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, ध्वनि नाटक, बीज नाटक और रंगमंच—इन सभी क्षेत्रों में मोहन राकेश का नाम सर्वोपरि है। कहानीकार, नाटककार और उपन्यासकार—तीनों रूपों में वे सृजन के नये प्रस्थान निर्मित करते हैं।
इस संचयन में हमने मोहन राकेश के दो उपन्यासों ‘अँधेरे बन्द कमरे’ और ‘न आने वाला कल’ का संक्षिप्त पाठ प्रस्तुत किया है। ‘अँधेरे बन्द कमरे’ हिन्दी के उन गिने-चुने उपन्यासों में है जो नागर जीवन की त्रासदियों को प्रस्तुत करता है। ‘न आने वाला कल’ तेज़ी से बदलते आधुनिक जीवन तथा व्यक्ति और उनकी प्रतिक्रियाओं पर बहुत प्रसिद्ध उपन्यास है। राकेश ने भले ही कई कालजयी कहानियों तथा उपन्यासों का सृजन किया हो, लेकिन वे मूलतः एक नाटककार ही थे। ‘आषाढ़ का एक दिन’ उनका सर्वाधिक चर्चित नाटक रहा है। इस संचयन में इसे अविकल रूप से शामिल किया जा रहा है। साथ ही साथ ‘अण्डे के छिलके’ तथा अन्य कतिपय एकांकियों को भी इस संचयन में स्थान दिया गया है।
हमने कोशिश की है कि तब के दौर में राकेश ने यत्र-तत्र जो विचार प्रकट किये, यहाँ उनकी भी शमूलियत हो। इस क्रम में हमने राकेश के ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण कुछ निबन्धों का भी संचयन किया है। इस संचयन की एक उपलब्धि के तौर पर मोहन राकेश की डायरी के कुछ पन्नों को लिया जा सकता है। आशा है हिन्दी साहित्य और मोहन राकेश के पाठक इन रचनाओं के चयन को पसन्द करेंगे।— रवीन्द्र कालियाSKU: VPG8126340750 -
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Nagarjuna Sanchayan
नागार्जुन संचयन –
नागार्जुन मैथिल-भाषी हिन्दी कवि हैं। मैथिली के भी बड़े कवि हैं। साहित्य अकादेमी सम्मान उन्हें मैथिल-कवि के रूप में मिला है। वे संस्कृत पाली के विद्वान हैं। कुछ दिनों तक बौद्ध रह चुके हैं। उन्होंने संस्कृत में भी काव्य-रचना की है। बांग्ला में भी। यह जानकर कुछ लोगों को आश्चर्य होगा कि उन्होंने कुछ कविताएँ पंजाबी में भी की हैं। मैथिली में उनका कवि नाम यात्री है। राहुल सांकृत्यायन को छोड़ दें तो वे हिन्दी के सबसे बड़े यात्री या घुमक्कड़ कवि हैं। जीवन और यात्री जीवन की समस्त अनुभव सम्पदा उनकी कविता को मिली है। यह संचयिता उस सम्पदा का प्रमाण है।
नागार्जुन जनकवि हैं। वह प्रगतिशील कवि भी हैं। जनवादी कवि भी, नव जनवादी कवि भी और राष्ट्रीय कवि भी। वह किसी राजनीतिक दल की आलोचना कर सकते हैं और किसी की भी प्रशंसा। वह पार्टी कवि भी हो सकते हैं, पार्टीवादी नहीं। शुक्र है कि हमारे बीच एक ऐसा कवि है। नागार्जुन कवि रूप में किसी को बख्शने वाले कवि नहीं। नागार्जुन के पास वह ठेठ निगाह है जो ताड़ने में अचूक है कि कौन नस कैसे फड़क रही है। भाषा का सर्वाधिक सर्जनात्मक प्रयोग लोक-जीवन में होता है। महान कवि उससे सीखते हैं और रचना में उतारते हैं—प्रसंगानुसार उसका नियोजन करते हैं। नागार्जुन ऐसा ही करते हैं।
नागार्जुन की सौन्दर्य दृष्टि बहुत सूक्ष्म और बहुत व्यापक है। उनके काव्य में सारी सृष्टि का सौन्दर्य रस निचुड़ आया है। प्रकृति सौन्दर्य, मानव सौन्दर्य, एवं श्रम सौन्दर्य—सब उनके यहाँ भरपूर मिलेगा। जो सौन्दर्य का प्रेमी होगा वह कुरूपता से घृणा करेगा। नागार्जुन की घृणा ने प्रधानतः व्यंग्य का रूप लिया है। उनका व्यंग्य असंगति और विषमता बोध पर आधारित है। स्वातन्त्र्योत्तर भारत में स्वाधीनता आन्दोलन के सिद्धान्त मुखौटे बन गये हैं। नागार्जुन ने राजनीतिक-सामाजिक व्यंग्य की अपूर्व कविताएँ लिखी हैं। इनमें ‘आओ रानी हम ढोयेंगे पालकी’ सर्वाधिक प्रसिद्ध हुई है।SKU: VPG9326352581