मध्यवर्गीय महिलाओं की सामाजिक स्थिति (Madhyavargiya Mahilaon Ki Samajik Sthiti)
प्रस्तुत पुस्तक को सफल बनाने में पटना विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के सभी प्राध्यापकों का सहयोग मिला है जिनके प्रति में हृदय से आभारी हूँ। मैं आदरणी डॉ सरदार देवनन्दन सिंह, प्रोफेसर, समाशास्त्र विभाग पटना विश्वविद्यालय तथा अ विद्यालय सेवा बोर्ड, बिहार की तो मैं अन्तरमन से कृतज्ञ हूँ जिनके उपयोगी सुझावों स्नेहिल निर्देशन के परिणाम स्वरूप ही यह पुस्तक परिपूर्ण हो सका है। इन लेखों को संपादित करने के पीछे मेरा मुख्य उद्देश्य यह रहा है कि सरल भाषा में आर्थिक एवं सामाजिक विकास की जटिल समस्याओं को लोगों के सामने रखा जाए। किसी भी सामाज का संगठन बहुत बड़ी सीमा तक जहाँ स्त्रियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर आधारित होता है। इतिहास साक्षी है कि संसार के विभिन्न समाजों में जहाँ कही भी नारियों को स्वतंत्रता, समानता और न्याय के अधिकार से वचित करके उन्हें दासी जीवन की जंजीरों में जकड़ा गया, वहाँ संस्कृति और सभ्यता का पतन हो गया। भारत में भी बहुत लम्बे समय तक नारी का जीवन अनेक सामाजिक और धार्मिक अन्धविश्वासों का खेल बना रहा। वैदिक युग जिस नारी को देवी और शक्ति के रूप में देखा जाता था, मध्यकाल में वही नारी समाज के लिए एक भार बन गई।
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Pages : | 153 |
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