Vaisnavism: Contemporary Scholars discuss the Gaudiya Tradition. This article focuses on an ancient religious legacy in the light modern scholarship. Steven J.Rosen, along with twenty-five other distinguished academics, explores the many aspects of Gaudiya VAisnavism’s literature, history, and practice. The scholars share their years of research and offer insightful perspectives that are both thoughtful and illuminating. The richness and depth of this ancient East Indian tradition are brought out in discussions on subjects like the nature of God, devotional poetry and sacred space.
Vaisnavism
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Hindi Novels and Litrature
Hindi Vyakaran Ke Naveen Kshitij
0 out of 5(0)हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज –
‘व्याकरण’ अपने प्रकट स्वरूप में एककालिक (स्थिरवत् प्रतीयमान) भाषा का विश्लेषण है, जो भाषाकृति-परक है। किन्तु, वह पूर्णता व संगति तभी पाता है जब ऐतिहासिक-तुलनात्मक भाषावैज्ञानिक प्रक्रियाओं तथा अर्थ विचार की धारणाओं के भीतर से निकल कर आये। यह बात कारक, काल, वाच्य, समास जैसी संकल्पनाओं के साथ विशेषतः और पूरे व्याकरण पर सामान्यतः लागू होती है। फिर भी, व्याकरण है तो प्रधानतः आकृतिपरक अवधारणा ही।
हिन्दी व्याकरण-पुस्तकों के निर्माण की अब तक जो लोकप्रिय शैली रही है, वह अंग्रेज़ी ग्रैमर से अभिभूत रहे पण्डित कामताप्रसाद गुरु के प्रभामण्डल से बाहर निकलकर, कुछ नया सोचने में असमर्थ रही है। वैसे पण्डित किशोरीदास वाजपेयी और उनके भी पूर्वज पण्डित रामावतार शर्मा ने हिन्दी व्याकरण को अधिक स्वस्थ और तर्कसंगत पथ प्रदान करने के अथक प्रयत्न किये, किन्तु उस पथ पर चलना लेखक को रास नहीं आया। लेखक का स्पष्ट विचार है कि हिन्दी भाषा को उसके मूल विकास-परिवेश [वेदभाषा-पालि-प्राकृत-अपभ्रंश-अवहट्ट-हिन्दी] में समझना चाहिए; हिन्दी भाषा के विश्लेषण को भी भारतीय भाषा दर्शन का संवादी होना चाहिए।
‘हिन्दी व्याकरण के नवीन क्षितिज’ पुस्तक का लेखक भारतीय भाषा दर्शन से उपलब्ध व्याकरणिक संकल्पनाओं पद, प्रकृति, प्रातिपदिक, धातु, प्रत्यय, विभक्ति, कारक, काल, समास, सन्धि, उपसर्ग आदि को मूलार्थ में हिन्दी व्याकरण में विनियुक्त या अन्वेषित करने को प्रतिबद्ध रहा है।
इस विषय पर हिन्दी में अब तक प्रकाशित पुस्तकों में विशेष महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी कृति।SKU: VPG8126340859₹337.00₹450.00 -
Hindi Novels and Litrature
मेरी स्वरसुन्दरी (Meri Swarsundari)
0 out of 5(0)स कहानी में नायक अपने प्यार की खातिर हर मोड़ पर, हर कदम पर समीक्षा करते रहता है। सिर्फ और सिर्फ अपनी नाईका को खुश करने के लिए, खुश रखने के लिये और उसे खोने के डर से। और वह हसीना अपनी और कयामत सी हुस्न के सुरूर में कुछ इस कदर मगरूर थी कि जैसे मतवाले हावी अपने मद में चूर हो और तालाब में खिले कोमल से भी कोमल कमल फूलों को रौंदते चले जाता है। ठीक उसी तरह से ये भी हमारे हृदय से निकलती मेरी कोमल भावनाओं को बिना थोड़ा सा भी सोचे जब-जब दिल किया उन्हें अपने अभिमान की जीद से कुचलती चली गई और जब की रहम तो….
