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PHILOSOPHICAL ANTHROPOLOGY IN SAIVA SIDDHANTA
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Man’s Search For Meaning
0 out of 5(0)Basically this book is mentioned what is the meaning of man and focus on how create suicide and depression. However contribution to psychiatry was quite different and handle many honors achievement includes. How to save human and his nature Logo therapy system in used our life and save human mind and human nature. This book is based on save the Human mind and Human nature. How you can apply and direct the power of your subconscious mind to achieve all your goals and dreams. The Power of Your Subconscious Mind has inspired millions of readers to unlock the unseen forces and invisible power within them.
SKU: PRK1846041242₹224.00₹299.00 -
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Adwaitka Upanishad
0 out of 5(0)अद्वैतका उपनिषद् –
आद्य शंकराचार्य भारत को और वैदिक परम्परा को प्राप्त हुआ दिव्य व्यक्तित्व है। गीता में कहा गया है कि जब धर्म की ग्लानि होती है तब मुक्त पुरुष को अवतार लेना पड़ता है। परन्तु भारत में 6-7वें शतक में देवत्व के समकक्ष विद्वान सन्त ने जीवन के पच्चीसवें वर्ष में वैदिक धर्मग्लानि हटाकर नव उत्साह से भारत में वैदिक धर्म की संस्थापना की और यह कार्य आगे अखण्डित और सामर्थ्य से चलता रहे, इस दूरदृष्टि से चार मठों की चार दिशाओं में स्थापना की। इसका परिणाम इतना सशक्त था कि आज तक वह सनातन वैदिक परम्परा हिन्दू नाम से दृढ़मूल है। और दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। आद्य शंकराचार्य जैसा बुद्धितेजस्वी महात्मा, प्रगल्भ विचारक, पन्थसमन्वय महर्षि इस भारत में होना और हिन्दू धर्म को प्राप्त होना, यह इस देश का और धर्म का उच्चतम पुण्यफल ही है। अवैदिक सम्प्रदायों का निरसन कर वैदिक सम्प्रदाय में समन्वय स्थापित कर उन्होंने सर्व सम्प्रदायों की परस्पर द्वेष व मत्सरवादी विचारधारा को समाप्त कर दिया। ‘अद्वैत सिद्धान्त’ की स्थापना करके तथा अपने सर्व देवताओं का गुणगान करने वाले अनेक स्तोत्रों के माध्यम से पुनः अद्वैत का सन्देश देते हुए ‘भक्तिमार्ग’ की बैठक दृढ़मूल की।
मराठी की प्रसिद्ध उपन्यासकार शुभांगी भडभडे ने अपने अमृत महोत्सव वर्ष में हिन्दू धर्म के लिए अमृत रूप महान तत्त्ववेत्ता आद्य शंकराचार्य को अपने उपन्यास का नायक चुना, यह सचमुच रत्नकांचन योग है।
शुभांगी भडभडे ने आद्य शंकराचार्य को साधारण मराठी पाठकों तक पहुँचाने की अपनी प्रतिज्ञा सफलता से पूरी की है। मराठी में रचित उपन्यास का इस हिन्दी अनुवाद को अनेक पाठक मिलें, यही आशा है।SKU: VPG9387919976₹712.00₹950.00 -
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Aaswad Ke Vividh Praroop
0 out of 5(0)आस्वाद के विविध प्रारूप –
कविता के आस्वाद के अपने अनुभवों को दर्ज करते हुए प्रभात त्रिपाठी ने आलोचना की एक नयी और आत्मीय भाषा विकसित की है। आलोच्य कृति के अन्तरंग के साथ आनुभविक सम्बन्ध रचते हुए उन्होंने कविता के मर्म को लिखने का जो नया मुहावरा खोजा है, उसमें खोजने की विकलता की अनुगूँज है। हम अनुभव करते हैं कि वह कुछ चालू अवधारणाओं और नुस्खों पर टिकी अधिकांश समीक्षा की तुलना में हमारे मन पर गहरा असर डालती है। वास्तव में उनकी समीक्षा कवियों के रचनाशील मन की अनेक परतों को उघारने में तथा रचना की जटिलता को बोधगम्य बनाने में मनोयोग से जुटी सृजनात्मकता का ही एक अन्य रूप है। उसे साम्प्रतिक आलोचना की तरह देखना और पढ़ना शायद नाकाफ़ी है।
