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nan
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Sports Novels
Aadmi Ka Darr
0 out of 5(0)आदमी का डर –
हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार शेखर जोशी ‘नयी कहानी’ रचना-आन्दोलन के व्यापक जनोन्मुख आयाम को प्रशस्त करने वाले रचनाकार हैं। उनके ‘आदमी का डर’ कहानी-संग्रह में अट्ठाईस कहानियाँ संगृहीत हैं। ‘कोसी का घटवार’ जैसी कालजयी कहानी के लेखक शेखर जोशी वस्तुतः मध्यवर्गीय भारतीय जीवन की छोटी-छोटी त्रासदियों/कठिनाइयों/दुविधाओं के तलघर में पैठकर जीवन की उज्ज्वल धूमिल सच्चाइयाँ उजागर करते हैं। यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि ‘फैक्ट्री लाइफ़’ या श्रमिक जीवन पर इतनी सघनता से लिखने वाले वे सर्वोपरि लेखक हैं। ‘बदबू’, ‘नौरंगी बीमार है’, ‘हेड मैसेंजर मन्टू’, ‘आशीर्वचन’ जैसी उनकी प्रसिद्ध कहानियों का ख़ास जीवन इस संग्रह में शामिल ‘आख़िरी टुकड़ा’, ‘प्रतीक्षित’ आदि में विस्तार पाता है।
‘आदमी का डर’ की सभी कहानियाँ इस दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं कि इनमें शेखर जोशी के ‘रचनात्मक स्वभाव’ के सूत्र समाहित हैं। पर्वतीय अंचल के प्रसंग, गृहस्थी के खटराग, नैतिकता के असमंजस और विकास के स्याह-सफ़ेद आदि इन कहानियों में देखे-पढ़े जा सकते हैं। शेखर जोशी की कहानियों में स्त्रियों की स्थिति इस तरह चित्रित है कि विमर्श के ‘डमरूवाद’ की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। इस संग्रह का प्रकाशन एक ऐसे समय में हो रहा है जब ‘मितकथन’ या ‘कथावस्तु-सन्तुलन’ से घबराकर कुछ कहानीकार विवरणों-ब्योरों के ‘अवांछित अरण्य’ में पैठते जा रहे हैं, शेखर जोशी की कहानियाँ इस सन्दर्भ में एक आईना दिखाती हैं। भाषा और शिल्प की दृष्टि से शेखर जोशी की विशिष्ट पहचान है। सहजता और सार्थकता के अपने प्रतिमान वे स्वयं हैं।
‘आदमी का डर’ कहानी-संग्रह पाठकों को जीवन की वास्तविक विविधता से रूबरू करायेगा, ऐसा विश्वास है।—सुशील सिद्धार्थSKU: VPG8126330010₹225.00₹300.00 -
Sports Novels
Baaki Dhuan Rahne Diya
0 out of 5(0)बाकी धुआँ रहने दिया –
पिछले कुछ वर्षों में मीडिया, बाज़ार, विज्ञापन, अपराध और राजनीतिक सत्ताओं द्वारा हमारा मानवीय सामाजिक—नागरिक यथार्थ जितना क्षतिग्रस्त हुआ है, उससे कहीं अधिक तहस-नहस हुआ है यथार्थ के बोध, संज्ञान, चेतना और स्मृति का इलाक़ा। ज़ाहिर है भाषा इस विध्वंस का सबसे पहली शिकार हुई है। भाषा की समस्त संरचनाएँ शब्द और विधाएँ जिस तरह आज हताहत और ‘डिफ़ेक्ट’ हैं, उतनी शायद ही किसी और दौर में रही हों, क्योंकि हम सब जानते हैं कि यह विध्वंस सभ्यतामूलक है। यानी इन तारीख़ों में हम हर रोज़ अपने आपको अचानक ही एक नयी सभ्यता और उसकी सत्ता का नागरिक या उपनिवेश बनते हुए लाचारी में देखते हैं। विचार से लेकर राजनीति और कलाओं तक की पिछली संरचनाएँ अचानक अपने सारे पाखण्ड, फ़रेब, संकीर्णता और नीयत के साथ हमारे सामने बेपरदा खड़ी दिखाई देने लगती हैं। बिना किसी ‘मास्क’ और ‘मिथ’ के।
