This volume examines a topic that has not received the proper attention. However, its fundamental importance for understanding the true nature and heritage of Indian philosophical inquiry and intellectual heritage seems undeniable. The relationship between logic, belief, and philosophy has always been complex and multifaceted, whether in the Indian social and historical contexts or throughout the history western thought. The title of this volume, Logic and belief Indian philosophy, reflects the general theme of the inquiry. It also highlights the yuktiagama dimension. It focuses on Indian thought in general and Indian logic in particular. Special emphasis is placed on the tension between rational examination and belief of Indan philosophical traditions. Thematic sections are where the contributions are organized. The titles are self-explanatory. Some articles go into great detail about the doctrinal aspects and Jaina and Buddhist traditions of Brahmanical philosophical schools, while others seek to synthesize and reflect on the nature and religious history of Indian philosophy. The reader will also find an english translation of ‘The chapter on the negative-only inference’ (Kevalavyatireki-prakarana) of Gangesa’s Tattva-cinta-mani, a ground-breaking work that revolutionised medieval Indian Logic.
Logic and Belief in Indian Philosophy
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Ajneya Rachanawali (Volume-5)
0 out of 5(0)अज्ञेय रचनावली-5
अज्ञेय एक ऐसे विलक्षण और विदग्ध रचनाकार हैं, जिन्होंने भारतीय भाषा और साहित्य को भारतीय आधुनिकता और प्रयोगधर्मिता से सम्पन्न किया है: तथा बीसवीं सदी की मूलभूत अवधारणा ‘स्वतन्त्रता’ को अपने सृजन और चिन्तन में केन्द्रीय स्थान दिया है। उनकी यह भारतीय आधुनिकता उन्हें न सिर्फ़ हिन्दी, बल्कि समूचे भारतीय साहित्य का एक ‘क्लासिक’ बनाती है। विद्रोही और प्रश्नाकुल रचनाकार अज्ञेय ने कविता, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, नाटक, आलोचना, डायरी, यात्रा वृत्तान्त, संस्मरण, सम्पादन, अनुवाद, व्यस्थापन, पत्रकारिता आदि विधाओं में लेखन किया है। उनके क्रान्तिकारी चिन्तन ने प्रयोगवाद, नयी कविता और समकालीन सृजन में निरन्तर नये प्रयोगों से नये सृजन के प्रतिमान निर्मित किये हैं। जड़ीभूत एवं रूढ़ जीवन-मूल्यों से खुला विद्रोह करते हुए इस साधक ने जिन नयी राहों का अन्वेषण किया, वे असहमति और विरोध का मुद्दा भी बनीं, लेकिन आज स्थिति यह है कि अज्ञेय को ठीक से समझे बिना नयी पीढ़ी के रचनाकर्म के संकट का आकलन करना ही मुश्किल है।
‘अज्ञेय रचनावली’ में अज्ञेय का तमाम क्षेत्रों में किया गया विपुल लेखन पहली बार एक जगह समग्र रूप में संकलित है। अज्ञेय जन्म-शताब्दी के इस ऐतिहासिक अवसर पर हिन्दी के मर्मज्ञ और प्रसिद्ध आलोचक प्रो. कृष्णदत्त पालीवाल के सम्पादन में यह कार्य विधिवत सम्पन्न हुआ। आशा है, हिन्दी साहित्य के शोधार्थियों एवं अध्येताओं के लिए अज्ञेय की सम्पूर्ण रचना सामग्री एक ही जगह एक साथ उपलब्ध हो सकेगी।SKU: VPG9326350815₹600.00₹800.00 -
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Ajneya Rachanawali (Volume-11)
0 out of 5(0)अज्ञेय रचनावली-11
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‘अज्ञेय रचनावली’ में अज्ञेय का तमाम क्षेत्रों में किया गया विपुल लेखन पहली बार एक जगह समग्र रूप में संकलित है। अज्ञेय जन्म-शताब्दी के इस ऐतिहासिक अवसर पर हिन्दी के मर्मज्ञ और प्रसिद्ध आलोचक प्रो. कृष्णदत्त पालीवाल के सम्पादन में यह कार्य विधिवत सम्पन्न हुआ। आशा है, हिन्दी साहित्य के शोधार्थियों एवं अध्येताओं के लिए अज्ञेय की सम्पूर्ण रचना सामग्री एक ही जगह एक साथ उपलब्ध हो सकेगी।SKU: VPG9326352253₹600.00₹800.00 -
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Ahiran
0 out of 5(0)अहिरन –
प्रतिष्ठित असमिया लेखिका डॉ. इन्दिरा गोस्वामी के लघु उपन्यास ‘अहिरन’ का हिन्दी अनुवाद है। छत्तीसगढ़ में बहनेवाली अहिरन नदी पर निर्माणाधीन बाँध से सम्बन्धित इस उपन्यास का कथानक जीवन और जगत के महत्त्वपूर्ण चित्रों में रोशनी भरता है। इस रोशनी में मज़दूरों और इंजीनियरों का मानवीय पक्ष भी चमक उठता है। बाँध के निर्माण कार्य में व्यस्त श्रमिकों की प्रकट दुनिया का एक वास्तविक ब्यौरा तो यह उपन्यास प्रस्तुत करता ही है, साथ ही इनके अदृश्य संसार के अलौकिक रसायनों को भी विश्लेषित करता है। व्यापक फलक को समेटे हुए इस उपन्यास की कथा-संवेदना स्त्री-पुरुष सम्बन्ध की कई गाँठों को वैचारिक उत्तेजना में खोलती है। मानवीय पक्षधरता इस उपन्यास का वास्तविक पाठ है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका का एक रोचक उपन्यास।SKU: VPG8126318810₹75.00₹100.00
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