This monograph is the first to examine the rare Hindu Tantric Goddess Chinnamasta. It also discusses her rituals, names and forms (namarupa), and their symbolism. The monograph compares and contrasts her sadhanas (spiritual practices), in Hinduism with Buddhism. The entire Hindu “Chinnamastatantra” section from the Sakta Pramoda, the Buddhist “Chinnamunda Vajravarahisadhana” and the “Trikayavajrayoginistuti” are translated for the first time into English. Chinnamasta, a rare goddess of the Hindu faith, was not “fashionable” or popularized according to any particular group. The ninth and tenth century are when the earliest texts about Chinnamasta were written. This was at a time when Hindu Tantras and Buddhist Tantras developed under similar influences from India. These texts from centuries ago about Chinnamasta help us to see the differences between a general Tantric tradition, and a specific Hindu or Buddhist Tantric tradition. Therefore, the study not only examines Chinnamasta but also attempts understanding what a Tantric tradition looks like.
Chinnamasta
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Hindi Novels and Litrature
Thanda Loha
0 out of 5(0)ठण्डा लोहा –
‘ठण्डा लोहा’ धर्मवीर भारती की प्रारम्भिक कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह की कविताओं की अन्तरंग दुनिया ऐसे अनुभूति केन्द्र पर उजागर हुई है जहाँ दिन महीने और बरस उसकी ताज़गी और महमहाते टटकेपन को रंचमात्र भी मैला नहीं कर पाते। स्वयं भारती जी के शब्दों में——”इस संग्रह में दी गयी कविताएँ मेरे आरम्भिक छह वर्षों की रचनाओं में से चुनी गयी हैं और चूँकि यह समय अधिक मानसिक उथल-पुथल का रहा, अतः इन कविताओं में स्तर, भावभूमि, शिल्प और टोन की काफ़ी विविधता मिलेगी। एकसूत्रता केवल इतनी है कि सभी मेरी कविताएँ हैं, मेरे विकास और परिपक्वता के साथ उनके स्वर बदलते गये हैं, आप ज़रा ध्यान से देखेंगे तो सभी में मेरी आवाज़ पहचानी-सी लगेगी। मेरी परिस्थितियाँ, मेरे जीवन में आने और आकर चले जानेवाले लोग, मेरा समाज, मेरा वर्ग, मेरे संघर्ष, मेरी समकालीन राजनीति और साहित्यिक प्रवृत्तियाँ, इन सभी का मेरे और मेरी कविता के रूप-गठन और विकास में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भाग रहा है…….. किशोरावस्था के प्रणय, रूपासक्ति और आकुल निराशा से एक पावन, आत्मसमर्पणमयी वैष्णव भावना और उसके माध्यम से अपने मन के अहम् का शमन कर अपने से बाहर की व्यापक सचाई को हृदयंगम करते हुए संकीर्णताओं और कट्टरता से ऊपर एक जनवादी भावभूमि की खोज——मेरी इस छन्द-यात्रा प्रमुख मोड़ रहे हैं।”
प्रस्तुत है ‘ठण्डा लोहा’ का यह नवीनतम संस्करण।SKU: VPG9326350136₹75.00₹100.00 -
Hindi Novels and Litrature
Dilli Mein Uninde