राकेश मिश्र की विलक्षण कहानियाँ ठीक इसी संक्रान्त काल के उन पलों को भाषा में दर्ज करने का प्रयत्न करती हैं, जिन पलों में इतिहास और स्मृति, शब्द और अर्थ, राजनीति और विचार, मिथक और यथार्थ एक दूसरे के संहार के लिए हर रोज़ हमारे सामने नये रूपक रचते हैं। जब हम अचानक अपने आपको इस दुविधा में घिरा पाते हैं कि नमक के बदले हुए स्वाद को दुबारा किस चीज़ से नमकीन बनाया जाय, पानी से अलग हो चुकी तृप्ति और प्यास को दुबारा पानी तक कैसे लौटाया जाय, चारों ओर दिखते वस्तु जगत को किसी तरीके से उसकी वास्तविकता वापस दी जाय। और यह कि कहानियों में उनकी कहानी और क़िस्सागोई बचाकर किस हिफ़ाज़त के साथ उन्हें वापस सौंपी जाय।
ज़ाहिर है ऐसे में कोई औसत दर्जे की प्रतिभा नये मुल्लों की तरह ‘अतिरंजित’ औज़ारों और युक्तियों का प्रयोग करती है और अन्ततः अपना ही विनाश करती है। राकेश मिश्र अपने समकालीनों से ठीक इसी बिन्दु पर अलग होते हैं। ‘तक्षशिला में आग’, ‘पृथ्वी का नमक’, ‘राजू भाई डॉट कॉम’ और ‘शह और मात’ जैसी कहानियों के एक-एक वाक्य, उनके बिम्ब और कथात्मक छवियाँ जिस तल्लीनता, मेहनत और विदग्धता के साथ रची गयी हैं, उनमें सिनेमा और स्मृति या ‘मिस्टीक’ और असलियत का दुर्लभ विडम्बनाओं से भरा कौतुक और जादू एक साथ मौजूद है। राकेश की कहानियाँ सिर्फ़ भाषा का उपद्रव और लापरवाह शब्दों की चमकदार लफ़्फ़ाज़ी नहीं हैं। वे समकालीन कथालेखन में किसी बातूनी ‘वीज़े’ का कॉमर्शियल ‘चैटर’ नहीं है, जिसकी भाषा और विन्यास को ‘कट’ करके क्रिकेट कमेंट्री विज्ञापन से लेकर सोप ऑपेरा और सत्ता-राजनीति के चालू ‘विमर्शों’ तक कहीं भी पेस्ट कर दिया जाय। ये कहानियाँ हमारे समय, यथार्थ और चेतना के गहरे और मारक उद्वेलन की मार्मिक विडम्बनाओं की यादगार कहानियाँ हैं।
एक ऐसे सत्ताविहीन और लाचार युवा रचनाकार की कहानियाँ जो अपने समय में प्यार से लेकर ‘पॉवर पॉलिटिक्स’ तक के ईमानदार अनुभवों को उनकी सम्पूर्ण बहुआयामिता और अन्तर्द्वन्द्वों के साथ किसी क़िस्से में तब्दील करता है, उन्हें हलके-फुलके ‘गॉसिप’ में विसर्जित होने से बचाते हुए। और यह कोई आसान काम नहीं है। पहले प्रेम के गहरे एकान्त क्षणों में अचानक बज उठने वाले ‘मोबाइल’ की तरह राकेश मिश्र की कहानियाँ अपने पहले ‘पाठ’ में ‘शॉक’ और फिर अन्य ‘पाठों’ में उन दुर्घटनाओं और बड़ी विडम्बनाओं से हमारा साक्षात्कार कराती हैं, जो फ़िलहाल कहीं और दुर्लभ है।
ये कहानियाँ एक अत्यन्त सम्भावनापूर्ण, स्मृति और अन्तर्दृष्टि सम्पन्न युवा कथाकार की अविस्मरणीय कहानियाँ हैं। अपने होने का महत्त्व वे स्वयं स्थापित करेंगी, इसका पूरा विश्वास मुझे है।—उदय प्रकाशSKU: VPG8126314300₹90.00₹120.00 -
Sports Novels
Andhere Mein Hanshi
0 out of 5(0)अंधेरे में हँसी –
एक संघर्ष भरी ज़िन्दगी के बीच जीने की जद्दोजहद योगेन्द्र आहूजा की कहानियों की विशेषता है। उनकी कहानियाँ उजाले में आने की आकांक्षा में मानो किसी अँधेरी सुरंग में यात्रा करने की भयावहता का दास्तान सुनती हों। साहित्य जगत् के कुछ महत्वपूर्ण पात्रों की कहानियों में उपस्थिति जैसे यही बताती हो कि पाठक इन्हें सिर्फ़ स्वप्न-कथा ही नहीं समझे बल्कि वह सृजनशील लोगों और चिन्तकों द्वारा किये जा रहे प्रतिरोध की सच्चाई को भी महसूस करे।
