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nan
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Satire Books
Ek Adhoori Prem Kahani Ka Dukkhant
0 out of 5(0)एक अधूरी प्रेम कहानी का दुःखान्त –
व्यंग्य का मूलतः विसंगति और विडम्बना के गहरे बोध से जन्म होता है। व्यंग्यकार अपने आसपास की घटनाओं पर पैनी निगाह रखता है और उनका सारांश मन में संचित करता रहता है। जब किसी घटना का सूत्र किसी व्यापक जीवनोद्देश्य से जुड़ता है तब रचना में व्यंग्य का प्रस्थान बनता है।
‘एक अधूरी प्रेम कहानी का दुःखान्त’ में कैलाश मंडलेकर के व्यंग्य-आलेख किसी-न-किसी परिवेशगत विचित्रता को व्यक्त करते हैं। उनके व्यंग्य ‘हिन्दी व्यंग्य परम्परा’ से लाभ उठाते हुए अपनी ख़ासियत विकसित करते हैं। कुछ विषय इस क्षेत्र में सदाबहार माने जाते हैं जैसे—साहित्य, राजनीति, ससुराल, प्रेम आदि। इन सदाबहार विषयों पर लिखते हुए कैलाश मंडलेकर अपने अनुभवों का छौंक भी लगाते चलते हैं। उदाहरणार्थ, ‘वरिष्ठ साहित्यकार : एक लघु शोध’ में उनके ये वाक्य : ‘वरिष्ठ साहित्यकार का एकान्त बहुत भयावह होता है। बात-बात पर उपदेश देने वाली आदत के कारण लोग प्रायः उससे बिदकते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार अमूमन अकेला ही रहता है तथा घरेलू क़िस्म के अकेलेपन को पत्नी से लड़ते हुए काटता है।’
प्रस्तुत व्यंग्य-संग्रह अपनी चुटीली भाषा और आत्मीय शैली के कारण पाठकों की सहृदयता प्राप्त करेगा, ऐसा विश्वास है।SKU: VPG8126320615₹120.00₹160.00 -
Satire Books
Rani Naagfani Ki Kahani
0 out of 5(0)रानी नागफनी की कहानी –
यह एक व्यंग्य-कथा है। ‘फैंटेसी’ के माध्यम से मैंने आज की वास्तविकता के कुछ पहलुओं की आलोचना की है। ‘फैंटेसी’ का माध्यम कुछ सुविधाओं के कारण चुना है। लोक-कल्पना से दीर्घकालीन सम्पर्क और लोक-मानस से परम्परागत संगति के कारण ‘फैंटेसी’ की व्यंजना प्रभावकारी होती है। इसमें स्वतन्त्रता भी काफ़ी होती है और कार्यकारण सम्बन्ध का शिकंजा ढीला होता है। यों इसकी सीमाएँ भी बहुत हैं।
मैं ‘शाश्वत साहित्य’ रचने का संकल्प करके लिखने नहीं बैठता। जो अपने युग के प्रति ईमानदार नहीं होता, वह अनन्तकाल के प्रति कैसे हो लेता है, मेरी समझ से परे है।
मुझ पर ‘शिष्ट हास्य’ का रिमार्क चिपक रहा है। यह मुझे हास्यास्पद लगता है। महज़ हँसाने के लिए मैंने शायद ही कभी कुछ लिखा हो और शिष्ट तो मैं हूँ ही नहीं। मगर मुश्किल यह है कि रस नौ ही हैं और उनमें ‘हास्य’ भी एक है। कभी ‘शिष्ट हास्य’ कह कर पीठ दिखाने में भी सुभीता होता है। मैंने देखा है जिस पर तेज़ाब की बूँदें पड़ती हैं, वह भी दर्द दबाकर, मिथ्या अट्टहास कर, कहता है, ‘वाह, शिष्ट हास्य है।’ मुझे यह गाली लगती है।SKU: VPG8170551997₹150.00₹200.00 -
Satire Books
Maanniya Sabhasado
0 out of 5(0)माननीय सभासदो! –
व्यंग्य न तो मनोरंजन के लिए पढ़ा जाता है और न ही इस उद्देश्य से यह लिखा जाता है। हाँ, व्यंग्य में चुहलबाजी की चाशनी लिपटी हो तो बात दीगर है। वैसे सच कहें तो हमारे आसपास का कहीं कुछ भी तो व्यंग्य के चौखटे से बाहर नहीं है!
‘माननीय सभासदो!’ में प्रतिष्ठित नये व्यंग्यकार जवाहर चौधरी ने वर्तमान समाज और राजनीति के क्षेत्र में तेज़ी से गिर रहे मूल्यों की ओर इशारा करते हुए हमारी चेतना को झकझोरने का प्रयास किया है। तथाकथित सभ्य समाज एवं राजनीति की दुनिया में बढ़ रही अनेक प्रकार की विसंगतियों पर ये निबन्ध तीख़ी चोट करते हैं और सोचने-समझने की सिफ़ारिश भी करते हैं। जवाहर चौधरी की ये रचनाएँ आपको हँसने-मुसकराने की भी छूट देती हैं, मगर एक सीमा के बाद ये सबको सबसे आगाह भी करती हैं; शायद सबसे ज़्यादा आपको अपने-आप से भी … प्रस्तुत है ‘माननीय सभासदो!’ का नया संस्करण।SKU: VPG8126314461₹30.00₹40.00
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