पातञ्जल योग मनोविज्ञान (Patanjal Yog Manovigyaan)
प्रस्तुत कृति पातञ्जल योग मनोविज्ञान का प्रकाशन का उद्देश्य आज के बदलते परिवेश में महर्षि पतन्जलि के योग मनोविज्ञान की उपादेयता एवं प्रासंगिकता को दर्शाना है। महर्षि पतञ्जलि ने योग सूत्र में मानवीय चित्त और उसकी वृत्तियों का मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण किया है। चित्त के विकारों को दूर करके हो भौतिक व आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति संभव है। मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से उन्नत बनाना तथा उसे जीवन के चरम लक्ष्य तक पहुँचाना ही पतञ्जलि के योग मनोविज्ञान का उद्देश्य वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण के दौर में पात योग मनोविज्ञान ही मनुष्य की संवेदनशीलता, सकारात्मकता एवं च का आधार बन सकता है। वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण के दौर में सम्पूर्ण मानव-जाति एक भयानक त्रासदी एवं अवसाद के माहौल में जीवनयापन कर रही है। अनेक प्रकार की भौतिक एवं तकनीकी सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने के बावजूद वह मानसिक रूप से अशांत है। इसका मूल कारण मनुष्य का अशांत चित्त है। मानवीय चित्त को नियंत्रित एवं संयमित कर ही एक खुशहाल जगत् का निर्माण किया जा सकता है। महर्षि पतञ्जलि ने अपनी पुस्तक 'योग सूत्र' में मानवीय चित्त और उसकी वृत्तियों का मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में विशद् विश्लेषण किया है। पातञ्जल मनोविज्ञान मनुष्य को 'आत्मन' मानकर उसके मनोदैहिक क्रियाकलापों का अध्ययन आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक इन तीनों आयामों में करता है। आज के भौतिकवादी युग में जहाँ मानवीय संबंध एवं क्रियाकलापों का ही अवमूल्यन हो रहा है ऐसी स्थिति में पातज्जल प्रणीत मनोवैज्ञानिक चिन्तन ही मनुष्य के मूल्योन्मुखी रूपान्तरण में सहायक हो सकता है।
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Pages : | 153 |
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