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Emoke Ek Gatha
एमेके : एक गाथा –
एमेके : एक गाथा चेकोस्लोवाकिया के सर्वाधिक विवादास्पद लेखक जोसेफ़ श्कवोरस्की का विश्व-विख्यात उपन्यास है, जिस पर 1998 में एक टेलिविजन फ़िल्म भी बन चुकी है।
उपन्यास के केन्द्र में छुट्टी मनाने गये कुछ पर्यटकों की दास्तान है। एमेके एक आकर्षक जिप्सी युवती, जिसका ध्यान सब अपनी ओर खींचना चाहते हैं, लेकिन वह दूसरी दुनिया की, अध्यात्म की बातें करती रहती है। धीरे-धीरे एक मीठा-सा त्रिकोण बनना शुरू होता है कि तभी एक व्यक्ति की शत्रुता से सब तहस-नहस हो जाता है। कहानी मीठे त्रिकोण से मीठे प्रतिशोध का फ़ासला बड़ी सुन्दरता से तय करती है। आश्चर्य नहीं कि इस उपन्यास के विश्व की बीस से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। हिन्दी में इसका निर्मल वर्मा द्वारा अनुवाद पहली बार सन् 1973 में प्रकाशित हुआ था।SKU: VPG9350001561 -
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Gatha Rambhateri
‘गाथा रामभतेरी’ कुसुम खेमानी का तीसरा उपन्यास है। इसके पहले ‘लावण्यदेवी’ और ‘जड़ियाबाई’-दोनों उपन्यास हिन्दी में पर्याप्त चर्चित हो चुके हैं। इन दोनों उपन्यासों में बंगाली और मारवाड़ी समाज की स्त्रियों का जीवन-संघर्ष उभरकर सामने आया है, किन्तु कथा-वस्तु की दृष्टि से ‘गाथा रामभतेरी’ सर्वथा भिन्न लोक में विचरण करती है। इसमें राजस्थान की घुमन्तू-फिरन्तू जनजाति बनजारों की गाथा है और केन्द्रीय स्त्री-चरित्र है-बनजारन रामभतेरी। इस उपन्यास के बहाने कुसुम खेमानी ने हिन्दी के कथा-जगत को अनेक अनोखे चरित्र प्रदान किये हैं और उनमें सबसे अजूबा है-रामभतेरी। रामभतेरी अपनी अदम्य संघर्ष-क्षमता और जीवटता से बनजारों के जन-जीवन को सँवारने का प्रयत्न करने वाली शख्सियत में बदल जाती है। जिनका कभी कोई घर नहीं था उन्हें एक स्थायी घर और स्थायी जीवन देने का स्वप्न इस उपन्यास का केन्द्रीय स्वप्न है और यह स्वप्न ही उपन्यास को लक्ष्य की दृष्टि से उच्चतम धरातल पर प्रतिष्ठित करता है। भाषा में लेखिका की पकड़ देखते ही बनती है। लोक-जीवन, बोलचाल और बेशक अनेक मीठी गालियों से अलंकृत यह भाषा अपने प्रवाह में पाठक को बहा ले जाती है। पहले दोनों उपन्यासों की तरह यहाँ भी डॉ. खेमानी की शैली बतरस शैली है जिसमें उन्हें पर्याप्त दक्षता हासिल है। प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखिका सिमोन द बुअवार ने लिखा है कि-‘मनुष्य कोई पत्थर या पौधा नहीं है, जो अपने होने भर से सन्तुष्ट हो जाये।’ कुसुम खेमानी के कथा-चरित्र भी अपने होने भर से सन्तुष्ट नहीं होते, बल्कि अपने जीवन और समाज का कायाकल्प कर जाते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि कुसुम खेमानी के इस नवीनतम उपन्यास का भी हिन्दी जगत में पर्याप्त स्वागत होगा। -एकान्त श्रीवास्तव
SKU: VPG9388434485 -
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Gatha Rambhateri
