झारखण्ड में मुण्डा का आर्थिक इतिहास (Jharkhand Mein Munda Ka Aarthik Itihaas)
इतिहास-लेखन का क्षेत्र दिनों-दिन विस्तृत होता जा रहा है। अब इतिहास मात्र राज्यों के उत्थान-पतन या उनके युद्धों एवं नीतियों के वर्णन तक सीमित नहीं रह गया है अपितु जन-जीवन के सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन के कमिक विकास का अध्ययन भी इसका विषय बन चुका है। समय के साथ-साथ इतिहास लेखन की विधा में भी परिवर्तन हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर लिखे गए इतिहास में प्राय: आंचलिक स्तर की महत्वपूर्ण घटनाएं या तो उपेक्षित रह जाती है या अपेक्षित विस्तार नहीं पा पाती। अतः क्षेत्रीय इतिहास लेखन इस अभाव को पूरा करता है। भारत जैसे विशाल, बहु-धर्मी, बहु-जातीय राष्ट्र के लिए क्षेत्रीय इतिहास लेखन और भी उपयोगी है। "झारखण्ड में मुण्डा का आर्थिक इतिहास'' इस दृष्टि से एक सामयिक प्रयास है। पुस्तक में मुण्डाओं के आर्थिक जीवन का क्रमिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। १८३१-३२ के जनजातीय आन्दोलन को झारखण्ड के आर्थिक इतिहास में मील का पत्थर" माना जाता है क्योंकि इसके उपरान्त मुण्डाओं के आर्थिक जीवन में सुधार का अटूट क्रम प्रारम्भ हुआ है। ईसाई मिशनों का योगदान और जनजातीय हितों की रक्षा करने वाले ब्रिटिश कालीन अधिनियम इसी क्रम की महत्वपूर्ण कड़ी हैं। स्वतंत्र भारत का संविधान भी विभिन्न प्रावधानों द्वारा मुण्डाओं के आर्थिक-जीवन के स्तर को सम्माननीय बनाने के लिए कृत संकल्प है। लेखक ने झारखण्ड में मुण्डाओं के आर्थिक जीवन के उतार-चढ़ाव को रेखांकित करने का कठिन प्रयास किया है। विश्वास है यह पुस्तक छात्रों एवं अध्यापकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
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Pages : | 153 |
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