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वैदिक संस्कृति (Vaidik Sanskriti)
वेद विश्व का प्राचीनतम वाड्मय है। मंत्रद्रष्टा ऋषियों के द्वारा अनुभूत आध्यात्मिक तत्वों को विशाल राशि ही "छेद" कही गई तथा उन तत्वों का अनुगमन करना वैदिक धर्म माना गया। अतः धर्म के मूल तत्वों को जानने का एकमात्र साधन वेद ही है। यह सर्वज्ञ स्वयं भगवान की लोकहिताय रचना है। 'तैत्तिरीय संहिता' के अनुसार वेद का वेदत्व यही है कि वह प्रत्यक्ष या अनुमान द्वारा अबोध्य तत्वों का सुगमतापूर्वक बोध कराता है। वेद का वेदत्व यही है कि वह प्रत्यक्ष या अनुमान द्वारा अबोध्य तत्वों का सुगमतापूर्वक बोध कराता है। ऋग्वेद सर्वप्राचीन वेद है और भारतीय धर्म एवं दर्शन का मूल स्रोत है। ऋग्वेद का चिन्तन जगत् और जीवन के वैविध्य को स्पष्ट करता है तथा नवीन दार्शनिक आयाम प्रदान करता है। मानव जाति के कल्याण के लिये इसमें अमृततुल्य उपदेश हैं। ऋग्वेद का आंतरिक मूल संदेश एक ही परमशक्ति के स्वरूप को उद्घाटित करना है। वैदिक ऋषियों ने वस्तुतः एक ही चेतन शक्ति की उपासना की थी, जो इस जगत् का मूल कारण है। वह चेतन शक्ति या परमतत्व ही परमात्मा, ईश्वर, पुरुष या ब्रह्म है। वह एक सर्वोपरि परमसता है जो समस्त विश्व का संचालन करता है।
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