योगेन्द्र आहूजा अपने लेखन में क्लाइमेक्स तक पहुँचने की जल्दबाज़ी में नहीं दिखते। शास्त्रीय गायक की तरह दूर तक ले जाते हैं। गन्तव्य की तलाश में वे प्रायः अपने पाठकों को भूलभुलैया में डाल देते हैं, यह भी उनकी कला है। वे इसके ज़रिये जीवन के उलझाव को रेखांकित करते हैं।
हक़ीक़त को बयान करनेवाली इन कहानियों में अँधेरे से उलझते हुए भी शोषण से मुक्ति का स्वप्न नज़र आता है। निश्छल सामाजिकता की उजली इबारत पर स्याही फेरनेवाले जन विरोधी लोगों के अँधेरे के विरुद्ध योगेन्द्र आहूजा की कहानियाँ ज़ोर से हँसती नज़र आती हैं।SKU: VPG8126310375₹187.00₹250.00 -
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Baheliyon Ke Beech
0 out of 5(0)बहेलियों के बीच –
श्यामल बिहारी महतो की ये कहानियाँ श्रमिकों के जद्दोजहद भरे जीवन पर आधारित हैं, जिन्हें पानी पीने के लिए रोज़ कुआँ खोदना पड़ता है। लेकिन ज़िन्दगी के झंझावात यहीं ख़त्म नहीं होते। भूख और बीमारी के अलावा उन्हें जिस भयानक अन्याय का शिकार होना पड़ता है, वह है शोषण! श्रम के मुताबिक़ वाज़िब हक़ का न मिलना मज़दूर जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। महतो की इन सभी कहानियों में इन्हीं भावनाओं को पंक्ति-दर-पंक्ति देखा जा सकता है। ज्ञातव्य है, कि लेखक का ख़ुद का जीवन भी अभिशाप-ग्रस्त रहा है। लेखक ने जिन अभावों और मुश्किलों में अपना जीवन गुज़ारा है और अपने आस-पास जो देखा-गुना है, उसे अपनी कहानियों में शब्दशः लिखने की कोशिश की है। ये कहानियाँ मज़दूर जीवन की भयावहता की गवाह हैं। इनकी सबसे बड़ी ख़ासियत है—शिल्प की अछूती रचनात्मकता। ये कहानियाँ दारुण व्यथाओं का ब्यौरा-भर नहीं हैं। संवेदनात्मक कथातत्त्व इन्हें गहराई प्रदान करता है। इनके रचना कौशल में सम्भावनाओं की नयी दिशा दिखायी देती है।
महतो की इन कहानियों को लेकर एक बात और स्पष्ट कर देनी चाहिए कि ये मात्र दलित जीवन की विषमता जनित कहानियाँ न होकर मज़दूर जीवन की निहंग रचनाएँ हैं। क्योंकि जिस तरह नेताओं, सामन्तों की कोई जाति नहीं होती, उसी तरह मज़दूरों की भी कोई जाति नहीं होती। अब जो नयी सामाजिकता विकसित हो रही है, वह भूमण्डलीकरण की शिकार भी है और उसके सारे कार्य व्यवहार जाति आधारित न होकर अर्थ-आधारित होते जा रहे हैं। जो सम्पन्न है वह उच्चवर्गीय सामन्त है और जो विपन्न है वह निम्नवर्गीय मज़दूर है। श्यामल बिहारी महतो की इन कहानियों में हालाँकि इस नयी सामाजिक विषमता की ओर खुला इशारा नहीं है लेकिन असमानता से उपजा शोषण इन कहानियों का एक अहम और ख़ास तत्त्व है।
इन कहानियों को पढ़ते हुए मैं यह भी कहना चाहूँगा कि यद्यपि यह विषय हिन्दी में सर्वथा नया नहीं है, बहुतेरी कहानियाँ इस पृष्ठभूमि पर लिखी गयी हैं, लेकिन महतो ने इनमें अपनी जिस रचनात्मक ऊर्जा और अनुभवजन्य तल्ख़ी का उद्घाटन किया है, और उसे जितनी सधी क़लम से आख़िर तक निभाया है, लेखन का यही संयम, त्वरा और निरन्तरता बनी रही तो आनेवाले समय में श्यामल बिहारी महतो एक महत्त्वपूर्ण कथाकार के रूप में जाने जायेंगे।—कमलेश्वरSKU: VPG8126311509₹37.00₹50.00
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