Ron Alsop, a veteran journalist, recounts many stories from well-known companies like Starbucks, McDonalds and Coca-Cola in this insightful study on the vital aspect of business: corporate reputation. This book explains how reputation can impact business performance and shows you how to manage it. Alsop offers 18 laws that are based on years of experience and cover every aspect of corporate image. He teaches you how to identify and control the most dangerous threats to your company, use the Internet to manage perceptions, and strike the best balance between gratuitous publicity, spreading good word, and allowing for free publicity. This book is ideal for business executives as well as anyone who wants to learn more about the companies they deal or the products they purchase.
18 Immutable Laws of Corporate Reputation
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Aaswad Ke Vividh Praroop
0 out of 5(0)आस्वाद के विविध प्रारूप –
कविता के आस्वाद के अपने अनुभवों को दर्ज करते हुए प्रभात त्रिपाठी ने आलोचना की एक नयी और आत्मीय भाषा विकसित की है। आलोच्य कृति के अन्तरंग के साथ आनुभविक सम्बन्ध रचते हुए उन्होंने कविता के मर्म को लिखने का जो नया मुहावरा खोजा है, उसमें खोजने की विकलता की अनुगूँज है। हम अनुभव करते हैं कि वह कुछ चालू अवधारणाओं और नुस्खों पर टिकी अधिकांश समीक्षा की तुलना में हमारे मन पर गहरा असर डालती है। वास्तव में उनकी समीक्षा कवियों के रचनाशील मन की अनेक परतों को उघारने में तथा रचना की जटिलता को बोधगम्य बनाने में मनोयोग से जुटी सृजनात्मकता का ही एक अन्य रूप है। उसे साम्प्रतिक आलोचना की तरह देखना और पढ़ना शायद नाकाफ़ी है।
प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने अज्ञेय, शमशेर, मुक्तिबोध, नेमिचन्द्र जैन और भवानीप्रसाद मिश्र की अनेक कविताओं की व्याख्या करते हुए उनके काव्य संसार की विशेषताओं को दर्ज भर नहीं किया है, बल्कि पूरे काव्यानुराग के साथ उनके अनुभव-संसार से अपने मन को जोड़ने की कोशिश की है। यही नहीं, अज्ञेय और शमशेर की कुछ विशिष्ट रचनाओं की सुविस्तृत व्याख्या करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि हर महत्त्वपूर्ण कविता अपनी नानार्थता के आलोक के साथ ही पाठक के मर्म तक पहुँचती है।
कविता में सक्रिय वैचारकिता की पहचान से दूर न रहते हुए भी उन्होंने यह कोशिश की है कि विचार को काव्य-विन्यास और कविता के शब्दों में ही कविता के विचार की तरह पढ़ने की एक सार्थक शुरुआत हो। हर कवि की रचना की व्याख्या के दौरान लेखक ने उसके रचनागत वैशिष्ट्य को इस तरह से रेखांकित किया है कि उन्हें महज किन्हीं सरलीकृत सामान्यीकरणों के आधार पर न पढ़ा जा सके। एक पाठक की तरह पाठ के अनुभवों को दर्ज करती यह पुस्तक सरलीकरणों एवं सामान्यीकरणों के विरुद्ध पाठक के हस्तक्षेप का एक विरल उदाहरण है।SKU: VPG9326351188₹127.00₹170.00 -
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Achchha To Tum Yahan Ho
0 out of 5(0)अच्छा तो तुम यहाँ हो –
राजेन्द्र क़रीने के कथाकार हैं। जन और जीवन से उन्हें गहरा लगाव है और वे कहानियों का ‘कंटेंट’ इर्द-गिर्द घट रही घटनाओं में तलाशते हैं। उनकी क़लम बदी की मुख़ालिफ़ और नेकी की हिमायती है। मानवीय रिश्तों और मनुष्यत्व की गरिमा में उनका गहरा यक़ीन है। लोक के वृत्त में रहते हुए चीज़ों का सन्धान करने की कला उनके पास है और उनका यह हुनर उनकी कहानियों में बख़ूबी झलकता है। चाहे ‘अच्छा तो तुम यहाँ हो’ के स्त्री-पुरुष हों या ‘जयहिन्द’ के कलेक्टर या कमांडर अथवा ‘पाइपर माउस’ का नायक चूहा, वे हमें बेहद अपने लगते हैं, हमारे अपने बीच के परिचित और जाने-पहचाने।
राजेन्द्र घटनाओं और संवादों की लटों से कहानी को बहुत जतन से गूँथते हैं। उनकी भाषा उनका साथ देती है। वे कहीं लड़खड़ाते नहीं और न ही हड़बड़ी में भागते दीखते हैं। सधी हुई चाल, न प्रकम्प, न उतावलापन। वे तनाव और लगाव दोनों को बहुत सलीके से व्यक्त करते हैं। वे अपनी ओर से नहीं बोलते, बल्कि वाक़ये और किरदार बोलते हैं। उनके पात्र पाठक को अपने साथ-साथ देर और दूर तलक ले चलने की क़ुव्वत रखते हैं। यही नहीं, इस यात्रा के बाद पाठक के लिए उन्हें भूल पाना मुमकिन नहीं हो पाता।
राजेन्द्र शब्दों को विचारों की मद्धिम आँच में पकाते हैं। वे रिश्तों की सान्द्रता को चीन्हते हैं और क़लम से रिश्तों की देह में धँसी किरचों को बीनते हैं। उनकी कथायात्रा हताशा, नैराश्य, अवसाद अथवा पलायन के साथ समाप्त नहीं होती, वह साहसपूर्वक आगे की यात्रा की भूमिका रचती है। राजेन्द्र यथार्थ से मुठभेड़ के साहसी और चेतस कथाकार हैं और समाज और व्यवस्था के खोट और खुरंट को उजागर करने से नहीं चूकते। वे चुहल भी करते हैं और तंज़ भी कसते हैं। इन लम्बी कहानियों में वे कहीं भी शिथिलता या स्फीति के शिकार नहीं होते। आज के समय की ये कहानियाँ समकालीन कथा जगत को समृद्ध करती हैं।——डॉ. सुधीर सक्सेनाSKU: VPG9326355698₹165.00₹220.00 -
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Ahiran
0 out of 5(0)अहिरन –
प्रतिष्ठित असमिया लेखिका डॉ. इन्दिरा गोस्वामी के लघु उपन्यास ‘अहिरन’ का हिन्दी अनुवाद है। छत्तीसगढ़ में बहनेवाली अहिरन नदी पर निर्माणाधीन बाँध से सम्बन्धित इस उपन्यास का कथानक जीवन और जगत के महत्त्वपूर्ण चित्रों में रोशनी भरता है। इस रोशनी में मज़दूरों और इंजीनियरों का मानवीय पक्ष भी चमक उठता है। बाँध के निर्माण कार्य में व्यस्त श्रमिकों की प्रकट दुनिया का एक वास्तविक ब्यौरा तो यह उपन्यास प्रस्तुत करता ही है, साथ ही इनके अदृश्य संसार के अलौकिक रसायनों को भी विश्लेषित करता है। व्यापक फलक को समेटे हुए इस उपन्यास की कथा-संवेदना स्त्री-पुरुष सम्बन्ध की कई गाँठों को वैचारिक उत्तेजना में खोलती है। मानवीय पक्षधरता इस उपन्यास का वास्तविक पाठ है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका का एक रोचक उपन्यास।SKU: VPG8126318810₹75.00₹100.00
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