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A Pilgrimage to Kailash
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Hindi Novels and Litrature
Dilli Mein Uninde
0 out of 5(0)इस पृथ्वी के एक जीव के नाते मेरे पास ठोस की जकड़ है और वायवीय की माया । नींद है और जाग है। सोये हुए लोग जागते हैं। जागते हुए लोग सोने जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं—जो न इधर हैं, न उधर । वे प्रायः नींद से बाहर और स्वप्न के भीतर होते हैं। उनींदे…मैंने स्वयं को अकसर यहीं पाया है… क्या यह मैं हूँ? कविताओं वाली मैं? मैं नहीं जानती। इतना जानती हूँ, जब कविता लिखती हूँ, गहरे जल में होती हैं और तैरना नहीं आता। किस हाल में कौन किनारे पहुँचूँगी-बचूँगी या नहीं-सब अस्पष्ट रहता है। किसी अदृश्य के हाथों में। लेकिन गद्य लिखते हुए मैंने स्वयं को किनारे पर खड़े हुए। पाया है। मैं जो बच गयी हूँ, जो जल से बाहर आ गयी हूँ… गगन गिल की ये गद्य रचनाएँ एक ठोस वस्तुजगत संसार को, अपने भीतर की छायाओं में पकड़ना है। यथार्थ की चेतना और स्मृति का संसार-इन दो पाटों के बीच बहती हुई अनुभव-धारा जो कुछ किनारे पर छोड़ जाती है, गगन गिल उसे बड़े जतन से समेट कर अपनी रचनाओं में लाती हैं-मोती, पत्थर, जलजीव-जो भी उनके हाथ का स्पर्श पाता है, जग उठता है। यह एक कवि का स्वप्निल गद्य न होकर गद्य के भीतर से उसकी काव्यात्मक सम्भावनाओं को उजागर करना है… कविता की आँच में तप कर गगन गिल की ये गद्य रचनाएँ एक अजीब तरह की ऊष्मा और ऐन्द्रिक स्वप्नमयता प्राप्त करती हैं।
SKU: VPG9387155886₹371.00₹495.00 -
Hindi Novels and Litrature
Hindi Vyakaran
0 out of 5(0)हिन्दी व्याकरण –
…व्याकरण की उपयोगिता और आवश्यकता इस पुस्तक में यथास्थान बतलायी गयी है, तथापि यहाँ इतना कहना उचित जान पड़ता है कि किसी भाषा के व्याकरण का निर्माण उसके साहित्य की पूर्ति का कारण होता है और उसकी प्रगति में सहायता देता है। भाषा की सत्ता स्वतन्त्र होने पर भी व्याकरण उसका सहायक अनुयायी बनकर उसे समय-समय और स्थान-स्थान पर जो आवश्यक सूचनाएँ देता है, उससे भाषा का लाभ होता है…
भाषा की चंचलता दूर करने और उसे व्यस्थित रूप में रखने के लिए व्याकरण ही प्रधान और सर्वोत्तम साधन है।… —कामताप्रसाद गुरुSKU: VPG9326351027₹210.00₹280.00 -
Hindi Novels and Litrature
Kanvaas Par Prem
0 out of 5(0)कैनवास पर प्रेम –
विमलेश त्रिपाठी ने कविता और कहानी के क्षेत्र में तो अपने रचनात्मक क़दम पहले से ही रख दिये थे और अन्य पुरस्कारों के साथ-साथ भारतीय ज्ञानपीठ का ‘नवलेखन पुरस्कार’ भी अपनी झोली में डाल लिया था। उनके कविता-संग्रह ‘हम बचे रहेंगे’, ‘एक देश और मरे हुए लोग’; कहानी-संग्रह ‘अधूरे अन्त की शुरुआत’ इस बात का सुबूत है कि विमलेश में साहित्यिक परिपक्वता कूट-कूट कर भरी है।
