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General Book, Uncategorized
Gandhi Mere Bheetar
गाँधी मेरे भीतर –
महात्मा गाँधी के जीवन और विचारों पर हज़ारों पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं, फिर भी हर साल कुछ न कुछ नयी पुस्तकें आ ही जाती हैं। क्या महात्मा का व्यक्तित्व इतना गूढ़ और रहस्यमय था कि उसे समझना अभी तक बाकी है? या, उसमें कुछ ऐसे शाश्वत सत्य हैं, जिन पर नये-नये संदर्भों में विचार करना ज़रूरी हो जाता है? महात्मा को समझने का सही तरीका क्या है? भक्ति भाव से उस सबका जाप, जो वे कह या कर गए हैं? या, उसका तटस्थ आलोचनात्मक मूल्यांकन? या, उससे भी आगे, अपने जीवन में उसका परीक्षण कर उसी आधार पर निष्कर्ष निकालना जैसे कोई वैज्ञानिक प्रयोगशाला में प्रयोग और परीक्षण के द्वारा निष्कर्षों तक पहुँचता है? यह भूलना नहीं चाहिए कि महात्मा ने अपनी जीवन कथा को ‘सत्य के प्रयोग’ बताया है।
हिन्दी के विशिष्ट पत्रकार राजकिशोर शुरू में गांधी जी से अप्रभावित रहे। बल्कि वे अकसर गांधी की आलोचना भी करते थे। लेकिन अयोध्या विवाद और दलित राजनीति के उभार के दिनों में राजकिशोर गांधी की ओर बड़ी तेजी से आकर्षित हुए। महात्मा के साथ उनका यह द्वन्द्वात्मक रिश्ता अभी भी बना हुआ है। इस रिश्ते की गहन छानबीन का ही रचनात्मक नतीजा है गांधी पर लिखे गए लेखों का यह संग्रह, जो गांधी विचार की प्रासंगिकता का नये-नये संदर्भों में एक सतत मूल्यांकन है। इन लेखों से गांधी को समझने की एक नयी दृष्टि मिलती है। साथ ही, हमारे समय के द्वन्द्वों के भीतर पैठने की एक नयी चाहत और सहस भी।SKU: VPG9350002186 -
History & Politics, Research
History of the Mahatma Gandhi Individual Satyagraha Movement (1940-1941)
History & Politics, ResearchHistory of the Mahatma Gandhi Individual Satyagraha Movement (1940-1941)
The Indian Nation Movement is a brilliant of the Modern Indian History. Mahatma Gandhi originated his ever first Indian Mission with Champaran Satyagraha in Trihut Division of Bihar which inspired across the national movement and Bihar became a Gandhi province.
The Indian Nation Movement is a brilliant chapter of the Modern Indian History. Mahatma Gandhi originated his ever first Indian Mission with Champaran Satyagraha in Tirhut Division of Bihar which inspired across the national movement and Bihar became a Gandhi-province. For the emancipation of motherland from the British yoke the leaders and other national workers of Tirhut Division played a highly significant and remarkable role in the successive phases of our freedom struggle. This little book is mainly concentrated on the graceful and dignified role as the Satyagrahi of the national leaders and workers of Champaran, Saran, Darbhanga and Muzaffarpur in the historic Individual Satyagraha Movement of 1940- 1941 which was the third great campaign launched upon by Gandhiji for ridding the country of foreign domination. Really the role of Satyagrahis of Tirhut was the most interesting and inspiring conducted with utmost discipline and dignity under the sole and supreme direction of Mahatma Gandhi which contributed in preparing the background of the Quit India Movement. The glorious role of Satyagrahis has been highlighted here as a tribute to our freedom fighters on the auspicious occasion of the Platinum Jubliee Celebration of the last fight for Indian independence.