‘गाथा रामभतेरी’ कुसुम खेमानी का तीसरा उपन्यास है। इसके पहले ‘लावण्यदेवी’ और ‘जड़ियाबाई’-दोनों उपन्यास हिन्दी में पर्याप्त चर्चित हो चुके हैं। इन दोनों उपन्यासों में बंगाली और मारवाड़ी समाज की स्त्रियों का जीवन-संघर्ष उभरकर सामने आया है, किन्तु कथा-वस्तु की दृष्टि से ‘गाथा रामभतेरी’ सर्वथा भिन्न लोक में विचरण करती है। इसमें राजस्थान की घुमन्तू-फिरन्तू जनजाति बनजारों की गाथा है और केन्द्रीय स्त्री-चरित्र है-बनजारन रामभतेरी। इस उपन्यास के बहाने कुसुम खेमानी ने हिन्दी के कथा-जगत को अनेक अनोखे चरित्र प्रदान किये हैं और उनमें सबसे अजूबा है-रामभतेरी। रामभतेरी अपनी अदम्य संघर्ष-क्षमता और जीवटता से बनजारों के जन-जीवन को सँवारने का प्रयत्न करने वाली शख्सियत में बदल जाती है। जिनका कभी कोई घर नहीं था उन्हें एक स्थायी घर और स्थायी जीवन देने का स्वप्न इस उपन्यास का केन्द्रीय स्वप्न है और यह स्वप्न ही उपन्यास को लक्ष्य की दृष्टि से उच्चतम धरातल पर प्रतिष्ठित करता है। भाषा में लेखिका की पकड़ देखते ही बनती है। लोक-जीवन, बोलचाल और बेशक अनेक मीठी गालियों से अलंकृत यह भाषा अपने प्रवाह में पाठक को बहा ले जाती है। पहले दोनों उपन्यासों की तरह यहाँ भी डॉ. खेमानी की शैली बतरस शैली है जिसमें उन्हें पर्याप्त दक्षता हासिल है। प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखिका सिमोन द बुअवार ने लिखा है कि-‘मनुष्य कोई पत्थर या पौधा नहीं है, जो अपने होने भर से सन्तुष्ट हो जाये।’ कुसुम खेमानी के कथा-चरित्र भी अपने होने भर से सन्तुष्ट नहीं होते, बल्कि अपने जीवन और समाज का कायाकल्प कर जाते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि कुसुम खेमानी के इस नवीनतम उपन्यास का भी हिन्दी जगत में पर्याप्त स्वागत होगा। -एकान्त श्रीवास्तव
SKU: VPG9388434478 -
Research (शोध)
वीर लोरिक-चंदा लोक-गाथा (Veer loric Chanda Lok Gatha)
लोककाव्य वाचिक रूप में हजारों वर्षों से भारतीय जनजीवन को अनुप्राणित करता रहा है। बीसवीं सदी में लोककाव्य का मुद्रण होने लगा। अब तो लोककाव्य वाधिक से अधिक मुद्रित रूप में सबके समक्ष आ रहा है। इसकी महता स्पष्ट हो रही है। ‘लोरिकायन’ हिन्दी भाषी क्षेत्र का महत्वपूर्ण लोककाव्य रहा है। यह याचि रूप में प्राप्य ही नहीं, कण्ठस्वर में ही जीवित रहा है। इसने लोरिक ऐसे महाने जननायक को उसके शौर्य, शील तथा प्रेम के संगम पर अवस्थित किया है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘पुनर्नवा’ नामक ऐतिहासिक उपन्यास में सम्राट चन्द्रगुप्त के समय में लोरिक यानी आर्यक गोपाल के प्रेममय जीवन और चंदा के पुनर्विवाह की समस्या को जीवंत रूप में रखा है। परन्तु लोककाव्य- लोरिकायन में लोरिक का समय अति प्राचीन माना गया है। लोरिक एक विशिष्ट मल्लवीर और युद्धवीर के रूप में अलौकिक शक्तियो से परिपूर्ण चरित्र है। यह यदुवंश यादववंश का प्रतिष्ठित नायक है जिसके शौर्यपूर्ण चरित्र की प्रतिष्ठा स्वर्ग से पाताल तक रही है।
ऐसे महान चरित्र के लोककाव्य को गद्यशैली की बृहत् कथा को आइन रोचकता के साथ प्रस्तुत करना सारस्वत साधना का परिचायक है। ‘लोरिकायन के मर्मज्ञ तथा रसज्ञ डॉ० कुमार इन्द्रदेव ने इसे गद्यशैली में लिखकर जनसामान्य के लिए सुलभ कर दिया है। भारतीय इतिहास का प्रभावी तथा लोकप्रिय नायक लोरिक पौराणिक पात्र बनकर हम चमत्कृत कर रहा है। कुमार इन्द्रदेव ने विशाल लोककाव्य को गद्यकथा में प्रस्तुत कर हिन्दी साहित्य का उपकार किया है। हिन्दी कथा साहित्य इनकी इस सारस्वत साधना की विस्मृत नहीं कर सकता।
SKU: JPPAT98259