विमलेश एक मँजे हुए लेखक की तरह अपने समय को लिखता है। उसकी क़लम में समाज का दर्द है और वह परम्पराओं को तोड़ने का साहस भी रखता है। परम्पराओं को तोड़ने के लिए परम्पराओं का ज्ञान होना आवश्यक है। विमलेश के लेखन की यही विशेषता उसे अलग खड़ा करती है। उसके लेखन से स्पष्ट हो जाता है कि वह किसी आलोचक विशेष को प्रसन्न करने के लिए नहीं लिख रहा, बल्कि जो कुछ उसके दिल को छूता है, परेशान करता है उसी विषय पर उसकी क़लम चलती है।
हमें कॉलेज और विश्वविद्यालय में बार-बार सिखाया गया था कि लेखक को कहानी और पाठक के बीच में स्वयं नहीं आना चाहिए… मगर परम्पराएँ तो टूटने के लिए ही बनती हैं न।
विमलेश का ‘कैनवास पर प्रेम’ उपन्यास एक ऐसी कथा का वितान रचता है, जहाँ प्रेम और खो गये प्रेम के भीतर की एक विशेष मनःस्थिति निर्मित हुई है। अपने उत्कृष्ट कथा शिल्प के सहारे विमलेश ने धुन्ध में खो गये उसी प्रेम को कथा के नायक सत्यदेव की मार्फ़त रचा है। विमलेश के इस नये उपन्यास का हिन्दी जगत में खुल कर स्वागत होगा और यह हमें एक नयी दिशा में सोचने को मजबूर करेगा।-तेजेन्द्र शर्माSKU: VPG9326352772₹150.00₹200.00 -
Hindi Novels and Litrature
Pravasi Bharatiyon Mein Hindi Ki Kahani
0 out of 5(0)प्रवासी भारतीयों में हिंदी की कहानी –
यह पुस्तक शोध पर आधारित सोलह लेखों का संग्रह हैं। इसमें तेरह देशों की हिंदी की कहानी है। कहानी में हिंदी का ऐतिहासिक पक्ष भी है, शैक्षिक पक्ष भी है, और भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का पक्ष भी है। लेखकों ने अपनी-अपनी रुचि और प्रवीणता के अनुसार उन पक्षों पर प्रकाश डाला है। भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का विषय सब लेखकों ने अपने शोधपरक लेखों में सम्मिलित किया है। लेखकों के साथ विचार विमर्श, परिवर्तन और स्पीकरण की प्रक्रिया में बीते तीन वर्षों के परिश्रम का सुखद परिणाम यह पुस्तक है। यहाँ प्रस्तुत लेखों का अन्तिम रूप लेखकों से अनुमत है। प्रवासी भारत में हिंदी भाषा के विभिन्न पक्षों पर पिछले पैंतीस वर्षों से शोधपरक लेखन हो रहा है। तब से शोधकर्ता निरन्तर लिखते चले आ रहे हैं। यह कार्य शुरू हुआ गिरमिटिया देशों में भारत से गयी हिंदी की सहचरी भोजपुरी, अवधी आदि भाषाओं के साथ किसी ने उसके ऐतिहासिक पक्ष पर लिखा तो किसी ने सामाजिक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से उनके सामाजिक पक्ष पर अपने शोधपत्र प्रकाशित किये। सब लेखक संसार के विभिन्न देशों में बसे प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकार्य में लगे भाषा-चिन्तक हैं। इनके लेखों के माध्यम से भाषा-विज्ञान में कुछ नयी अवधारणाएँ सशक्त हुई हैं। भारत से बाहर के देशों में हिंदी की पूरी कहानी सब लेखों के समुच्चयात्मक अध्ययन से ही स्पष्ट होती है। परिशिष्ट में भारत में हिंदी की स्थिति पर तीन विख्यात भाषा-चिन्तकों के विचारों का संग्रह है। हिन्दी की संवैधानिक स्थिति से बात शुरू होती है और आज के वैश्विक सन्दर्भ में व्यावसायिक जगत में हिंदी के बढ़ते चरणों का वर्णन और अन्त में प्रौद्योगिकी के विकासशील पर्यावरण में हिंदी के अस्तित्व का विश्लेषण है।SKU: VPG9326355803₹300.00₹400.00
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