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महायोग की अन्तर्यात्रा (Mahayog Ki Antaryatra)

इस कविताओं में अनुभूतियाँ बड़ी सहजता से सम्मुख आ खड़ी होती हैं और हमें आश्वस्त करती हैं कि उनकी अनुभूतियाँ अन्तर्मन की गहराइयों से प्रस्फुटित हुई हैं, वे शुद्ध, सात्विक और निराली है। कविताओं में विचार पिरोये नहीं गये, वे स्वतः सर्वत्र प्रवाहमान हैं: क्योंकि ये तीव्र मनोमंथन के परिणाम स्वरूप प्रकट हुए हैं। सच तो यह है कि उनको कविताओं का कैनवास बहुत बड़ा है-स्वच्छ नीले आकाश की तरह निर्दोष और निर्मल । इस नीलाकाश में हर रंग के चित्र उकेरे गये हैं, जो आध्यात्मिक ऊर्जा से प्रभावान् है और हमें जागतिक व्याधि-बोध से उबरने की सलाह देते हैं। आज का आम आदमी उन सभी चीजों के पीछे भागता-फिरता है जो मन के भीतर की दुनिया में हमें कहीं नहीं पहुंचातीं । हम दौड़ते तो बहुत हैं पर सही जगह नहीं पहुंच पाते। प्रस्तुत पुस्तक की हर कविता में शब्दश: ज्योति और लौकिक जीवन के मार्गदर्शन के तत्व निहित हैं। एक सौ एक कविताओं के इस संग्रह में प्रथम कविता 'कौन हूँ मैं' आत्मबोध की प्रखर अभिव्यक्ति है। स्वयं को गहराई से परखने का मार्ग बतलाती है। 'आदमी' कविता में कवयित्री इन्सान की भौतिकता के पीछे भागने से उपजी विडंबनाओं का यथार्थ वर्णन करती हैं। उसकी जिन्दगी को बोझा तले दबा बताती हैं। ईश्वर में स्वयं के अस्तित्व को विलीन कर डालने की प्रबल इच्छा को 'विलय' कविता में व्यक्त किया गया है। ईश्वर की समीपता को अंतर्मन में महसूस करने की प्रेरणा इस कविता में मिलती है। संग्रह की कई अन्य कविताएं 'नियति', 'दृष्टि', 'आगमन', 'प्रश्न' 'दिगभ्रांति', 'काल', * व्यामोह में' आदि मन पर गहरी छाप छोड़ती हैं। संग्रह की कविताएं अध्यात्म और दर्शन जैसे गूढ़ विषयों की दुरुह गांठें बड़ी आसानी से खोलती हैं। छोटी कविताएं पाठक के लिए कहीं बोझिल नहीं बनतीं। भाषा इतनी सरल और मर्मस्पर्शी कि कविता की समझ नहीं रखने वाला आम पाठक भी इनमें गहरा डूबता चला जाता है। पुस्तक आम और खास सभी पाठकों को पसंद आएगी।


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Pages : 153
Made In : India

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