कृष्णा सोबती के उपन्यासों के प्रमुख नारी चरित्र Krishna Sobati Ke Upnyason Ke Pramukh Naari Charitra) BookHeBook Online Store
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कृष्णा सोबती के उपन्यासों के प्रमुख नारी चरित्र Krishna Sobati Ke Upnyason Ke Pramukh Naari Charitra)

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यह सब स्त्री के साथ हुआ तो अचानक नहीं हुआ और न शून्य में हुआ है। समाज

का पूरा ढाँचा बदला, धर्मों का प्रभाव, नैतिक मूल्यों का स्वरूप तथा विरासत या उत्तराधिकार के कायदे बदले और स्त्री-पुरुष के पारस्परिक संबंध में भी गुणात्मक फर्क आया । कृषि संस्कृति के आगे जब औद्योगिक विकास हुआ तो समाज की पूरी संरचना में पूचाल जैसी स्थिति पैदा हुई। शुरू में स्त्रियों को उस भूचाल से अलग रखने का प्रयत्न हुआ पर उन्हें अलग रखना सम्भव नहीं हुआ। परिणाम यह हुआ कि प्रजातंत्र में स्त्री को भी नागरिक का दर्जा मिला और पुरुष की बराबरी में मतदान का अधिकार प्राप्त हुआ। इन सबके कारण स्त्री समुदाय को शिक्षा प्राप्त करने की, सार्वजनिक जीवन में भाग लेने की, नौकरी और रोजगार करने की गुंजाइश हुई। धीरे-धीरे वह पुरुष से पूरी तरह अपनी समकक्षता का दावा करने में समर्थ हुई। इससे उसका निजी जीवन भी प्रभावित हुआ, समाज तो प्रभावित हुआ ही। कृष्णा सोबती न्यारी- उत्तर आधुनिकता के इस दौर में कई नये विमर्श प्रचलित हुए है। उनमें स्त्री- को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है। यह नहीं कि स्त्री को साहित्य में कोई नया प्रवेश मिल रहा हो; यह साहित्य में बहुत पहले से, शायद साहित्य की शुरुआत के समय से रही है। अब नया यह हुआ है कि स्त्री खूबसूरत गुड़िया जैसी चीज नहीं रह गयी है-साहित्य में कुछ-कुछ ऐसी ही उसकी स्थिति पहले थी। इससे अलग उसका व्यक्तित्व रूप कुटिलता को भूमिका में भी जब-तब दीखता रहा था। वह आकृष्ट करती थी, आह्लादित करती थी, पर वर्चस्व पुरुष का ही रहता था। उसके लिए बड़ी-बड़ी लड़ाईयाँ दी गयी और फिर भी उसकी अपनी अस्मिता के मानवीय पक्ष की प्रायः अनदेखी होती रही। अब उसकी अस्मिता को स्वाभाविक अभिव्यक्ति मिलने लगी है। वह है तो इसलिए नहीं कि उसका कोई पिता है, कोई पति है, और कोई पुत्र है। वह अपने तई है, और यदि नहीं है तो होना चाहती है। उसे किसी बैसाखी की जरूरत नहीं है। बड़ी बात यह है कि उसमें अन्य स्त्रियों के साथ अपनापे का संबंध भी मालूम पड़ने लगा है। इसलिए निजता के साथ-साथ सामुदायिकता को मिलाकर उसकी अस्मिता का निर्माण हुआ है।

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कृष्णा सोबती न्यारी- उत्तर आधुनिकता के इस दौर में कई नये विमर्श प्रचलित हुए है। उनमें स्त्री- को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है। यह नहीं कि स्त्री को साहित्य में कोई नया प्रवेश मिल रहा हो; यह साहित्य में बहुत पहले से, शायद साहित्य की शुरुआत के समय से रही है। अब नया यह हुआ है कि स्त्री खूबसूरत गुड़िया जैसी चीज नहीं रह गयी है-साहित्य में कुछ-कुछ ऐसी ही उसकी स्थिति पहले थी। इससे अलग उसका व्यक्तित्व रूप कुटिलता को भूमिका में भी जब-तब दीखता रहा था। वह आकृष्ट करती थी, आह्लादित करती थी, पर वर्चस्व पुरुष का ही रहता था। उसके लिए बड़ी-बड़ी लड़ाईयाँ दी गयी और फिर भी उसकी अपनी अस्मिता के मानवीय पक्ष की प्रायः अनदेखी होती रही। अब उसकी अस्मिता को स्वाभाविक अभिव्यक्ति मिलने लगी है। वह है तो इसलिए नहीं कि उसका कोई पिता है, कोई पति है, और कोई पुत्र है। वह अपने तई है, और यदि नहीं है तो होना चाहती है। उसे किसी बैसाखी की जरूरत नहीं है। बड़ी बात यह है कि उसमें अन्य स्त्रियों के साथ अपनापे का संबंध भी मालूम पड़ने लगा है। इसलिए निजता के साथ-साथ सामुदायिकता को मिलाकर उसकी अस्मिता का निर्माण हुआ है।

उत्तर आधुनिकता के इस दौर में स्त्री विमर्श की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है । स्वी खूबसूरत गुड़िया जैसी चीज नहीं रही है। उसकी अस्मिता को स्वाभाविक अभिव्यक्ति मिलने लगी है। इन दिनों साहित्य में स्त्री- दृष्टि से स्त्री-लेखन को समझने और परखने की जो प्रवृत्ति प्रचलित हो रही है उस पर ध्यान देते हुए कृष्णा सोबती के उपन्यासों की प्रमुख स्त्रियों का यह अध्ययन अत्यन्त सार्थक एवं महत्वपूर्ण है। कृष्णा सोबती के नारी चरित्र विचारों से नहीं, अनुभवों से संचालित होते हैं। ये नारी चरित्र विचारधाराओं से निर्मित दो बौद्धिक कगारों के बीच में बहते हुए संवेदनशील प्रवाह की तरह हैं। आज हिन्दी में नारी मुक्ति आन्दोलन से पहले जिन लेखिकाओं ने साहित्य के दायरे में नारी विमर्श की बुनियादी भूमिका बनायी उनमें कृष्णा सोबती का विशेष योगदान रहा है। कृष्णा सोबती की नारी विभिन्न वर्गों, समाजों, धर्मो क्षेत्रों एवं रिश्तों की है। इस प्रकार सोबती की नारियाँ भारतीय समाज की सारी विविधताओं के बहुरंगी प्रतिबिम्ब की प्रस्तुति में पर्याप्त प्रामाणिक हैं। कृष्णा सोबती अपने उपन्यासों में नारी के विभिन्न पहलुओं के साथ उनकी भावनाओं को अभिव्यक्त की है साथ ही खुलकर नारी मन को साहसपूर्ण ढंग से प्रस्तुत की है। उन्होंने नारी को गुड़िया या कठपुतली में न बदलकर उसको यथार्थ प्रस्तुति की है। इस प्रकार उनके उपन्यासों के नारी चरित्र का यह अध्ययन स्त्री की अस्मिता के बोध के विकास का है।

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ISBN

8189880233

Language

Hindi ( हिंदी )

Pages

129

Publisher

Janaki Prakashan ( जानकी प्रकाशन )

Binding

Hard Cover ( कठोर आवरण )

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