Seven Days of Nectar: A Contemporary Oral Performance of The Bhagavatapurana
Seven Days of Nectar
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Hindi Novels and Litrature
Meera Sanchayan
0 out of 5(0)मीराँ संचयन –
मीराँ के दहकते हुए जीवन में से मलयानिल की तरह कविता आती है? क्या यह प्रतिवाद, प्रतिरोध की कविता है? क्या कोई कविता इस तरह सामाजिक बदलाव के लिए सार्थक, प्रासंगिक हो सकती है? मीराँ की कविता वास्तव में यहीं ‘कवि-कर्म’ की सबसे जटिल चुनौती उपस्थित करती है। वे क्रूरतम सामन्ती-समाज की यातनाएँ सहती हैं और उसी आविभाज्य जीवन में से विक्षोभ रहित पद रचती हैं और तब भी हम यह भूलते नहीं हैं कि क्लेशों के अग्नि-कुण्ड में वे बैठी हैं। उनकी कविता इस तरह एक भिन्न संघर्ष-अनुभव, यातना-बोध की कविता हो जाती है। प्रायः हम जीवन की रोशनी में कविता की व्याख्या करते हैं लेकिन मीराँ की कविता इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि उससे जीवन भी व्याख्यायित होता है। मीराँ की कविता उनके निष्कलुष, निर्भीक, निष्कपट, मन को समाज के साथ रखती है और उनकी भाषा शुद्धतावादी आभिजात्य के दर्प को तोड़ती है।SKU: VPG9352294282₹221.00₹295.00 -
Hindi Novels and Litrature
Pravasi Bharatiyon Mein Hindi Ki Kahani
0 out of 5(0)प्रवासी भारतीयों में हिंदी की कहानी –
यह पुस्तक शोध पर आधारित सोलह लेखों का संग्रह हैं। इसमें तेरह देशों की हिंदी की कहानी है। कहानी में हिंदी का ऐतिहासिक पक्ष भी है, शैक्षिक पक्ष भी है, और भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का पक्ष भी है। लेखकों ने अपनी-अपनी रुचि और प्रवीणता के अनुसार उन पक्षों पर प्रकाश डाला है। भाषा के संरक्षण और अनुरक्षण का विषय सब लेखकों ने अपने शोधपरक लेखों में सम्मिलित किया है। लेखकों के साथ विचार विमर्श, परिवर्तन और स्पीकरण की प्रक्रिया में बीते तीन वर्षों के परिश्रम का सुखद परिणाम यह पुस्तक है। यहाँ प्रस्तुत लेखों का अन्तिम रूप लेखकों से अनुमत है। प्रवासी भारत में हिंदी भाषा के विभिन्न पक्षों पर पिछले पैंतीस वर्षों से शोधपरक लेखन हो रहा है। तब से शोधकर्ता निरन्तर लिखते चले आ रहे हैं। यह कार्य शुरू हुआ गिरमिटिया देशों में भारत से गयी हिंदी की सहचरी भोजपुरी, अवधी आदि भाषाओं के साथ किसी ने उसके ऐतिहासिक पक्ष पर लिखा तो किसी ने सामाजिक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से उनके सामाजिक पक्ष पर अपने शोधपत्र प्रकाशित किये। सब लेखक संसार के विभिन्न देशों में बसे प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकार्य में लगे भाषा-चिन्तक हैं। इनके लेखों के माध्यम से भाषा-विज्ञान में कुछ नयी अवधारणाएँ सशक्त हुई हैं। भारत से बाहर के देशों में हिंदी की पूरी कहानी सब लेखों के समुच्चयात्मक अध्ययन से ही स्पष्ट होती है। परिशिष्ट में भारत में हिंदी की स्थिति पर तीन विख्यात भाषा-चिन्तकों के विचारों का संग्रह है। हिन्दी की संवैधानिक स्थिति से बात शुरू होती है और आज के वैश्विक सन्दर्भ में व्यावसायिक जगत में हिंदी के बढ़ते चरणों का वर्णन और अन्त में प्रौद्योगिकी के विकासशील पर्यावरण में हिंदी के अस्तित्व का विश्लेषण है।SKU: VPG9326355803₹300.00₹400.00 -
Hindi Novels and Litrature
Hindi Vyakaran
0 out of 5(0)हिन्दी व्याकरण –
…व्याकरण की उपयोगिता और आवश्यकता इस पुस्तक में यथास्थान बतलायी गयी है, तथापि यहाँ इतना कहना उचित जान पड़ता है कि किसी भाषा के व्याकरण का निर्माण उसके साहित्य की पूर्ति का कारण होता है और उसकी प्रगति में सहायता देता है। भाषा की सत्ता स्वतन्त्र होने पर भी व्याकरण उसका सहायक अनुयायी बनकर उसे समय-समय और स्थान-स्थान पर जो आवश्यक सूचनाएँ देता है, उससे भाषा का लाभ होता है…
भाषा की चंचलता दूर करने और उसे व्यस्थित रूप में रखने के लिए व्याकरण ही प्रधान और सर्वोत्तम साधन है।… —कामताप्रसाद गुरुSKU: VPG9326351027₹210.00₹280.00 -
Hindi Novels and Litrature
Hindi Vyakaran Ke Naveen Kshitij
0 out of 5(0)हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज –
‘व्याकरण’ अपने प्रकट स्वरूप में एककालिक (स्थिरवत् प्रतीयमान) भाषा का विश्लेषण है, जो भाषाकृति-परक है। किन्तु, वह पूर्णता व संगति तभी पाता है जब ऐतिहासिक-तुलनात्मक भाषावैज्ञानिक प्रक्रियाओं तथा अर्थ विचार की धारणाओं के भीतर से निकल कर आये। यह बात कारक, काल, वाच्य, समास जैसी संकल्पनाओं के साथ विशेषतः और पूरे व्याकरण पर सामान्यतः लागू होती है। फिर भी, व्याकरण है तो प्रधानतः आकृतिपरक अवधारणा ही।
हिन्दी व्याकरण-पुस्तकों के निर्माण की अब तक जो लोकप्रिय शैली रही है, वह अंग्रेज़ी ग्रैमर से अभिभूत रहे पण्डित कामताप्रसाद गुरु के प्रभामण्डल से बाहर निकलकर, कुछ नया सोचने में असमर्थ रही है। वैसे पण्डित किशोरीदास वाजपेयी और उनके भी पूर्वज पण्डित रामावतार शर्मा ने हिन्दी व्याकरण को अधिक स्वस्थ और तर्कसंगत पथ प्रदान करने के अथक प्रयत्न किये, किन्तु उस पथ पर चलना लेखक को रास नहीं आया। लेखक का स्पष्ट विचार है कि हिन्दी भाषा को उसके मूल विकास-परिवेश [वेदभाषा-पालि-प्राकृत-अपभ्रंश-अवहट्ट-हिन्दी] में समझना चाहिए; हिन्दी भाषा के विश्लेषण को भी भारतीय भाषा दर्शन का संवादी होना चाहिए।
‘हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज’ पुस्तक का लेखक भारतीय भाषा दर्शन से उपलब्ध व्याकरणिक संकल्पनाओं पद, प्रकृति, प्रातिपदिक, धातु, प्रत्यय, विभक्ति, कारक, काल, समास, सन्धि, उपसर्ग आदि को मूलार्थ में हिन्दी व्याकरण में विनियुक्त या अन्वेषित करने को प्रतिबद्ध रहा है।
इस विषय पर हिन्दी में अब तक प्रकाशित पुस्तकों में विशेष महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी कृति।SKU: VPG8126340859₹337.00₹450.00
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