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psychosocial factors
हमारे बुजुर्ग और उनकी जीने की राहें (Hamare Bujurg Aur Unki Jeene Ki Rahein)
0 out of 5(0)भारत में बुजुर्ग मां-बाप की सेवा संतान का नैतिक कर्तव्य था। संतानें अपना फर्ज समझकर उनकी सेवा निःस्वार्थ करती थीं। यह पुस्तक बुजुगों की दिनोंदिन हो रही दशा और बेबसी को क्या करती है। इस पुस्तक के आठ अध्यायों में बुजुर्गों की समस्याओं का वर्णन करते हुए बताया गया है। कि उनकी जीने की राहें कौन-सी हैं। प्रथम अध्याय में एक बुजुर्ग के दर्द भरे दास्तान का विश्लेषण है, जिसमें एक असहाय बुजुर्ग को अपने बेटा चाटयों से निवेदन करते दिखाया गया है। द्वितीय अध्याय में माँ बाप सं औलाद के रिश्ते का युग-युगांतर बताया गया है। तृतीय अध्याय बुजुर्ग सास-ससुर के साथ बहुओं के दुर्व्यवहार एवं प्रताड़ना से संबंधित है। चतुर्थ अध्याय में उन कारणों का वर्णन है जिनके चलते आज की युवा पीढ़ी के साथ दुव्यवहार और उपेक्षा कर रही है। पंचम अध्याय में बुजुर्गों की अति को दर्शाते हुए बताया कि दारा अभिशाप नहीं जीवन की तैयारी है। बुजुर्गों को तंदुरुस्त और स्वस्थ रहने के विभिन्न उपायों का वर्णन किया गया है। षष्ठम अध्याय में भारतीय अर्थव्यवस्था में बुजुगों के महत्त्व, सप्तम अध्याय में सरकार द्वारा बुजुगों की सुरक्षा और कल्याण के लिए किए गए प्रयास तथा अष्ठम अध्याय में बताया गया है कि बचारे बुजुर्ग अपना सारा जीवन और जीवन की कमाई अपने बच्चों पर लुटाने के बाद कैस खाली हाथ और बेबस होकर वृद्धाश्रम जाने कार हो जाते हैं।
र्म एवं बुजुगों को एक केंद्र में रखती थी। परिवार में बुजुगों की सेवा की मान्यता धर्म के रूप में थी जिसके तहत संतानें अपना फर्ज समझकर बुजुगाँ की सेवा निःस्वार्थ करती थीं।
अपने देश में आज हालात यह हो गई है कि बहुसंख्यक बुजुर्ग अपने बच्चों द्वारा या तो सताए जाते हैं या घर से निकाल दिए जाते हैं या उन्हें त्याग दिया जाता है। कुछ समय पहले यह संख्या पाँच में एक थी। बूढ़ों को सताए जाने के मामलों में बीमारी-हारी के अलावा जमीन-जायदाद प्रमुख मुद्दा होती है। आमतौर से अदालतें बुजुगों के पक्ष में फैसला देती हैं और बच्चे दौडत भी होते हैं। इसके बावजूद दिनोंदिन उनकी मुसीबतें बढ़ती ही जाती हैं।
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