मेरा नाम कार्तिक तिवारी है और मेरे दिल की शहजादी ईश्क की शान श्रृंगार का नाम तैजसी पान्डेय है। मैं छत पर बैठ अपने किस्मत को कोश रहा हूँ और तैजसी के केशुओं की किस्मत पर जल रहा हूँ। उसे सिर्फ देख सकता हूँ बात नहीं कर सकता हूँ। छू लेने की तो उसे स्वाल ही नहीं उठता। और वह छत पर अपनी भिंगी हुई जुल्फों को सैंवार रही है, सुलझा रही है, बड़े प्यार से लेके अपने हाथों में खुले भिंगे वालों में उसकी खुबसूरती किसी कयामत से कम नहीं लग रही है। और उसकी जुल्फे हर बार उसके चेहरे कंधे, कमर पर बिखर कर मुझे जलाने के नियत से उसके कोमल अंगों को बार-बार चुम रही है। और जब उन केशुओं को सच में लगता है कि उनकी इस बेपनाह किस्मत पर जलने वाला लड़का कार्तिक तिवारी जल रहा है तो वो जुल्फे बड़े मगरूर अंदाज में कार्तिक तिवारी से कहती है-
तु तड़प-तड़प के तरस मेरे इस बेपनाह किस्मत पर, और जरा गौर से देख लशकर ठहरा है मेरा उसके लाल गालो पर, रोज सैंवारती हैं मुझे बड़े प्यार से ले कर अपने हाथों में, फिर मैं बिखर कर उसके कंधों कमर पर लहरा के चूम लेता हूँ उसके लाल होठों को।
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Hindi Novels and Litrature
Kanvaas Par Prem
0 out of 5(0)कैनवास पर प्रेम –
विमलेश त्रिपाठी ने कविता और कहानी के क्षेत्र में तो अपने रचनात्मक क़दम पहले से ही रख दिये थे और अन्य पुरस्कारों के साथ-साथ भारतीय ज्ञानपीठ का ‘नवलेखन पुरस्कार’ भी अपनी झोली में डाल लिया था। उनके कविता-संग्रह ‘हम बचे रहेंगे’, ‘एक देश और मरे हुए लोग’; कहानी-संग्रह ‘अधूरे अन्त की शुरुआत’ इस बात का सुबूत है कि विमलेश में साहित्यिक परिपक्वता कूट-कूट कर भरी है।
विमलेश एक मँजे हुए लेखक की तरह अपने समय को लिखता है। उसकी क़लम में समाज का दर्द है और वह परम्पराओं को तोड़ने का साहस भी रखता है। परम्पराओं को तोड़ने के लिए परम्पराओं का ज्ञान होना आवश्यक है। विमलेश के लेखन की यही विशेषता उसे अलग खड़ा करती है। उसके लेखन से स्पष्ट हो जाता है कि वह किसी आलोचक विशेष को प्रसन्न करने के लिए नहीं लिख रहा, बल्कि जो कुछ उसके दिल को छूता है, परेशान करता है उसी विषय पर उसकी क़लम चलती है।
हमें कॉलेज और विश्वविद्यालय में बार-बार सिखाया गया था कि लेखक को कहानी और पाठक के बीच में स्वयं नहीं आना चाहिए… मगर परम्पराएँ तो टूटने के लिए ही बनती हैं न।
विमलेश का ‘कैनवास पर प्रेम’ उपन्यास एक ऐसी कथा का वितान रचता है, जहाँ प्रेम और खो गये प्रेम के भीतर की एक विशेष मनःस्थिति निर्मित हुई है। अपने उत्कृष्ट कथा शिल्प के सहारे विमलेश ने धुन्ध में खो गये उसी प्रेम को कथा के नायक सत्यदेव की मार्फ़त रचा है। विमलेश के इस नये उपन्यास का हिन्दी जगत में खुल कर स्वागत होगा और यह हमें एक नयी दिशा में सोचने को मजबूर करेगा।-तेजेन्द्र शर्माSKU: VPG9326352772₹150.00₹200.00
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