SKU: JPPAT97988 -
Research (शोध)
Mahatma Gandhi Ka Samajik Avm Arthik Darshan ( महात्मा गांधी के सामाजिक एवं आर्थिक दर्शन )
Research (शोध)Mahatma Gandhi Ka Samajik Avm Arthik Darshan ( महात्मा गांधी के सामाजिक एवं आर्थिक दर्शन )
भारत की आजादी के पाँच दशक से अधिक गुजर गए । इस बीच हमारी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए दस पंचवर्षीय योजनाएँ भी बीत गई है । 21वीं सदी की दहलीज पर खड़ा भारत आधुनिकीकरण एवं वैश्वीकरण के तीव्र दौर से गुजर रहा है। गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, बीमारी, दहेजप्रथा, जनसंख्या वृद्धि, पर्यावरण हास जैसी समस्याओं आक्रान्त हमारा प्यार- न्याय भारत देश बापू के रामराज्य के सपनों को साकार करने में विफल रहा है।
गाँधी का जीवन-दर्शन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुआयामी एवं व्यापक है। उनका उद्देश्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता दिलाना ही नहीं था, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, विषमता को मिटाकर सांस्कृतिक विकास भी करना था।
प्रस्तुत पुस्तक में वर्तमान परिवर्तित भारतीय परिवेश एवं संदर्भ में गाँधीजी के जीवन-दर्शन, सामाजिक, आर्थिक दर्शन को समझने, भारतीय ढाँचे में ढालने, राष्ट्रीय साँचे में संवारने की आवश्यकता के चतुर्दिक गुम्फित है । इस पुस्तक में संकल्पनात्मक पृष्ठभूमि, अध्ययन का महत्व, उद्देश्य, समस्या कथन, विषय वस्तु का चयन, पूर्व साहित्य का अनुशीलन, गाँधीजी के जीवन-दर्शन तथा वर्तमान संदर्भ में उसको प्रासंगिकता की चर्चा की गई है। गाँधी के समाज दर्शन आर्थिक दर्शन का वर्णन किया गया है।
SKU: JPPAT98049 -
Research (शोध)
Mahatma Gandhi Ke Arthik Chintan Ke Paripreksh Mein Shiksha ( महात्मा गांधी के आर्थिक चिंतन के परिप्रेक्ष में शिक्षा )
Research (शोध)Mahatma Gandhi Ke Arthik Chintan Ke Paripreksh Mein Shiksha ( महात्मा गांधी के आर्थिक चिंतन के परिप्रेक्ष में शिक्षा )
महात्मा गाँधी के आर्थिक चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा में यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है कि गाँधीजी वस्तुतः एक सुयोग्य अर्थशास्त्री और व्यवहारिक शिक्षाशास्त्री थे जिन्होंने देश की मिट्टी में कौन सी अर्थव्यवस्था पनप सकती है तथा नव अंकुरित मानव शिशु किस शैक्षणिक पर्यावरण में अस्फुटित, पल्लवित, पुष्पित और प्रतिफलित हो सकती है, इस तथ्य को भलीभांति जानते थे ।
इस पुस्तक में क्रमश: महात्मा गाँधी : व्यक्तित्व निर्माण, पर्यावरण एवं परिस्थितियाँ, महात्मा गाँधी: जीवन-दर्शन और उनका आर्थिक चिन्तन, महात्मा गाँधी के आर्थिक चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा और उसके विभिन्न आयाम पर प्रकाश डाला गया है।
विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक महात्मा गाँधी के शिक्षा के आर्थिक चिन्तन के संबंध में रूची लेने वाले सुधी पाठकों एवं समाज के सभी वर्गों के पाठकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा ।
अर्थशास्त्र एवं शिक्षाशास्त्र की समान रुचि की छात्रा होने के नाते वर्षों से मेरे मन में जिज्ञासा बनी हुई थी कि मैं भारत के ही नहीं, विश्व के महान् व्यक्ति महात्मा गाँधी के आर्थिक एवं शैक्षणिक चिन्तन के विभिन्न आयामों और भारतीय परिप्रेक्ष्य में इसके आपसी सम्बन्धों तथा इसकी आधुनिक उपयोगिताओं एवं महत्वों की वैज्ञानिक विवेचना करूँ, परन्तु समयाभाव और पारिवारिक उलझणों के कारण इसे कार्य रूप देने में थोड़ी कठिनाइयाँ सामने आयीं, परन्तु मैंने हिम्मत न हारी और इस प्रकार के विशाल और गहन विषय पर शोध कार्य पूरा कर लिया। आधुनिक अर्थशास्त्र हमारी वर्तमान सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न तत्वों को बहुत गहराई से प्रभावित कर रहा है। वर्तमान