Bihar Ke Kaljayi Shilpkar ( बिहार के कालजयी शिल्पकार )
मानव जीवन में कला का महत्त्व आदिम युग से ही है। शुरूआती दौर में लोग अपनी आवश्यकता के अनुरूप जरूरत की कलात्मक चीजों का निर्माण करते आहिस्ता आहिस्ता मानव मस्तिष्क के विकास के क्रम में कला के रूपों में तब्दीलियों तो आयी ही, यह लोगों के विचारों भावनाओं, सपनों कुवाओं एवं अंतर भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम भी बन गयी। तब से आज तक वह विभिन्न रूपों में हमारे सामने है। बिहार के विभिन्न क्षेत्रों गाँवों करयों एवं शहरों में भिन्न-भिन्न तरह की बोलियाँ बोली जाती है। विभिन्न तरह की रखें भी संपादित होती है विभिन्न जातियाँ भी हैं जिनकी अपनी-अपनी पराऐं है और उनके घर-आँगन में अलग-अलग कलाएं विकसित हुई है। नन्हे मुन्नी का आगमन हो शादी-ब्याह का मालिक अवसर त्योहारी उत्पादों की घड़ी हो या देवपूजन की शुभ बेला विधि प्रकार की कलाकृतियों का सृजन होता रहता है। इनकी उपस्थिति मात्र से जीवन में रंग भर जाता है,जीवन सुखमय एवं रंगीन हो जाता है। बिहार के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में ढेर सारे शिल्पकार शिल्प-सृजन में अनवरत लगे हुए हैं। कला की उनकी अपनी दुनिया है। उनकी कला को समझना, आत्मसाल करना और सूक्ष्मता के साथ उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को शब्दों में बाँधना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। उस चुनौती को स्वीकार कर अशोक कुमार सिन्हा ने इनके जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं और उनकी कला के अभिलेखीकरण का प्रयास किया है। 'बिहार के कालजयी शिल्पकार नामक इस पुस्तक में राज्य के उन बीस शिल्पकारों की जीवनी है, जिन्होंने बिहार के हस्तशिल्प को सहेजने और संवारने का काम किया है। ये सभी कलाकार अपने-अपने शिल्प में अद्वितीय हैं। सभी की पहचान राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है। एक तरफ अपनी मौलिकता एवं विलक्षणता से संपूर्ण विश्व को आकर्षित करने वाली मिथिला (मधुबनी) पेंटिंग के कलाकारों की चर्चा है तो दूसरी तरफ मिट्टी के शिल्पकार भी हैं। पत्थर को तराशकर मूर्ति बनाने वाले की कहानी भी समाहित है। इस तरह विभिन्न क्षेत्रों के बीस कलाकारों, शिल्पियों की अलग-अलग की कहानी भी समाहित हैं। इस तरह विभिन्न क्षेत्रों के बीस कलाकारों, शिल्पियों की अलग-अलग तकनीक, रचना-प्रक्रिया, माध्यम, विषय-वस्तु रंग-रोगन एवं रूप- आकारों को पैनी दृष्टि के साथ अशोक कुमार सिन्हा ने विश्लेषित किया है। बिहार के शिल्पकारों के जीवन और उनकी कार्यशैली आज तक एक भी पुस्तक का प्रकाशन नहीं हुआ था। यह पहली बार हुआ है कि शिल्पकारों की जीवन-गाथा और रचनाशीलता को केन्द्र में रखकर एक किताब लिखी गई है। वाकई यह ऐतिहासिक कार्य है। श्री अशोक कुमार सिन्हा 1990 के दशक से लोककला के क्षेत्र में लेखन कर रहे हैं। पुस्तक में उनकी. भाषा बहुत ही सुग्राहय है। पढ़ते-पढ़ते हम कहीं खो जाते हैं। शब्दों के माध्यम से शिल्पकारों की दुनिया में हम भ्रमण करने लगते हैं।
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Pages : | 153 |
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