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संगीत Sangeet (Ek Mulaya Niyamak)

भारतीय संगीत की शास्त्रीय विचारधारा जनवादी संस्कृति का सार्वभौम सत्य है। यही कारण है कि भारतीय संगीत अपने मूल रूप में अपरिवर्तनीय रहा है, यथ दिशेत्तर और लोक संगीत की भावनाएँ इसके आधार रहे हैं और मानवीय संवेदन की सशक्त अभिव्यक्ति की यह विधा आज भी बदले परिवेश में मौलिकता के निर्वाह का सतत् अनुयायी है। युग परिवर्तन ने समाज को एक नयी दिशा दी है और वैज्ञानिक आविष्कार ने मानव को यंत्र के निकट लाया है, परंतु भारतीय सामाजिक मूल्य की वैज्ञानिकता सार्वभौमिक रही है। सामवेद से लेकर मध्यकाल के फबीर, सूर, तुलसी, मीराबाई अथवा आधुनिक कालीन बिस्मिल्ला खाँ, हरि प्र. चौरसिया आदि सरीखे संगीत महानायक ने भारतीयता की ज्योति को अनवरत राष्ट्र के प्रति समर्पित किया है। फिर भी इस आशय से मुँह नहीं मोहा जा सकता है कि आधुनिकता, भूमण्डलीकरण और चकाचौंध ने भारतीयों और भारतीय सामाजिक मूल्य को पाश्चात्य विचारों और उनकी वैज्ञानिक आर्थिक प्रगति के प्रति मोहित किया है। इसी कड़ी में पाश्चात्य संगीत भारतीय युवाओं को प्रभावित किया है, जिसे बिना तर्क के स्वीकारा जा सकता है। आयातित पाश्चात्य संगीत से भारतीय सामाजिक जीवन के मूल्य और परम्परागत दो में कुछ बिखराव अवश्य आया, जिसका प्रस्तुत शोध-प्रबंध में विशद चर्चा की गयी है, परन्तु प्राचीन अर्वाचीन सामाजिक मूल्य के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट है सूक्ष्म रूप से संगीत की शास्त्रीय धारा ने पाश्चात्य संगीत की स्थिरता को अपने वाह ने उसे भारतीय संगीत पटल पर एक ओछा स्थान निर्धारित किया है। परन्तु दूसरी और यह भी सत्य है कि थोड़े से तथाकथित विकसित समाज की दिशा पाश्चात्य यो संगीत और उनके आधुनिक आयाम से भी प्रभावित हुई। संचार के आधुनिक माध्यमों ने पृथ्वी को एक गाँव बना दिया और समष्टि-व्यष्टि सेनाओं का कोई विशेष अंतर नहीं रह गया, परिणामस्वरूप भारतीय संगीत पर आर्थिक-सामाजिक संबंधों और खगोलीकरण तथा बाजारीकरण का प्रभाव रूप से देखा जा सकता है।


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