परमात्मा का सच्चा स्वरूप एवं मुक्ति मार्ग (Parmatma ka saccha Swaroop Awm Mukti Marg)
परमात्मा शुक्ष्माविशुक्ष्म, सर्वव्यापक संयोपरि सर्वनियत्न्या अनादि एवं अनन्त अनन्त गुड़ जो प्रकृति के कण-कण से झाँक रहा है परमात्मा का सच्चा स्वरूप जिसकी सता पर सम्पूर्ण सृष्टि आधारित है, समझने एवं बुझने की वस्तु है अनुष्य परमात्मा प्रदत्त अपनी बुद्धि के प्रकाश में उतना तो समझ ही सकता है कि जगत के त्येक प्राणी परमात्मा से ही प्रकाशित माया हाल में उलझ कर अनन्त जन्मों से इस पाया के जाल में उलझ कर अन्नत जन्मों से इसे मायावी संसार में दुखों एवं कलेयों के बीच भटक रहा है। जीवन एवं मृत्यु जायत रुकने वाली बैंक है जिसके बाँच प्राणी फँस कर दुखों एवं कलेशों को सतत् हो रहा है. यही जद एवं चेतन का बंधन है जो झूठा होकर भी तोई नहीं टूटता है। मनुष्य में इतनी क्षमता है कि वह इस धन के कारण को जान सके एवं इससे मुक्त होने का मार्ग सक्ति के कई मार्ग है। मुक्ति का अर्थ है संसार से विलगाव एवं परमात्मा से साक्षात्कार । परमात्मा से साक्षात्कार सम्भव है वसते कि तर्क का साहारा त्याग कर परमात्मा की सत्ता में अटूट आस्था दृढ श्रद्धा एवं विशवय तथा सरल एवं शुद्ध भक्ति का आश्रय लिया जाए । परमात्मा का सच्चा स्वरूप एवं मुक्ति मार्ग" एक ऐसी कृति है जो परमात्मा के जिज्ञासुओं, श्रद्धालुओं एवं भक्तों को परमात्मा का स्वरूप को समझने में सहायक है तथा उनके मुक्ति के मार्ग से भली-भाँती परिचय कराती है। भाषा की सरलता, गुढ़ तत्वों की सरल व्याख्या एवं परमात्मा के विशेषताओं की सही प्रस्तुतीकरण ही इस पुस्तक की विशेष विशेषता है। यह पुस्तक एक शोध ग्रंथ है जिसका आधार प्राचीन हिन्दु धर्मशास्त्र एवं ग्रंथ है ।
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Pages : | 153 |
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