0 out of 5(0)इस पृथ्वी के एक जीव के नाते मेरे पास ठोस की जकड़ है और वायवीय की माया । नींद है और जाग है। सोये हुए लोग जागते हैं। जागते हुए लोग सोने जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं—जो न इधर हैं, न उधर । वे प्रायः नींद से बाहर और स्वप्न के भीतर होते हैं। उनींदे…मैंने स्वयं को अकसर यहीं पाया है… क्या यह मैं हूँ? कविताओं वाली मैं? मैं नहीं जानती। इतना जानती हूँ, जब कविता लिखती हूँ, गहरे जल में होती हैं और तैरना नहीं आता। किस हाल में कौन किनारे पहुँचूँगी-बचूँगी या नहीं-सब अस्पष्ट रहता है। किसी अदृश्य के हाथों में। लेकिन गद्य लिखते हुए मैंने स्वयं को किनारे पर खड़े हुए। पाया है। मैं जो बच गयी हूँ, जो जल से बाहर आ गयी हूँ… गगन गिल की ये गद्य रचनाएँ एक ठोस वस्तुजगत संसार को, अपने भीतर की छायाओं में पकड़ना है। यथार्थ की चेतना और स्मृति का संसार-इन दो पाटों के बीच बहती हुई अनुभव-धारा जो कुछ किनारे पर छोड़ जाती है, गगन गिल उसे बड़े जतन से समेट कर अपनी रचनाओं में लाती हैं-मोती, पत्थर, जलजीव-जो भी उनके हाथ का स्पर्श पाता है, जग उठता है। यह एक कवि का स्वप्निल गद्य न होकर गद्य के भीतर से उसकी काव्यात्मक सम्भावनाओं को उजागर करना है… कविता की आँच में तप कर गगन गिल की ये गद्य रचनाएँ एक अजीब तरह की ऊष्मा और ऐन्द्रिक स्वप्नमयता प्राप्त करती हैं।
SKU: VPG9387155886₹371.00₹495.00 -
Hindi Novels and Litrature
Pravasi Bharatiyon Mein Hindi Ki Kahani
0 out of 5(0)प्रवासी भारतीयों में हिंदी की कहानी –
यह पुस्तक शोध पर आधारित सोलह लेखों का संग्रह हैं। इसमें तेरह देशों की हिंदी की कहानी है। कहानी में हिंदी का ऐतिहासिक पक्ष भी है, शैक्षिक पक्ष भी है, और भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का पक्ष भी है। लेखकों ने अपनी-अपनी रुचि और प्रवीणता के अनुसार उन पक्षों पर प्रकाश डाला है। भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का विषय सब लेखकों ने अपने शोधपरक लेखों में सम्मिलित किया है। लेखकों के साथ विचार विमर्श, परिवर्तन और स्पीकरण की प्रक्रिया में बीते तीन वर्षों के परिश्रम का सुखद परिणाम यह पुस्तक है। यहाँ प्रस्तुत लेखों का अन्तिम रूप लेखकों से अनुमत है। प्रवासी भारत में हिंदी भाषा के विभिन्न पक्षों पर पिछले पैंतीस वर्षों से शोधपरक लेखन हो रहा है। तब से शोधकर्ता निरन्तर लिखते चले आ रहे हैं। यह कार्य शुरू हुआ गिरमिटिया देशों में भारत से गयी हिंदी की सहचरी भोजपुरी, अवधी आदि भाषाओं के साथ किसी ने उसके ऐतिहासिक पक्ष पर लिखा तो किसी ने सामाजिक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से उनके सामाजिक पक्ष पर अपने शोधपत्र प्रकाशित किये। सब लेखक संसार के विभिन्न देशों में बसे प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकार्य में लगे भाषा-चिन्तक हैं। इनके लेखों के माध्यम से भाषा-विज्ञान में कुछ नयी अवधारणाएँ सशक्त हुई हैं। भारत से बाहर के देशों में हिंदी की पूरी कहानी सब लेखों के समुच्चयात्मक अध्ययन से ही स्पष्ट होती है। परिशिष्ट में भारत में हिंदी की स्थिति पर तीन विख्यात भाषा-चिन्तकों के विचारों का संग्रह है। हिन्दी की संवैधानिक स्थिति से बात शुरू होती है और आज के वैश्विक सन्दर्भ में व्यावसायिक जगत में हिंदी के बढ़ते चरणों का वर्णन और अन्त में प्रौद्योगिकी के विकासशील पर्यावरण में हिंदी के अस्तित्व का विश्लेषण है।SKU: VPG9326355803₹300.00₹400.00
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