भारत के प्रमुख पुरातत्त्वेत्ता और इतिहासकार (Bharat Ke Pramukha Puratatveta Aur Itihaaskaar)
1857 के बाद कुछ अंगरेज इतिहासकारों ने भारतीय संस्कृति को निष्पक्ष रूप से जाँचने का प्रयास किया। उन्होंने पूर्वत इतिहासकारों की अपेक्षा अधिकृत सामग्री का अधिक उपयोग किया किया और पुरातात्त्विक साक्ष्यों पर बल दिया जाने लगा। इसी उद्देश्य से एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल तथा भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण का गठन हुआ। बीसवीं सदी के पूर्वाद्ध में अंगरेज इतिहासकार इतिहास लेखन में आधुनिक एवं वैज्ञानिक तकनीक अपनाने लगे थे किन्तु भारत के इतिहास का मूल्यांकन से इंगलैण्ड के तत्कालीन राजनीतिक दृष्टिकोण को सामने रखकर ही ज्यादा करते थे। इस अवधि में कुछ भारतीय इतिहासकारों ने भी ऐतिहासिक शोध को आधुनिक तकनीक को अपनाया और अपनी पुस्तकों में निष्पक्ष विवरण प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया। प्रारंभिक दौर के भारतीय इतिहासकारों ने राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकर इतिहास की रचना की। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय इतिहास लेखन में मार्क्सवादी दृष्टिकोण ने जोर पकड़ा। दोनों पक्षों की प्रस्तुति अंतर भले ही हो, पर यह सर्वमान्य है कि इतिहास-लेखन में तथ्य से भटकाव इतिहास को विकृत करता है। इतिहासकारों का व्यक्तिगत जीवन भी इतिहास रचना में उनके दृष्टिकोण को प्रभावित करता है।
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Pages : | 153 |
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