Book Summary of Hindu Spirituality (Vol. 1):Vedas Through Vedanta. In this study, a social and culture anthropologist and specialist in the study religion combine their skills to analyze recent changes in Sri Lankan popular religion. According to the Sinhalas, Buddhism has shared the religious space with a spirit religion since its inception. The spirit of religion is concerned with worldly welfare, while Buddhism is about salvation. Buddhism Transformed examines and describes the profound changes in the Sinhala religion’s character in both these areas. This book is the first to document systematically the cultural effects of the decline in the lives of the “other half” in Sri Lanka. Although health care improved and literacy was universalized after Sri Lankan independence in 1948 (which also marked the beginning of modern Sri Lankan history), the economy could not keep up with the growing expectations of an ever-growing population. The village community was increasingly isolated and became less mobile as a result. New stresses in Sri Lankan society have created new psychological needs. This has led to changes in Protestant Buddhism, which was formed under Protestant influence following the British conquest. Spirit cults are characterized by less morally scrupulous gods and people who value altered states and consciousness. The authors conclude that the unusual developments in Sri Lanka may not be new in India’s religious history.
HINDU SPIRITUALITY (2 Vols.) Vol. I: Vedas Through Vedanta
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Meera Sanchayan
0 out of 5(0)मीराँ संचयन –
मीराँ के दहकते हुए जीवन में से मलयानिल की तरह कविता आती है? क्या यह प्रतिवाद, प्रतिरोध की कविता है? क्या कोई कविता इस तरह सामाजिक बदलाव के लिए सार्थक, प्रासंगिक हो सकती है? मीराँ की कविता वास्तव में यहीं ‘कवि-कर्म’ की सबसे जटिल चुनौती उपस्थित करती है। वे क्रूरतम सामन्ती-समाज की यातनाएँ सहती हैं और उसी आविभाज्य जीवन में से विक्षोभ रहित पद रचती हैं और तब भी हम यह भूलते नहीं हैं कि क्लेशों के अग्नि-कुण्ड में वे बैठी हैं। उनकी कविता इस तरह एक भिन्न संघर्ष-अनुभव, यातना-बोध की कविता हो जाती है। प्रायः हम जीवन की रोशनी में कविता की व्याख्या करते हैं लेकिन मीराँ की कविता इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि उससे जीवन भी व्याख्यायित होता है। मीराँ की कविता उनके निष्कलुष, निर्भीक, निष्कपट, मन को समाज के साथ रखती है और उनकी भाषा शुद्धतावादी आभिजात्य के दर्प को तोड़ती है।SKU: VPG9352294282₹221.00₹295.00 -
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Dilli Mein Uninde
0 out of 5(0)इस पृथ्वी के एक जीव के नाते मेरे पास ठोस की जकड़ है और वायवीय की माया । नींद है और जाग है। सोये हुए लोग जागते हैं। जागते हुए लोग सोने जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं—जो न इधर हैं, न उधर । वे प्रायः नींद से बाहर और स्वप्न के भीतर होते हैं। उनींदे…मैंने स्वयं को अकसर यहीं पाया है… क्या यह मैं हूँ? कविताओं वाली मैं? मैं नहीं जानती। इतना जानती हूँ, जब कविता लिखती हूँ, गहरे जल में होती हैं और तैरना नहीं आता। किस हाल में कौन किनारे पहुँचूँगी-बचूँगी या नहीं-सब अस्पष्ट रहता है। किसी अदृश्य के हाथों में। लेकिन गद्य लिखते हुए मैंने स्वयं को किनारे पर खड़े हुए। पाया है। मैं जो बच गयी हूँ, जो जल से बाहर आ गयी हूँ… गगन गिल की ये गद्य रचनाएँ एक ठोस वस्तुजगत संसार को, अपने भीतर की छायाओं में पकड़ना है। यथार्थ की चेतना और स्मृति का संसार-इन दो पाटों के बीच बहती हुई अनुभव-धारा जो कुछ किनारे पर छोड़ जाती है, गगन गिल उसे बड़े जतन से समेट कर अपनी रचनाओं में लाती हैं-मोती, पत्थर, जलजीव-जो भी उनके हाथ का स्पर्श पाता है, जग उठता है। यह एक कवि का स्वप्निल गद्य न होकर गद्य के भीतर से उसकी काव्यात्मक सम्भावनाओं को उजागर करना है… कविता की आँच में तप कर गगन गिल की ये गद्य रचनाएँ एक अजीब तरह की ऊष्मा और ऐन्द्रिक स्वप्नमयता प्राप्त करती हैं।
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Hindi Vyakaran Ke Naveen Kshitij
0 out of 5(0)हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज –
‘व्याकरण’ अपने प्रकट स्वरूप में एककालिक (स्थिरवत् प्रतीयमान) भाषा का विश्लेषण है, जो भाषाकृति-परक है। किन्तु, वह पूर्णता व संगति तभी पाता है जब ऐतिहासिक-तुलनात्मक भाषावैज्ञानिक प्रक्रियाओं तथा अर्थ विचार की धारणाओं के भीतर से निकल कर आये। यह बात कारक, काल, वाच्य, समास जैसी संकल्पनाओं के साथ विशेषतः और पूरे व्याकरण पर सामान्यतः लागू होती है। फिर भी, व्याकरण है तो प्रधानतः आकृतिपरक अवधारणा ही।
हिन्दी व्याकरण-पुस्तकों के निर्माण की अब तक जो लोकप्रिय शैली रही है, वह अंग्रेज़ी ग्रैमर से अभिभूत रहे पण्डित कामताप्रसाद गुरु के प्रभामण्डल से बाहर निकलकर, कुछ नया सोचने में असमर्थ रही है। वैसे पण्डित किशोरीदास वाजपेयी और उनके भी पूर्वज पण्डित रामावतार शर्मा ने हिन्दी व्याकरण को अधिक स्वस्थ और तर्कसंगत पथ प्रदान करने के अथक प्रयत्न किये, किन्तु उस पथ पर चलना लेखक को रास नहीं आया। लेखक का स्पष्ट विचार है कि हिन्दी भाषा को उसके मूल विकास-परिवेश [वेदभाषा-पालि-प्राकृत-अपभ्रंश-अवहट्ट-हिन्दी] में समझना चाहिए; हिन्दी भाषा के विश्लेषण को भी भारतीय भाषा दर्शन का संवादी होना चाहिए।
‘हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज’ पुस्तक का लेखक भारतीय भाषा दर्शन से उपलब्ध व्याकरणिक संकल्पनाओं पद, प्रकृति, प्रातिपदिक, धातु, प्रत्यय, विभक्ति, कारक, काल, समास, सन्धि, उपसर्ग आदि को मूलार्थ में हिन्दी व्याकरण में विनियुक्त या अन्वेषित करने को प्रतिबद्ध रहा है।
इस विषय पर हिन्दी में अब तक प्रकाशित पुस्तकों में विशेष महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी कृति।SKU: VPG8126340859₹337.00₹450.00
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