समय में शिक्षा और अर्थ का संबंध भी गहराता जा रहा है। पाश्चात्य पूँजीवादी व्यवस्था में अर्थोपार्जन के जो तरीके हैं, ये भारतीय परिवेश के लिए अपने मूल स्वरूप में सर्वग्राह्य नहीं हैं। गाँधीजी ऐसी परिस्थितियों से वाकिफ थे, अतः उन्होंने अपने आर्थिक चिन्तन के आधार को व्यावहारिक बनाया और एक ऐसी शिक्षा, विशेषकर बुनियादी शिक्षा योजना की नीति तैयार की जिससे शिक्षार्थी ज्ञानार्जन के साथ-साथ अर्थोपार्जन भी कर सकें और साथ ही आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी बनकर राष्ट्र की रीढ़ को मजबूत भी कर सकें।
SKU: JPPAT98047 -
Research (शोध)
गांधी दर्शन और भारतीय समाज (Gandhi Darshan Aur Bhartiya Samaj)
सामाजिक संरचनात्मक विषयों पर गांधीजी ने प्राचीन भारतीय वर्ण व्यवस्था एवं आश्रम व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए आधुनिक भारत में भी उसके प्रयोग पर बल दिया तथा उन्होंने अपने जीवन में उतारने का अथक प्रयास किया। मध्यकाल में वर्ण व्यवस्था कर्म एवं गुण पर आधारित रहकर विकृत हो गयी और जातिवाद के रूप में विकसित हो गई। गाँधीजी ने इस जातिवाद का घोर विरोध करते हुए गुण एवं कर्म के आधार पर ही वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया है, क्योंकि गुण, कर्म एवं स्वभाव के आधार पर हो स्वस्थ समाज की स्थापना हो सकती है। आशा है यह पुस्तक जिज्ञासु पाठक एवं शोध छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
भारत के जिन महापुरुषों ने संसार में देश का सिर ऊँचा किया, गांधी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य है। न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक, धार्मिक और नैतिक दृष्टि से भी गाँधीजी को संसार को देन है। उनका व्यक्तित्व अप्रतिम है। सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर अत्यंत दृढ़ता ईमानदारी से चलते हुए उन्होंने अपने जीवन को इतना ऊपर उठाया कि उनकी तुलना महात्मा बुद्ध और महात्मा ईसा से की जा सकती है। उनकी मृत्यु पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए विश्व विख्यात विज्ञानवेत्ता अलबर्ट आईस्टीन ने कहा था- “कुछ समय बाद लोगों के लिए यह विश्वास करना भी कठिन हो जायेगा कि किसी समय सचमुच कोई महान व्यक्ति पृथ्वी पर जीवित भी था।”
गांधीजी पर अनेक विद्वानों ने काफी संख्या में पुस्तकें लिखी हैं। संसार में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिन पर इतनी सारी पुस्तकें लिखी गयी हो। मेरी ‘गाँधी दर्शन और भारतीय समाज’ पुस्तक एक अकिंचन प्रयास है-जैसे सूर्य को दोया दिखाया जायें। मैं दर्शन का विद्वान् नहीं, बल्कि चिर जिज्ञासु विद्यार्थी है। एक दिन अचानक गाँधीजी पर एक लेख पढ़ते हुए उनके अनूठे चरित्र और व्यक्तित्व परी मुग्ध हो उठा जिसका परिणाम है उक्त पुस्तक की रचना ।
गाँधीजी को पढ़कर और समझकर ऐसा लगता है कि इंसान महान् नहीं होता, महान् होती है उसकी चुनौतियाँ। गाँधीजी एक मामूली हाड़-मांस के आदमी थे लेकिन उनके सामने एक पर एक ऐसी चुनौतियाँ आती गर्यो और उन्होंने पूरी मुस्तैदी और सक्रियता से अगि रहकर मुकाबला किया। इस तरह से कदम-दर-कदम महानता के सोपान चढ़ते चले गये ।
दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी जिस मुकदमे के सिलसिले में गये थे, उसे उन्होंने समझौते द्वारा निपल दिया। किन्तु वहाँ जाकर उनके जीवन की दिशा ही मुड़ गयी। दक्षिण अफ्रीका में बहुत बड़ी संख्या में भारतीय रहते थे। गोरे लोग भारतीयों के साथ पशुओं से भी बुरा बर्ताव करते थे और वे सारे अपमान और लांछन सिर झुकाकर सह लेते थे । गाँधीजी ने ऐसे दुर्व्यवहार के सामने सिर झुकाना स्वीकार न किया और डटकर गोरों के अन्याय का विरोध किया। इसके लिए उन्होंने 1883 में ‘नेटाल इंडियन कॉंग्रेस’ की स्थापना की ।
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