
Vedic Investigation
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Hindi Novels and Litrature
Hindi Vyakaran
0 out of 5(0)हिन्दी व्याकरण –
…व्याकरण की उपयोगिता और आवश्यकता इस पुस्तक में यथास्थान बतलायी गयी है, तथापि यहाँ इतना कहना उचित जान पड़ता है कि किसी भाषा के व्याकरण का निर्माण उसके साहित्य की पूर्ति का कारण होता है और उसकी प्रगति में सहायता देता है। भाषा की सत्ता स्वतन्त्र होने पर भी व्याकरण उसका सहायक अनुयायी बनकर उसे समय-समय और स्थान-स्थान पर जो आवश्यक सूचनाएँ देता है, उससे भाषा का लाभ होता है…
भाषा की चंचलता दूर करने और उसे व्यस्थित रूप में रखने के लिए व्याकरण ही प्रधान और सर्वोत्तम साधन है।… —कामताप्रसाद गुरुSKU: VPG9326351027₹210.00₹280.00 -
Hindi Novels and Litrature
Sanchayiata
0 out of 5(0)संचयिता –
सबसे बड़ा पारखी है समय और वह किसी का लिहाज नहीं करता। जो रचना काल की कसौटी पर खरी उतरती है, उसकी सार्थकता एवं चिर नवीनता के सम्मुख प्रश्नचिह्न लगाना असम्भव है। ‘दिनकर’ जी की एक नहीं अनेक रचनाएँ ऐसी हैं जिनका महत्त्व तो अक्षुण्ण है हो, उनको प्रासंगिकता भी न्यूनाधिक पूर्ववत् ही है। आज की पीढ़ी का रचनाकार भी दिनकर-साहित्य से अपने को उसी प्रकार जुड़ा हुआ अनुभव करता है जिस प्रकार उसके समकालीनों ने किया। ऐसे ही समय की कसौटी पर खरी उतरी शाश्वत रचनाओं की अन्यतम निधि है—’संचयिता’, और यह निधि दिनकर जी ने भारतीय ज्ञानपीठ के आग्रह पर तब संजोयी थी जब उन्हें उनकी अमर काव्यकृति ‘उर्वशी’ के लिए 1972 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
इस संकलन में दिनकर जी के प्रखर व्यक्तित्व के साथ उनकी व्यक्तिगत रुचि भी झलकती है। रचनाओं को लेकर वे देश के कोने-कोने में गये और अपनी ओजस्वी वाणी से काव्य-प्रेमियों को कृतार्थ करते रहे। उनके काव्य पाठ की अनुगूँज आज भी देश के लाखों काव्य-प्रेमियों के मन में वैसी की वैसी ही बनी हुई है।
परवर्ती पीढ़ियों पर दिनकर-काव्य की छाप निरन्तर पड़ती रही है। छायावादोत्तर हिन्दी काव्य को समझने में ही नहीं वरन आज के साहित्य के मर्म तक पहुँचने में भी काव्य के हर विद्यार्थी के लिए दिनकर-काव्य का गम्भीर अनुशीलन अनिवार्य है।SKU: VPG9326350709₹150.00₹200.00 -
Hindi Novels and Litrature
Thanda Loha
0 out of 5(0)ठण्डा लोहा –
‘ठण्डा लोहा’ धर्मवीर भारती की प्रारम्भिक कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह की कविताओं की अन्तरंग दुनिया ऐसे अनुभूति केन्द्र पर उजागर हुई है जहाँ दिन महीने और बरस उसकी ताज़गी और महमहाते टटकेपन को रंचमात्र भी मैला नहीं कर पाते। स्वयं भारती जी के शब्दों में——”इस संग्रह में दी गयी कविताएँ मेरे आरम्भिक छह वर्षों की रचनाओं में से चुनी गयी हैं और चूँकि यह समय अधिक मानसिक उथल-पुथल का रहा, अतः इन कविताओं में स्तर, भावभूमि, शिल्प और टोन की काफ़ी विविधता मिलेगी। एकसूत्रता केवल इतनी है कि सभी मेरी कविताएँ हैं, मेरे विकास और परिपक्वता के साथ उनके स्वर बदलते गये हैं, आप ज़रा ध्यान से देखेंगे तो सभी में मेरी आवाज़ पहचानी-सी लगेगी। मेरी परिस्थितियाँ, मेरे जीवन में आने और आकर चले जानेवाले लोग, मेरा समाज, मेरा वर्ग, मेरे संघर्ष, मेरी समकालीन राजनीति और साहित्यिक प्रवृत्तियाँ, इन सभी का मेरे और मेरी कविता के रूप-गठन और विकास में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भाग रहा है…….. किशोरावस्था के प्रणय, रूपासक्ति और आकुल निराशा से एक पावन, आत्मसमर्पणमयी वैष्णव भावना और उसके माध्यम से अपने मन के अहम् का शमन कर अपने से बाहर की व्यापक सचाई को हृदयंगम करते हुए संकीर्णताओं और कट्टरता से ऊपर एक जनवादी भावभूमि की खोज——मेरी इस छन्द-यात्रा प्रमुख मोड़ रहे हैं।”
प्रस्तुत है ‘ठण्डा लोहा’ का यह नवीनतम संस्करण।SKU: VPG9326350136₹75.00₹100.00 -
Hindi Novels and Litrature
Dilli Mein Uninde
0 out of 5(0)इस पृथ्वी के एक जीव के नाते मेरे पास ठोस की जकड़ है और वायवीय की माया । नींद है और जाग है। सोये हुए लोग जागते हैं। जागते हुए लोग सोने जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं—जो न इधर हैं, न उधर । वे प्रायः नींद से बाहर और स्वप्न के भीतर होते हैं। उनींदे…मैंने स्वयं को अकसर यहीं पाया है… क्या यह मैं हूँ? कविताओं वाली मैं? मैं नहीं जानती। इतना जानती हूँ, जब कविता लिखती हूँ, गहरे जल में होती हैं और तैरना नहीं आता। किस हाल में कौन किनारे पहुँचूँगी-बचूँगी या नहीं-सब अस्पष्ट रहता है। किसी अदृश्य के हाथों में। लेकिन गद्य लिखते हुए मैंने स्वयं को किनारे पर खड़े हुए। पाया है। मैं जो बच गयी हूँ, जो जल से बाहर आ गयी हूँ… गगन गिल की ये गद्य रचनाएँ एक ठोस वस्तुजगत संसार को, अपने भीतर की छायाओं में पकड़ना है। यथार्थ की चेतना और स्मृति का संसार-इन दो पाटों के बीच बहती हुई अनुभव-धारा जो कुछ किनारे पर छोड़ जाती है, गगन गिल उसे बड़े जतन से समेट कर अपनी रचनाओं में लाती हैं-मोती, पत्थर, जलजीव-जो भी उनके हाथ का स्पर्श पाता है, जग उठता है। यह एक कवि का स्वप्निल गद्य न होकर गद्य के भीतर से उसकी काव्यात्मक सम्भावनाओं को उजागर करना है… कविता की आँच में तप कर गगन गिल की ये गद्य रचनाएँ एक अजीब तरह की ऊष्मा और ऐन्द्रिक स्वप्नमयता प्राप्त करती हैं।
SKU: VPG9387155893₹187.00₹250.00
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