पूर्वमध्यकालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति(Purvkalin Bhartiya Samaj Avm Sanskriti)
प्रस्तुत पुस्तक का वर्ण्य विषय पूर्वमध्यकालीन भारतीय संस्कृति एवं समाज का गवेषणात्मक विश्लेषण तो है ही, साथ ही गुप्तोत्तरकालीन दक्षिण भारतीय संस्कृत जैन महाकवि जटासिंहनन्दि द्वारा एकत्रिंश सर्गों और 2816 श्लोकों में निबद्ध वराङ्गचरितम् महाकाव्य में उपलब्ध एतद्विषयक सामग्री का सम्यक् अनुशीलन भी। इस काव्य में बाइसवें तीर्थकर तथा श्रीकृष्ण के समकालीन वराङ्गनामक लोकोत्तर धीरोदात्त पुण्य पुरुष की कथावस्तु अंकित की गई है। उपरोक्त काव्य अद्यावधि तिमिराछन्न था तथा रचनाकार के निःसमूह व्यक्तित्व के कारण उनकी अस्मिता सुधी-विद्वत्जनों द्वारा उजागर होने के लिए प्रतीक्षारत थी। प्रो डॉ ए एन उपाध्ये के अथक परिश्रम से यह काम सरल हो सका और प्रस्तुत कृति उनके द्वारा संपादित ग्रंथ पर डॉ कमल कुमारी, संस्कृत विभागाध्यक्ष म म महिला कॉलेज, आरा के पीएचडी हेतु किये गये शोधकार्य का प्रतिफलन है।
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Pages : | 153 |
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