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गांधी दर्शन और भारतीय समाज (Gandhi Darshan Aur Bhartiya Samaj)

सामाजिक संरचनात्मक विषयों पर गांधीजी ने प्राचीन भारतीय वर्ण व्यवस्था एवं आश्रम व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए आधुनिक भारत में भी उसके प्रयोग पर बल दिया तथा उन्होंने अपने जीवन में उतारने का अथक प्रयास किया। मध्यकाल में वर्ण व्यवस्था कर्म एवं गुण पर आधारित रहकर विकृत हो गयी और जातिवाद के रूप में विकसित हो गई। गाँधीजी ने इस जातिवाद का घोर विरोध करते हुए गुण एवं कर्म के आधार पर ही वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया है, क्योंकि गुण, कर्म एवं स्वभाव के आधार पर हो स्वस्थ समाज की स्थापना हो सकती है। आशा है यह पुस्तक जिज्ञासु पाठक एवं शोध छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। भारत के जिन महापुरुषों ने संसार में देश का सिर ऊँचा किया, गांधी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य है। न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक, धार्मिक और नैतिक दृष्टि से भी गाँधीजी को संसार को देन है। उनका व्यक्तित्व अप्रतिम है। सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर अत्यंत दृढ़ता ईमानदारी से चलते हुए उन्होंने अपने जीवन को इतना ऊपर उठाया कि उनकी तुलना महात्मा बुद्ध और महात्मा ईसा से की जा सकती है। उनकी मृत्यु पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए विश्व विख्यात विज्ञानवेत्ता अलबर्ट आईस्टीन ने कहा था-"कुछ समय बाद लोगों के लिए यह विश्वास करना भी कठिन हो जायेगा कि किसी समय सचमुच कोई महान व्यक्ति पृथ्वी पर जीवित भी था।" गांधीजी पर अनेक विद्वानों ने काफी संख्या में पुस्तकें लिखी हैं। संसार में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिन पर इतनी सारी पुस्तकें लिखी गयी हो। मेरी 'गाँधी दर्शन और भारतीय समाज' पुस्तक एक अकिंचन प्रयास है-जैसे सूर्य को दोया दिखाया जायें। मैं दर्शन का विद्वान् नहीं, बल्कि चिर जिज्ञासु विद्यार्थी है। एक दिन अचानक गाँधीजी पर एक लेख पढ़ते हुए उनके अनूठे चरित्र और व्यक्तित्व परी मुग्ध हो उठा जिसका परिणाम है उक्त पुस्तक की रचना । गाँधीजी को पढ़कर और समझकर ऐसा लगता है कि इंसान महान् नहीं होता, महान्होती है उसकी चुनौतियाँ। गाँधीजी एक मामूली हाड़-मांस के आदमी थे लेकिन उनके सामने एक पर एक ऐसी चुनौतियाँ आती गर्यो और उन्होंने पूरी मुस्तैदी और सक्रियता से अगि रहकर मुकाबला किया। इस तरह से कदम-दर-कदम महानता के सोपान चढ़ते चले गये । दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी जिस मुकदमे के सिलसिले में गये थे, उसे उन्होंने समझौते द्वारा निपल दिया। किन्तु वहाँ जाकर उनके जीवन की दिशा ही मुड़ गयी। दक्षिण अफ्रीका में बहुत बड़ी संख्या में भारतीय रहते थे। गोरे लोग भारतीयों के साथ पशुओं से भी बुरा बर्ताव करते थे और वे सारे अपमान और लांछन सिर झुकाकर सह लेते थे । गाँधीजी ने ऐसे दुर्व्यवहार के सामने सिर झुकाना स्वीकार न किया और डटकर गोरों के अन्याय का विरोध किया। इसके लिए उन्होंने 1883 में 'नेटाल इंडियन कॉंग्रेस' की स्थापना की ।


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Pages : 153
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