प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने अज्ञेय, शमशेर, मुक्तिबोध, नेमिचन्द्र जैन और भवानीप्रसाद मिश्र की अनेक कविताओं की व्याख्या करते हुए उनके काव्य संसार की विशेषताओं को दर्ज भर नहीं किया है, बल्कि पूरे काव्यानुराग के साथ उनके अनुभव-संसार से अपने मन को जोड़ने की कोशिश की है। यही नहीं, अज्ञेय और शमशेर की कुछ विशिष्ट रचनाओं की सुविस्तृत व्याख्या करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि हर महत्त्वपूर्ण कविता अपनी नानार्थता के आलोक के साथ ही पाठक के मर्म तक पहुँचती है।
कविता में सक्रिय वैचारकिता की पहचान से दूर न रहते हुए भी उन्होंने यह कोशिश की है कि विचार को काव्य-विन्यास और कविता के शब्दों में ही कविता के विचार की तरह पढ़ने की एक सार्थक शुरुआत हो। हर कवि की रचना की व्याख्या के दौरान लेखक ने उसके रचनागत वैशिष्ट्य को इस तरह से रेखांकित किया है कि उन्हें महज किन्हीं सरलीकृत सामान्यीकरणों के आधार पर न पढ़ा जा सके। एक पाठक की तरह पाठ के अनुभवों को दर्ज करती यह पुस्तक सरलीकरणों एवं सामान्यीकरणों के विरुद्ध पाठक के हस्तक्षेप का एक विरल उदाहरण है।SKU: VPG9326351188₹127.00₹170.00 -
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Ajneya Rachanawali (Volume-5)
0 out of 5(0)अज्ञेय रचनावली-5
अज्ञेय एक ऐसे विलक्षण और विदग्ध रचनाकार हैं, जिन्होंने भारतीय भाषा और साहित्य को भारतीय आधुनिकता और प्रयोगधर्मिता से सम्पन्न किया है: तथा बीसवीं सदी की मूलभूत अवधारणा ‘स्वतन्त्रता’ को अपने सृजन और चिन्तन में केन्द्रीय स्थान दिया है। उनकी यह भारतीय आधुनिकता उन्हें न सिर्फ़ हिन्दी, बल्कि समूचे भारतीय साहित्य का एक ‘क्लासिक’ बनाती है। विद्रोही और प्रश्नाकुल रचनाकार अज्ञेय ने कविता, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, नाटक, आलोचना, डायरी, यात्रा वृत्तान्त, संस्मरण, सम्पादन, अनुवाद, व्यस्थापन, पत्रकारिता आदि विधाओं में लेखन किया है। उनके क्रान्तिकारी चिन्तन ने प्रयोगवाद, नयी कविता और समकालीन सृजन में निरन्तर नये प्रयोगों से नये सृजन के प्रतिमान निर्मित किये हैं। जड़ीभूत एवं रूढ़ जीवन-मूल्यों से खुला विद्रोह करते हुए इस साधक ने जिन नयी राहों का अन्वेषण किया, वे असहमति और विरोध का मुद्दा भी बनीं, लेकिन आज स्थिति यह है कि अज्ञेय को ठीक से समझे बिना नयी पीढ़ी के रचनाकर्म के संकट का आकलन करना ही मुश्किल है।
‘अज्ञेय रचनावली’ में अज्ञेय का तमाम क्षेत्रों में किया गया विपुल लेखन पहली बार एक जगह समग्र रूप में संकलित है। अज्ञेय जन्म-शताब्दी के इस ऐतिहासिक अवसर पर हिन्दी के मर्मज्ञ और प्रसिद्ध आलोचक प्रो. कृष्णदत्त पालीवाल के सम्पादन में यह कार्य विधिवत सम्पन्न हुआ। आशा है, हिन्दी साहित्य के शोधार्थियों एवं अध्येताओं के लिए अज्ञेय की सम्पूर्ण रचना सामग्री एक ही जगह एक साथ उपलब्ध हो सकेगी।SKU: VPG9326350815₹750.00₹1,000.00
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